धावक कहानी के शीर्षक की सार्थकता पर अपने विचार प्रकट कीजिए।

धावक कहानी के शीर्षक की सार्थकता पर अपने विचार प्रकट कीजिए। धावक कहानी के शीर्षक की सार्थकता पर प्रकाश डालिए। Dhavak kahani ke shirsak ki sarthakta

धावक कहानी के शीर्षक की सार्थकता पर अपने विचार प्रकट कीजिए। धावक कहानी के शीर्षक की सार्थकता पर प्रकाश डालिए। Dhavak kahani ke shirsak ki sarthakta

‘धावक’ कहानी सामाजिक धरातल पर रचित एक बंगाली परिवार की गहरी व्यथा-कथा है। इसमें अशोक दा और भंवल दा जैसे दो भाइयों के जीवन दृष्टिकोण का सुंदर चित्रण मिलता है। भंवल दा जीवन की दौड़ में पीछे छूट जाते हैं क्योंकि वे परिवार की जिम्मेदारियों को प्राथमिकता देते हैं। वे कभी अपने सिद्धांतों और मूल्यों से समझौता नहीं करते। उनके लिए सफलता का अर्थ छल-कपट से आगे बढ़ना नहीं, बल्कि ईमानदारी और परिश्रम के साथ जीवन जीना है। भंवल दा नियतिवाद में विश्वास नहीं रखते, बल्कि कर्मवाद को जीवन का आधार मानते हैं। वे मानते हैं कि शान-प्रतिष्ठा दूसरों से ऊँचा दिखने में नहीं, बल्कि सौहार्द्र और समता बनाए रखने में है। उनके लिए सच्चा सम्मान मानवीय मूल्यों की रक्षा में है। विशेष रूप से, उनकी दृष्टि में माँ का महत्व सर्वोपरि है, जिसके लिए वे हर त्याग और संघर्ष को स्वीकार कर लेते हैं। इस प्रकार भंवल दा आदर्शवाद और जीवन मूल्यों के प्रतीक बनकर उभरते हैं।

जब लेखक भंवल दा के घर पहुँचे तो यह जानकर स्तब्ध रह गए कि भंवल दा अब इस दुनिया में नहीं रहे। उनके घर में लेखक को एक पत्र मिला, जिसमें भंवल दा ने समाज की कठोर सच्चाई को उजागर किया था। उन्होंने लिखा था कि समाज सदा से ही दो वर्गों में बँटा रहा है। पहला वर्ग वह है, जो अपनी उन्नति और सुख-सुविधाओं के लिए दूसरे वर्ग का उपयोग करता है और ऐशो-आराम की जिंदगी जीता है। जबकि दूसरा वर्ग ईमानदारी, भाईचारा और सामाजिकता के मार्ग पर चलते हुए कठिनाइयों और परेशानियों से भरी जिंदगी जीता है, फिर भी दूसरों की सहायता को अपना कर्तव्य और धर्म मानता है। यह पत्र भंवल दा की जीवन-दृष्टि और उनके उच्च आदर्शों का सजीव प्रमाण है।

भंवल दा का जीवन वास्तव में एक सच्चे धावक का जीवन है। वे केवल खेल के मैदान में ही नहीं, बल्कि जीवन के हर क्षेत्र में धावक बने रहते हैं। कठिनाइयों, अभाव और संघर्षों से भरे जीवन में वे हमेशा दौड़ते रहे, परंतु हमेशा पीछे ही रह गए। उन्हें न तो खेलों में और न ही जीवन में कभी कोई पुरस्कार या सम्मान मिला। फिर भी उन्होंने हार मानकर दौड़ना छोड़ा नहीं। उनके लिए धावक होना केवल जीतना नहीं, बल्कि अंत तक प्रयासरत रहना था। यही कारण है कि वे जीवन के हर मोड़ पर संघर्षशील और कर्मशील बने रहते हैं और अंत तक धावक बने रहकर सच्चे स्पोर्ट्समैन स्पिरिट का परिचय देते हैं।

इस प्रकार हम देखते हैं कि ‘धावक’ शीर्षक वह दर्पण है जिसमें पूरी कहानी प्रतिबिम्बित होती है। शीर्षक कौतूहल एवं प्रभावोत्पादक होना चाहिए, जो हमारे मन में उत्सुकता का भाव भर दे। आलोच्य कहानी का शीर्षक इस कसौटी पर खरा उतरता है। ‘धावक’ शीर्षक कथानक, उद्देश्य, वातावरण एवं कथ्य का केन्द्र बिन्दु है। कहानी की उपयुक्तता और सटीकता सम्पूर्ण कहानी से जुड़ी हुई है। इस तरह शीर्षक भावपूर्ण, सार्थक और सटीक है।

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