धावक कहानी के आधार पर भंबल दा का चरित्र चित्रण कीजिए।
कथाकार संजीव ने ‘धावक’ शीर्षक को सार्थक बनाने हेतु भंबल दा को मुख्य पात्र के रूप में प्रस्तुत किया है। सम्पूर्ण घटनाक्रम उसकी संवेदनशीलता, त्याग और सच्चे खेल-भावना के इर्द-गिर्द घूमता है। भंवल दा न केवल खेल मैदान में बल्कि जीवन के हर क्षेत्र में ईमानदारी, संघर्ष और जुझारूपन का परिचय देता है। उसकी निष्ठा और धैर्य पाठक को गहराई से प्रभावित करते हैं। वह प्रतियोगिता को केवल जीत-हार तक सीमित नहीं मानता बल्कि खेल की असली भावना को उजागर करता है। इस प्रकार भंवल दा इस कहानी का केन्द्रीय चरित्र बनकर ‘धावक’ शीर्षक को पूर्ण औचित्य प्रदान करता है।
1. आदर्श पुत्र और भाई :
भंबल दा का प्रथम परिचय हमें एक आदर्श पुत्र के रूप में मिलता है। वह स्वयं कठिनाइयों और संघर्षपूर्ण जीवन जीते हुए भी अपनी माँ की सेवा में पूर्ण समर्पण भाव से लीन रहता है। उसकी कोई भी बात माँ को दुःख नहीं पहुँचाती। उसने माँ के जीवन के दुःख और पीड़ा को अपने कंधों पर उठा लिया है, परंतु उसके चेहरे पर कभी शिकन दिखाई नहीं देती। भंवल दा केवल आदर्श पुत्र ही नहीं बल्कि आदर्श भाई भी है। वह अपनी बहन की आवश्यकताओं को समझते हुए प्रत्येक माह उसे आर्थिक सहायता प्रदान करता है। इस प्रकार उसकी संवेदनशीलता और जिम्मेदारी उसे परिवार का आधार स्तंभ बनाती है।
2. सामाजिक दायित्व बोध :
भंबल दा के चरित्र में केवल पारिवारिक जिम्मेदारियाँ ही नहीं, बल्कि गहरा सामाजिक दायित्व बोध भी दिखाई देता है। वह संकीर्ण मानसिकता का नहीं है, बल्कि उसका दृष्टिकोण व्यापक है। उसकी संवेदनशीलता और कर्मशीलता की परिधि परिवार से आगे बढ़कर पड़ोस और समाज तक फैली हुई है। यही कारण है कि वह विवाह-शादी के अवसरों पर, श्मशान घाट ले जाने के कार्यों में तथा अन्य सामाजिक समारोहों में सक्रिय योगदान देता है। भंवल दा जरूरतमंदों की सेवा को अपना कर्तव्य समझता है। वह कभी घायलों को अस्पताल पहुँचाने हेतु एम्बुलेंस बन जाता है, तो कभी अपने गृहस्थ जीवन की जिम्मेदारियों के बीच संतुलन साधता है। इस प्रकार वह सच्चे सामाजिक चेतना से सम्पन्न चरित्र के रूप में सामने आता है।
3. समर्पित जीवन :
भंबल दा का संपूर्ण जीवन समर्पण का प्रतीक है। वह चाहे परिवार की सेवा हो, समाज का दायित्व हो, खेलों में ईमानदारी हो या जीवन मूल्यों का संरक्षण—हर क्षेत्र में पूरी निष्ठा और लगन से जुड़ा रहता है। भंवल दा किसी भी कार्य को आधे-अधूरे मन से करने वाला नहीं है, बल्कि वह अपने कर्तव्यों को पूर्णता और गंभीरता से निभाता है। उसका जीवन त्याग, ईमानदारी और अनुशासन की मिसाल है। खेलों के माध्यम से वह स्पोर्ट्समैन स्पिरिट को चरितार्थ करता है, वहीं परिवार और समाज में सेवा-भाव के द्वारा मानवीय मूल्यों को जीवित रखता है। इस प्रकार भंवल दा का जीवन समर्पण, संघर्ष और कर्तव्यनिष्ठा का उज्ज्वल उदाहरण है।
4. प्रतिबद्धता :
