आत्मत्राण कविता का सारांश अपने शब्दों में लिखिए ॥ Aatmtran Kavita Summary ॥ आत्मत्राण कविता का सार
‘आत्मत्राण’ कविता रवीन्द्रनाथ ठाकुर की महान काव्य रचनाओं में से एक है। इसे मूल रूप से बंगला भाषा में लिखा गया था और बाद में हिन्दी के प्रसिद्ध साहित्यकार हजारी प्रसाद द्विवेदी ने इसका अनुवाद किया। द्विवेदी जी ने न केवल इस कविता को हिन्दी में प्रस्तुत किया, बल्कि अनुवाद करते समय उसकी मूल आत्मा और गहराई को भी सुरक्षित रखा। इस कारण पाठक को ऐसा अनुभव होता है मानो कविता मूल रूप से हिन्दी में ही लिखी गई हो।
इस कविता में कवि का भाव अत्यंत गहन और प्रेरणादायी है। कवि प्रभु से सीधे संवाद करता है और कहता है कि वह प्रभु से किसी प्रकार की सहज सहायता या मुसीबतों से मुक्ति की प्रार्थना नहीं करता। कवि चाहता है कि उसका जीवन संघर्षों से भरा हो, क्योंकि संघर्ष ही मनुष्य को साहसी और दृढ़ बनाता है। वह प्रभु से प्रार्थना करता है कि उसे इतनी शक्ति प्रदान करें कि वह आने वाली विपत्तियों और कठिनाइयों का सामना स्वयं कर सके।
कवि का कहना है कि प्रभु यदि चाहें तो सभी दुखों और कठिनाइयों को समाप्त कर सकते हैं, किंतु वह यह नहीं चाहता कि प्रभु ऐसा करें। इसके विपरीत वह चाहता है कि प्रभु उसे दुःख सहने की सामर्थ्य दें और उसके भीतर धैर्य तथा साहस का विकास करें। यदि जीवन में क्षति हो, हानि उठानी पड़े या दुःख बढ़ जाए, तो वह उसे सहजता से सह सके। कवि यह भी प्रार्थना करता है कि उसे इतना विवेक और विश्वास मिले कि किसी भी परिस्थिति में उसका प्रभु पर से विश्वास न डगमगाए।
इस कविताके माध्यम से कवि कहना चाहते है कि जीवन में कठिनाइयाँ और संकट हमें तोड़ने के लिए नहीं आते, बल्कि वे हमें और मजबूत बनाने का अवसर प्रदान करते हैं। सच्चा आत्मबल तभी मिलता है जब हम अपने दुखों और चुनौतियों का सामना स्वयं करते हैं। रवीन्द्रनाथ ठाकुर इस कविता के माध्यम से यह प्रेरणा देते हैं कि मनुष्य को प्रभु से केवल मार्गदर्शन और शक्ति की प्रार्थना करनी चाहिए, न कि समस्याओं से पलायन की।
इस प्रकार ‘आत्मत्राण’ कविता मनुष्य को आत्मबल, धैर्य, साहस और अटूट विश्वास का संदेश देती है, जो जीवन को सार्थक और महान बनाती है।
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