नमक कहानी की मार्मिकता पर विचार कीजिए॥ नमक कहानी में व्यक्त लेखिका के विचारों को अपने शब्दों में लिखें॥
उत्तर: ‘नमक’ कहानी भारत-पाकिस्तान विभाजन के बाद दोनों देशों के लोगों की भावनाओं को बहुत ही मार्मिक ढंग से प्रस्तुत करती है। कहानी की नायिका सफ़िया एक दिन अपने पड़ोसी सिख परिवार के घर कीर्तन में जाती है, जहाँ एक सिख बीबी को देखकर उसे अपनी माँ की याद आ जाती है, क्योंकि वह महिला उसकी माँ जैसी दिखती है। सफ़िया की स्नेहभरी दृष्टि से प्रभावित होकर सिख बीबी उसके बारे में जानना चाहती हैं। तब घर की बहू बताती है कि सफ़िया मुसलमान है और वह लाहौर अपने भाई से मिलने जा रही है। यह सुनकर सिख बीबी भावुक हो जाती हैं और बताती हैं कि उनका भी वतन लाहौर था। उन्हें लाहौर के लोग, वहाँ की संस्कृति, खानपान और जीवनशैली आज भी बहुत याद आती है। जब सफ़िया उनसे पूछती है कि क्या वह वहाँ से उनके लिए कोई चीज़ लाना चाहेंगी, तो सिख बीबी बहुत भावुक होकर बस थोड़े-से लाहौरी नमक की माँग करती हैं, जो अपने वतन की मिट्टी और यादों का प्रतीक बन जाता है।
सफ़िया लाहौर में पंद्रह दिनों तक रुकी और वहाँ उसे बहुत प्यार और सम्मान मिला। इतने अच्छे व्यवहार के कारण उसे पता ही नहीं चला कि पंद्रह दिन कैसे बीत गए। वहाँ से मित्रों, संबंधियों और शुभचिंतकों ने उसे ढेर सारे उपहार दिए। सफ़िया ने सिख बीबी के लिए एक सेर लाहौरी नमक भी लिया, जो उसने वादा किया था। सफ़िया का भाई एक पुलिस अफ़सर था। जब सफ़िया ने उससे नमक ले जाने की बात कही, तो उसने बताया कि नमक ले जाना गैरकानूनी है और कस्टम अधिकारी सामान की तलाशी लेते हैं। उसने यह भी कहा कि भारत में नमक की कोई कमी नहीं है, इसलिए ले जाने की जरूरत नहीं। इस पर सफ़िया ने भावुक होकर बताया कि वह नमक किसी आम व्यक्ति के लिए नहीं, बल्कि एक ऐसी सिख बीबी के लिए ले जा रही है जो उसकी माँ जैसी दिखती हैं और जिनका वतन लाहौर है। यह नमक उनके लिए एक भावनात्मक सौगात है। जब भाई ने कहा कि अगर पकड़ी गई तो बदनामी होगी, तब सफ़िया ने स्पष्ट रूप से कहा कि वह नमक छिपाकर नहीं, दिखाकर ले जाएगी, क्योंकि प्रेम, इंसानियत और शालीनता किसी भी कानून से ऊपर होते हैं। इतना कहकर उसकी आँखों में आँसू आ गए, जो उसकी भावनात्मक सच्चाई और मानवीय संवेदना को दर्शाते हैं।
रात में सफ़िया ने सामान की पैकिंग करते समय नमक की पुड़िया फल की टोकरी में छिपा दी, क्योंकि उसे याद था कि लाहौर आते समय कस्टम वाले फलों की जाँच नहीं कर रहे थे। इसके बाद वह सो गई और सपने में लाहौर की सुंदरता, भाई और अपने संबंधियों को देखा। अचानक नींद खुली तो उसे एक मित्र का वाक्य याद आया, जिसने कीनू की टोकरी देते समय कहा था – “यह हिन्दुस्तान-पाकिस्तान की एकता का मेवा है।”
अगले दिन जब वह फर्स्ट क्लास वेटिंग रूम में बैठी थी और उसका सामान कस्टम जाँच के लिए जा रहा था, तो उसने निश्चय किया कि वह प्रेम की सौगात चोरी से नहीं ले जाएगी। उसने नमक की पुड़िया निकालकर अपने बैग में रख ली और कस्टम अधिकारी के सामने खुद ही वह पुड़िया रख दी। साथ ही पूरी कहानी भी बता दी।
कस्टम अधिकारी दिल्ली का रहने वाला था। वह भावुक होकर बोला – “मुहब्बत तो कस्टम से इस तरह गुजर जाती है कि कानून हैरान रह जाता है।” उसने सफ़िया से कहा – “जाकर जामा मस्जिद की सीढ़ियों को मेरा सलाम कहिएगा और उस सिख बीबी से कहिएगा कि लाहौर अब भी उनका वतन है और दिल्ली मेरा।”
जब गाड़ी भारत की ओर बढ़ी, तो अटारी पर पाकिस्तानी पुलिस उतर गई और भारतीय पुलिस सवार हो गई। यह देखकर सफ़िया सोचने लगी – एक जैसी शक्लें, एक जैसे कपड़े, एक जैसी भाषा, फिर भी दोनों के हाथों में बंदूकें क्यों हैं? यह दृश्य विभाजन की पीड़ा और कृत्रिम सीमाओं की विडंबना को उजागर करता है।
अमृतसर में जो कस्टम अधिकारी सफ़िया के सामान की जाँच कर रहा था, वह ढाका (बांग्लादेश) का रहने वाला था। जब सफ़िया ने उससे कहा कि उसके पास थोड़ा-सा नमक है और नमक से जुड़ी पूरी कहानी सुनाई, तो अधिकारी मुस्कुराते हुए बोला – “वैसे तो डाभ (नारियल) कोलकाता में भी मिलता है, जैसे नमक यहाँ भी है, लेकिन हमारे ढाका के डाभ की बात ही कुछ और है। हमारी ज़मीन और पानी का स्वाद अलग है।”
इस बात को सुनकर सफ़िया सोचने लगी – “किसका वतन कहाँ है? वह जो कस्टम के इस पार है या उस पार?”
यह विचार हमें यह सिखाता है कि भले ही भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश जैसे देश अलग-अलग हैं, लेकिन वहां के लोगों के दिलों में कोई भेद नहीं है। उनकी संवेदनाएं, संस्कृति और इंसानियत एक जैसी हैं। देश की सीमाएँ राजनीतिक हो सकती हैं, लेकिन दिलों की सीमाएँ नहीं होतीं।
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