कहानी कला के आधार पर चप्पल कहानी की समीक्षा कीजिए।
कावुटूरि वेंकट नारायण राव की ‘चप्पल’ कहानी संवेदनशील मानवीय मूल्यों पर आधारित है। लेखक ने कहानी कला के माध्यम से समाज के उपेक्षित और तिरस्कृत वर्ग की भावनाओं को सजीव रूप में प्रस्तुत किया है। इसमें दिखाया गया है कि मानवीय आदर्श केवल महान लोगों तक सीमित नहीं, बल्कि सामान्य और उपेक्षित व्यक्ति भी उन्हें आत्मसात कर सकता है। भाषा सरल और प्रभावशाली है तथा कथा-वस्तु मार्मिक और यथार्थपरक है। पात्रों का चित्रण स्वाभाविक है जो कहानी को जीवंत बना देता है। इस प्रकार यह कहानी अपनी कलात्मकता और संदेश दोनों दृष्टियों से अत्यंत सफल कही जा सकती है।
1. शीर्षक
किसी भी कहानी का शीर्षक उसकी आत्मा होता है, जो पूरे कथानक का सार प्रस्तुत करता है। शीर्षक ऐसा होना चाहिए जिससे पाठकों में जिज्ञासा जागृत हो और वे कहानी पढ़ने के लिए प्रेरित हों। ‘चप्पल’ कहानी का शीर्षक पहली ही दृष्टि में कौतूहल जगाता है। पाठकों के मन में अनेक प्रश्न उत्पन्न होते हैं—आखिर चप्पल का कहानी से क्या संबंध है? यह किसकी चप्पल है? लेखक ने चप्पल को ही शीर्षक क्यों चुना? इन प्रश्नों का उत्तर धीरे-धीरे कहानी में मिलता है और पाठक इससे भावनात्मक रूप से जुड़ जाते हैं। इस दृष्टि से ‘चप्पल’ शीर्षक अत्यंत सार्थक, आकर्षक और कलात्मक है, जो इस कहानी को श्रेष्ठ कहानियों की श्रेणी में प्रतिष्ठित करता है।
2. कथानक
‘चप्पल’ कहानी का कथानक साधारण पृष्ठभूमि पर आधारित होते हुए भी अत्यंत प्रभावशाली और कसावट से भरा हुआ है। इसमें एक छोटी-सी घटना को इस प्रकार पिरोया गया है कि वह पाठक के मन को गहराई तक छू लेती है। मास्टर जी अपने पुराने, घिसे-पिटे चप्पलों को मरम्मत कराने के लिए चर्मकार रंगय्या के पास भेजते हैं। यह सामान्य-सी घटना रंगय्या के जीवन में असाधारण महत्व ग्रहण कर लेती है। वह गुरुजनों के चप्पलों को साधारण वस्तु न मानकर श्रद्धा का प्रतीक समझता है और उन्हें नया रूप देकर स्वयं मास्टर जी को लौटाना चाहता है। परंतु नियति को कुछ और ही स्वीकार्य होता है। अचानक लगी भीषण आग में रंगय्या चप्पलों को बचाने के प्रयास में स्वयं अपनी जान गंवा देता है, किंतु चप्पल सुरक्षित रह जाते हैं। इस छोटी-सी घटना को लेखक ने करुणा और संवेदना से भरकर अत्यंत मर्मस्पर्शी कथा का रूप दिया है। कथानक की यही कसावट और प्रवाह इसे उत्कृष्ट कहानी बनाती है।
3. कथोपकथन
‘चप्पल’ कहानी का कथानक अपनी मनोवैज्ञानिक गहराई और कथोपकथन की सहजता के कारण अत्यंत प्रभावशाली बन गया है। लेखक ने छोटे-छोटे वाक्यों का प्रयोग कर पाठक के भीतर कौतूहल की लहर उत्पन्न की है। संवाद इस प्रकार रचे गए हैं कि उनमें प्रश्न और उत्तर के साथ-साथ आगे की जिज्ञासा भी छिपी रहती है। उदाहरणस्वरूप—“नहीं! घंटी बजा तब आया”, “रमण न हिला न डुला”, “ठीक है तो जा अब”, “बापू-बापू वह फुसफुसाने लगा”, “क्या है रे!”—ये सभी वाक्य कहानी के वातावरण को स्वाभाविकता और रोचकता प्रदान करते हैं। इसी प्रकार स्कूल में रंगय्या और मास्टर साहब के बीच संवाद पाठकों के मन में जिज्ञासा और भावुकता दोनों उत्पन्न करते हैं—“आप अपने बच्चों को देखने आए हैं?”, “हाँ”, “वह किस दर्ज में पढ़ रहा है?”, “जी पहली में।” इस प्रकार संक्षिप्त, सटीक और प्रभावशाली संवादों के कारण कहानी कथोपकथन की दृष्टि से भी अत्यंत सफल और जीवंत बन जाती है।
