धूमकेतुओं के बारे में प्राचीन काल में कैसी अवधारणा थी? स्पष्ट कीजिए। अथवा धूमकेतु के विषय में आप क्या जानते हैं? पाठ के आधार पर लिखिए।

धूमकेतुओं के बारे में प्राचीन काल में कैसी अवधारणा थी? स्पष्ट कीजिए। अथवा धूमकेतु के विषय में आप क्या जानते हैं? पाठ के आधार पर लिखिए।

धूमकेतुओं के बारे में प्राचीन काल में कैसी अवधारणा थी? स्पष्ट कीजिए। अथवा धूमकेतु के विषय में आप क्या जानते हैं? पाठ के आधार पर लिखिए।

प्राचीन काल में धूमकेतुओं को लेकर लोगों की सोच बिल्कुल अलग और अंधविश्वासों पर आधारित थी। हमारे देश में ही नहीं, बल्कि लगभग पूरे विश्व में जब भी आकाश में धूमकेतु दिखाई देता था, तो लोग उसे किसी अनहोनी या अमंगल का संकेत मानते थे। धूमकेतु का दर्शन लोगों को डरावना लगता था और ऐसा विश्वास किया जाता था कि इसके आने से युद्ध, महामारी, अकाल, भूकंप या राजा का निधन जैसी बड़ी-बड़ी विपत्तियाँ आ सकती हैं। इस कारण धूमकेतु को अशुभ और अमंगलकारी तारा कहा जाता था।

लेकिन समय के साथ विज्ञान ने इन धारणाओं को गलत साबित कर दिया। पंद्रहवीं शताब्दी में प्रसिद्ध खगोलविद एडमंड हेली ने अपने शोध द्वारा यह सिद्ध किया कि धूमकेतु कोई अमंगलकारी तारा नहीं है, बल्कि यह भी सौरमंडल का ही एक सदस्य है। उन्होंने बताया कि धूमकेतु भी सूर्य की परिक्रमा करते हैं, ठीक उसी तरह जैसे ग्रह करते हैं। हेली ने यह भी अनुमान लगाया था कि एक विशेष धूमकेतु (जो बाद में “हेली का धूमकेतु” कहलाया) समय-समय पर लौटकर दिखाई देगा, और उनकी यह भविष्यवाणी सत्य भी हुई। इससे धूमकेतुओं के प्रति लोगों की गलत धारणाएँ टूटने लगीं।

आज के वैज्ञानिक युग में धूमकेतु को एक प्राकृतिक खगोलीय घटना माना जाता है। यह बर्फ, गैस, धूल और चट्टानों से मिलकर बना होता है और जब यह सूर्य के पास आता है, तो इसकी पूंछ चमकने लगती है। इसी चमकदार पूंछ के कारण यह दूर से बहुत अलग और आकर्षक दिखाई देता है।

हालाँकि धूमकेतुओं के बारे में आज भी बहुत-सी बातें पूरी तरह स्पष्ट नहीं हैं। इसी वजह से यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी, जापान और अन्य विकसित देशों ने कई अंतरिक्ष यान प्रक्षेपित किए हैं, ताकि धूमकेतुओं की संरचना, उनकी उत्पत्ति और उनकी गति के बारे में गहराई से जानकारी प्राप्त की जा सके।

इस प्रकार, जहाँ एक समय धूमकेतुओं को डर और अमंगल का प्रतीक माना जाता था, वहीं अब विज्ञान ने यह साबित कर दिया है कि वे भी सौरमंडल की सामान्य खगोलीय वस्तुएँ हैं। उनसे डरने की कोई आवश्यकता नहीं है, बल्कि उन्हें समझने और जानने की जिज्ञासा होनी चाहिए।

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