आत्मत्राण कविता का मूल भाव अपने शब्दों में लिखें

आत्मत्राण कविता का मूल भाव अपने शब्दों में लिखें॥ ‘आत्मत्राण’ कविता का मूल भाव अपने शब्दों में लिखें

आत्मत्राण कविता का मूल भाव अपने शब्दों में लिखें॥ ‘आत्मत्राण’ कविता का मूल भाव अपने शब्दों में लिखें

आत्मत्राण कविता का मूल भाव इस प्रकार से है – 

कवि रवीन्द्रनाथ ठाकुर इस कविता में ईश्वर से एक विशेष प्रार्थना करते हैं। वे कहते हैं कि – हे प्रभु! आप मुझे जीवन की विपदाओं और कठिनाइयों से मत बचाइए। मैं चाहता हूँ कि जब भी जीवन में मुसीबत आए तो मैं उससे डरूँ नहीं। यदि आप मेरे दुःख भरे हृदय को सांत्वना न भी दें तो कोई बात नहीं, लेकिन मुझे इतनी शक्ति अवश्य दें कि मैं अपने दुखों पर विजय प्राप्त कर सकूँ।

कवि कहते हैं – यदि दुख के समय कोई मेरा सहारा न बने, तब भी मेरा आत्मबल इतना दृढ़ हो कि मैं अकेले ही अपने दुःखों का सामना कर सकूँ। क्योंकि इस संसार में सच्चा सहारा केवल आत्मबल ही है।

हो सकता है कि जीवन में मुझे हानि ही उठानी पड़े और लाभ केवल एक धोखा बनकर रह जाए, फिर भी मैं उसे अपनी वास्तविक क्षति नहीं मानूँगा। मैं ईश्वर से यह नहीं चाहता कि वे मुझे हर दुख और कष्ट से मुक्ति दें, बल्कि मैं उनसे यही विनती करता हूँ कि मुझे कठिनाइयों को सहने और उन पर विजय पाने की शक्ति दें।

यदि आप मेरे दुःखों का बोझ हल्का न कर सकें या मुसीबत के समय मुझे ढाढ़स न भी दिलाएँ, तो भी इतना कर दीजिए कि मैं अपने दुखों को निर्भय होकर सहन कर सकूँ। और जब जीवन में सुख मिले, तब भी मैं सिर झुकाकर हर क्षण आपका स्मरण करता रहूँ।

कवि का कहना है कि जब दुख और कठिनाई के अंधकार में पूरा संसार साथ छोड़ दे और सब धोखा दे दें, तब भी मेरा विश्वास आप पर बना रहे। संसार से भरोसा टूट जाए, तब भी प्रभु पर मेरा भरोसा अडिग रहे।

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