4. पात्र एवं चरित्र चित्रण
‘चप्पल’ कहानी में पात्रों की संख्या कम होने के बावजूद उनका चित्रण प्रभावशाली है। रमण, मास्टर साहब, गंगा जैसे पात्र कहानी को गति प्रदान करते हैं, किंतु इसका केंद्रबिंदु रंगय्या है। पूरी कथा का ताना-बाना उसी के इर्द-गिर्द बुना गया है। रंगय्या केवल एक चर्मकार नहीं, बल्कि गुरुजनों के प्रति समर्पण और श्रद्धा का प्रतीक है। उसका चरित्र करुणा, त्याग और आदर्श का प्रतिनिधित्व करता है। यदि रंगय्या को कथा से हटा दिया जाए तो कहानी का अस्तित्व ही समाप्त हो जाएगा। इस प्रकार पात्र-चित्रण की दृष्टि से यह कहानी अत्यंत सफल और प्रभावशाली है।
5. भाषा-शैली
‘चप्पल’ कहानी की भाषा सरल, सहज और बोधगम्य है, जो पाठकों के मन को सीधे छू लेती है। लेखक ने प्रवाहमयी भाषा का प्रयोग किया है, जिससे कथा का रस निरंतर बना रहता है। चूंकि यह अनूदित कहानी है, इसलिए इसमें हिन्दी के साथ-साथ तेलुगू, अंग्रेजी तथा अरबी-फारसी के शब्द भी देखने को मिलते हैं, जो इसे बहुभाषिक रंग प्रदान करते हैं। कहानी में वर्णनात्मक शैली का प्रयोग हुआ है, जिसमें घटनाओं का क्रम ऐसा गढ़ा गया है कि पाठक आरंभ से अंत तक बंधा रहता है। संवाद संक्षिप्त और प्रभावशाली हैं, जो पात्रों के भावों को स्वाभाविक रूप से प्रकट करते हैं। इस प्रकार भाषा-शैली कहानी को जीवंत और रोचक बनाती है।
6. देश-काल एवं परिस्थिति
किसी भी कहानी का देश-काल और परिस्थिति उसकी वास्तविकता को सामने लाने का कार्य करता है। ‘चप्पल’ कहानी आज़ादी के पाँचवें दशक की पृष्ठभूमि पर आधारित है, जब समाज में आर्थिक और सामाजिक असमानताएँ गहराई से विद्यमान थीं। रंगय्या का यह कथन कि वह पचास वर्षों से चप्पल बनाने का काम कर रहा है, परंतु उसकी स्थिति में कोई परिवर्तन नहीं आया, उस समय की राजनीतिक और सामाजिक विडंबना को उजागर करता है। इसमें राजनीतिक व्यवस्था पर व्यंग्य भी निहित है। रंगय्या समाज के निम्न वर्ग का प्रतिनिधि है, इसलिए उसे महलों या सम्पन्न परिवेश में नहीं दिखाया गया, बल्कि एक सामान्य, तंग और अभावग्रस्त वातावरण में प्रस्तुत किया गया है। उसके मोहल्ले का जीवन शराबखोरी, झगड़ों और संघर्षों से भरा हुआ है, जो निम्नवर्गीय जीवन की यथार्थता को अभिव्यक्त करता है। लेखक ने इन परिस्थितियों को अत्यंत सूक्ष्मता से चित्रित कर कहानी को यथार्थपरक और मार्मिक बना दिया है। इस प्रकार ‘चप्पल’ कहानी अपने समय और समाज का सजीव दर्पण है।
7. उद्देश्य
‘चप्पल’ कहानी का उद्देश्य अत्यंत स्पष्ट और मानवीय मूल्यों पर आधारित है। लेखक यह संदेश देना चाहता है कि प्रेम का स्वरूप बहुत व्यापक होता है, जिसे किसी सीमित दायरे में नहीं बाँधा जा सकता। सच्चे प्रेम में त्याग और बलिदान की भावना निहित रहती है। प्रेम केवल मिलाने का कार्य नहीं करता, बल्कि कई बार दूरी और अलगाव को भी स्वीकार करता है। रंगय्या का चरित्र इसी त्यागमयी प्रेम का प्रतीक है, जिसने अपने गुरुजनों के प्रति निष्ठा और श्रद्धा के कारण अपनी जान तक न्योछावर कर दी। त्याग, ममता और कृतज्ञता किसी भी समाज या समुदाय की महान विशेषताएँ होती हैं। यही इस कहानी का मुख्य उद्देश्य और जीवनदायी संदेश है।
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