धूमकेतु पाठ का सारांश॥ धूमकेतु पाठ का सारांश अपने शब्दों में लिखिए॥
‘धूमकेतु’ नामक निबंध के लेखक डा. गुणाकर मूले हैं। यह एक शोधपरक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से लिखा गया निबंध है, जिसमें लेखक ने धूमकेतुओं के बारे में विस्तृत जानकारी दी है। प्राचीन समय से ही लोग धूमकेतुओं को लेकर अंधविश्वासों और गलत धारणाओं से ग्रसित थे। हमारे देश ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में धूमकेतु को अशुभ और अमंगलकारी माना जाता था। जब भी आकाश में धूमकेतु दिखाई देता, लोग इसे विपत्ति, युद्ध, महामारी या राजाओं के पतन का संकेत समझते थे। परंतु विज्ञान ने इन मान्यताओं को गलत सिद्ध किया और यह स्पष्ट कर दिया कि धूमकेतु भी अन्य ग्रहों की ही तरह सौरमंडल के सदस्य हैं।
धूमकेतु ग्रहों की तरह सूर्य की परिक्रमा करते हैं। फर्क केवल इतना है कि ग्रहों की कक्षा नियमित और लगभग गोल होती है, जबकि धूमकेतुओं की कक्षा अंडाकार (elliptical) होती है और यह ग्रहों की कक्षाओं से अलग कोण बनाते हुए सूर्य की परिक्रमा करते हैं। कभी-कभी किसी अन्य पिंड के गुरुत्वाकर्षण के कारण ये अपनी कक्षा से भटककर अंतरिक्ष में बहुत दूर निकल जाते हैं। यही कारण है कि धूमकेतु कई बार अचानक प्रकट हो जाते हैं और लंबे समय तक फिर दिखाई नहीं देते।
हमारे देश में धूमकेतुओं का उल्लेख वैदिक साहित्य और महाभारत में मिलता है। प्राचीन खगोलशास्त्री वराहमिहिर ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक बृहत्संहिता में धूमकेतुओं का वर्णन किया है और उनके शुभ-अशुभ फल बताए हैं। इससे यह स्पष्ट होता है कि प्राचीन समय से ही धूमकेतुओं को विशेष महत्व दिया जाता रहा है।
पंद्रहवीं शताब्दी में एडमंड हेली नामक वैज्ञानिक ने धूमकेतुओं का गहन अध्ययन किया। उन्होंने यह बताया कि धूमकेतु बार-बार एक निश्चित समय के बाद लौटकर दिखाई देते हैं। आज जिस धूमकेतु को ‘हेली का धूमकेतु’ कहा जाता है, उसका नाम भी उन्हीं के नाम पर रखा गया है। हेली ने यह भी सिद्ध किया कि धूमकेतु का आकार अत्यंत विशाल होता है। इसका सिर, नाभिक और पूँछ तीन प्रमुख भाग होते हैं। धूमकेतु के सिर का घेरा लाखों किलोमीटर का हो सकता है और इसकी पूँछ लगभग 20 करोड़ किलोमीटर लंबी हो सकती है। इतना विशाल आकार होने के कारण खगोलशास्त्री अम्रॉई पेरी ने इसे “आकाश का राक्षस” कहा था।
लेखक ने धूमकेतुओं के बारे में यह स्पष्ट किया है कि ये कोई भयावह या अमंगलकारी खगोलीय पिंड नहीं हैं। ये भी प्रकृति के नियमों के अनुसार सूर्य की परिक्रमा करते हैं। इसलिए हमें धूमकेतु को देखकर घबराने या अंधविश्वासों में फँसने की आवश्यकता नहीं है। विज्ञान ने हमारी सोच को बदल दिया है और हमें यह सिखाया है कि हमें ब्रह्मांड के रहस्यों को समझने के लिए तर्क और प्रमाण का सहारा लेना चाहिए, न कि अंधविश्वास का।
आज भी धूमकेतुओं के बारे में कई रहस्य पूरी तरह स्पष्ट नहीं हो पाए हैं। इन्हें जानने के लिए कई देश वैज्ञानिक शोध कर रहे हैं। यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी, जापान और अन्य विकसित देशों ने धूमकेतुओं की और सटीक जानकारी प्राप्त करने के लिए अंतरिक्ष यान भेजे हैं। इन अभियानों से उम्मीद है कि भविष्य में हमें धूमकेतुओं के गठन, उनकी संरचना और उनके व्यवहार के बारे में और अधिक प्रमाणिक जानकारी मिलेगी।
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