जांच अभी जारी है शीर्षक के औचित्य पर प्रकाश डालिए॥ जाँच अभी जारी है शीर्षक के औचित्य पर प्रकाश डालिए ॥ Jaach Abhi Jaari Hai kahani ke sheershak ka aauchitya
किसी भी साहित्यिक रचना का शीर्षक उसकी आत्मा के समान होता है। शीर्षक ही वह आधार है जो पूरी कहानी या कविता के कथानक और उद्देश्य को पाठक के सामने संक्षेप में प्रस्तुत करता है। शीर्षक आकर्षक और प्रभावी हो तो पाठक स्वतः ही उसे पढ़ने की ओर प्रेरित होता है। इसलिए कहा जा सकता है कि शीर्षक केवल नाम नहीं होता, बल्कि रचना का आईना होता है जिसमें पूरी घटना प्रतिबिंबित होती है।
‘जाँच अभी जारी है’ ममता कालिया द्वारा लिखी गई एक यथार्थवादी कहानी है। इस कहानी में कार्यस्थल पर कामकाजी महिला अपर्णा को झूठे आरोपों में फँसाकर जाँच का सामना करना पड़ता है। अपर्णा एक साहसी और स्वाभिमानी महिला है। वह अन्याय के सामने झुकने के बजाय पूरी दृढ़ता से परिस्थितियों का मुकाबला करती है। कहानी का केंद्र बिंदु यही जाँच है, जो लगातार चलती रहती है और जिसका अंत भी स्पष्ट रूप से नहीं होता। यही कारण है कि इसका शीर्षक ‘जाँच अभी जारी है’ रखा गया है।
शीर्षक पढ़ते ही पाठक के मन में स्वाभाविक रूप से कई प्रश्न उठते हैं –
यह जाँच किसकी है?
जाँच क्यों बैठाई गई है?
इसके लिए जिम्मेदार लोग कौन हैं?
जाँच कब समाप्त होगी?
इन सवालों से पाठक के मन में कौतूहल और जिज्ञासा पैदा होती है। यही एक अच्छे शीर्षक की पहचान है कि वह पाठक को कहानी पढ़ने के लिए प्रेरित करे।
कहानी का घटनाक्रम पूरी तरह इसी जाँच के इर्द-गिर्द घूमता है। अपर्णा को अधिकारियों के तिरस्कार, आरोप-प्रत्यारोप और मानसिक तनाव का सामना करना पड़ता है। लेकिन उसके साहस और अडिग निश्चय के कारण वह टूटती नहीं है। जाँच की प्रक्रिया कभी समाप्त न होने वाली स्थिति का रूप ले लेती है। इस निरंतर चलने वाली जाँच को ही शीर्षक के रूप में प्रस्तुत किया गया है, जो अत्यंत उपयुक्त है।
यदि इस कहानी का कोई और शीर्षक रखा जाता, जैसे – “अपर्णा का संघर्ष” या “झूठे आरोप”, तो संभव है कि पाठकों के मन में इतनी जिज्ञासा न पैदा होती। लेकिन ‘जाँच अभी जारी है’ शीर्षक कहानी की वास्तविकता और इसके वातावरण को एकदम सही तरीके से व्यक्त करता है। यह न केवल आकर्षक है, बल्कि पाठकों को अंत तक बाँध कर भी रखता है।
इसके अतिरिक्त यह शीर्षक समाज के उस कठोर यथार्थ का भी प्रतीक है जिसमें सच्चाई की खोज अक्सर अधूरी रह जाती है और न्याय की प्रक्रिया लंबी खिंचती रहती है। अपर्णा के मामले में भी जाँच का कोई ठोस निष्कर्ष सामने नहीं आता, बल्कि वह निरंतर चलती रहती है। यही संदेश लेखक ने शीर्षक के माध्यम से पाठकों तक पहुँचाया है कि जीवन में कई बार संघर्ष और अन्याय की यह जाँच कभी पूरी नहीं होती, बल्कि जारी ही रहती है।
अतः हम कह सकते हैं कि यह शीर्षक अत्यंत उपयुक्त, प्रभावशाली और कौतूहल जगाने वाला है। यह कहानी की संपूर्णता को संक्षेप में प्रस्तुत करता है और पाठक के मन में गहरी छाप छोड़ता है। ‘जाँच अभी जारी है’ शीर्षक न केवल आकर्षक है, बल्कि कहानी के कथानक और संदेश से भी पूर्णतः मेल खाता है। यह शीर्षक पाठक की जिज्ञासा को बढ़ाता है, कहानी के मूल भाव को प्रकट करता है और सामाजिक यथार्थ को उजागर करता है। इसलिए यह शीर्षक पूरी तरह सार्थक और औचित्यपूर्ण है।
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