भंबल दा का जीवन प्रतिबद्धता का पर्याय है। वह हर क्षेत्र में अपने कर्तव्यों के प्रति अडिग और गंभीर दिखाई देता है। खेल के क्षेत्र में उसकी प्रतिबद्धता नियमों और कायदे-कानूनों के प्रति है, जिन्हें वह अपने प्राणों से भी अधिक प्रिय मानता है। परिवार के प्रति उसका समर्पण और जिम्मेदारी का निर्वाह उसकी पारिवारिक प्रतिबद्धता को दर्शाता है। यही नहीं, सामाजिक जीवन में भी उसकी संवेदनशीलता और सक्रियता उसकी सामाजिक प्रतिबद्धता का प्रमाण है। भंवल दा अपने प्रत्येक कार्य को निष्ठा और ईमानदारी के साथ निभाता है। उसका जीवन यह संदेश देता है कि सच्चा इंसान वही है, जो हर परिस्थिति में अपने दायित्वों और मूल्यों के प्रति दृढ़ बना रहे।
5. ईमानदार :
भंबल दा के जीवन का सबसे उज्ज्वल पहलू उसकी अटूट ईमानदारी है। वह हर परिस्थिति में सच्चाई और निष्पक्षता को सर्वोपरि मानता है। उसका यह कथन— “मुझे केवल अपनी योग्यता का रिटर्न चाहिए, सहकर्मियों को लांघते हुए शीर्ष स्थान पर पहुँचने की मेरी कोई महत्वाकांक्षा नहीं है।” — उसकी आत्मसम्मान और निस्वार्थ प्रवृत्ति को स्पष्ट करता है। आज के समय में जहाँ अधिकांश लोग दूसरों को पीछे धकेलकर आगे बढ़ना चाहते हैं, वहीं भंवल दा जैसी निष्कपट ईमानदारी बहुत दुर्लभ हो गई है। भंवल दा अपने कर्म, विचार और व्यवहार में सच्चाई का परिचय देता है। उसका जीवन यह सिखाता है कि सच्ची सफलता वही है, जो ईमानदारी और मेहनत से प्राप्त की जाए।
6. अभूतपूर्व त्याग की भावना :
भंबल दा त्याग की सजीव प्रतिमूर्ति हैं। उन्होंने अपने जीवन में परिवार को सर्वोपरि मानते हुए अपने व्यक्तिगत सुख-सुविधाओं का पूरी तरह परित्याग कर दिया। भंवल दा ने विवाह न करके अविवाहित जीवन जीने का निर्णय लिया ताकि वे अपनी माँ और बहन की जिम्मेदारियों को पूरी निष्ठा से निभा सकें। उनका यह निर्णय उनके भीतर की अभूतपूर्व त्याग-भावना का परिचायक है। वे न तो निजी इच्छाओं और महत्वाकांक्षाओं के पीछे भागते हैं और न ही स्वार्थ में डूबते हैं। भंवल दा का जीवन हमें यह शिक्षा देता है कि सच्चा सुख परिवार और समाज की सेवा में निहित है, न कि व्यक्तिगत लालसाओं की पूर्ति में।
7. स्वाभिमानी :
भंबल दा के व्यक्तित्व का एक अनमोल गुण उसका गहरा स्वाभिमान है। वह अपनी धुन का पक्का और आत्मसम्मान का उपासक है। अभाव और कठिनाइयों से भरा जीवन जीने के बावजूद उसने कभी अपने संपन्न भाई से किसी भी प्रकार की सहायता लेने की इच्छा तक नहीं की। उसका स्वाभिमान उसे यह सिखाता है कि जीवन किसी की कृपा पर नहीं, बल्कि अपनी मेहनत और ईमानदारी पर जिया जाना चाहिए। यही कारण है कि वह अनुचित साधनों से मिला प्रमोशन भी स्वीकार नहीं करता। भंवल दा अपने सिद्धांतों और आत्मसम्मान से कभी समझौता नहीं करता। उसका यह गुण उसे भीड़ से अलग करता है और पाठकों के सामने एक आदर्श चरित्र के रूप में प्रस्तुत करता है।
उपरोक्त गुणों के अतिरिक्त भंवल दा के व्यक्तित्व में सहनशीलता, सहजता, समरसता, सेवा-भाव तथा सहयोग की भावना जैसे अनेक मानवीय मूल्य भी देखने को मिलते हैं। उनका जीवन हर स्तर पर संतुलित और कर्तव्यनिष्ठ दिखाई देता है। वे अपने स्वार्थ से ऊपर उठकर दूसरों की भलाई के लिए सदैव तत्पर रहते हैं। उनकी विनम्रता और सरलता उन्हें सबका प्रिय बनाती है, वहीं सेवा और सहयोग की भावना उन्हें समाज में विशेष स्थान प्रदान करती है। इस प्रकार भंवल दा केवल एक साधारण इंसान नहीं, बल्कि एक आदर्श और अनुकरणीय चरित्र हैं, जिनसे हर व्यक्ति को प्रेरणा लेनी चाहिए।
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