धूमकेतु पाठ का उद्देश्य क्या है ॥ धूमकेतु शीर्षक निबंध में निहित उद्देश्य स्पष्ट कीजिए

धूमकेतु पाठ का उद्देश्य क्या है ॥  धूमकेतु शीर्षक निबंध में निहित उद्देश्य स्पष्ट कीजिए ॥  Dhumketu Paath ka Uddeshya

धूमकेतु पाठ का उद्देश्य क्या है ॥  धूमकेतु शीर्षक निबंध में निहित उद्देश्य स्पष्ट कीजिए

डा. गुणाकर मूले द्वारा लिखित ‘धूमकेतु’ शीर्षक निबंध का मुख्य उद्देश्य पाठकों को धूमकेतुओं के बारे में सही, वैज्ञानिक और तथ्यपूर्ण जानकारी देना है। प्राचीन काल से ही लोग धूमकेतु को एक रहस्यमय और अमंगलकारी तारा मानते आए हैं। इसके प्रकट होने पर लोग डर जाते थे और इसे आपदाओं, युद्ध, महामारी या अकाल का सूचक समझते थे।

भारतीय ग्रंथों में भी धूमकेतु का उल्लेख मिलता है। महाभारत में कहा गया है कि जब महाभयंकर धूमकेतु पुष्य नक्षत्र में दिखाई देगा, तब भयंकर युद्ध होगा। इसी तरह अन्य देशों में भी इसे डर और अनिष्ट का कारण माना जाता था। उदाहरण के लिए सन् 1528 ई० में जब यूरोप के आकाश में धूमकेतु प्रकट हुआ तो वहाँ के लोग इतने भयभीत हो गए कि कई लोगों की मृत्यु हो गई और बहुत से लोग बीमार पड़ गए।

लेकिन विज्ञान के विकास के साथ-साथ इन अंधविश्वासों को दूर किया गया। प्रसिद्ध खगोलशास्त्री तीखे ब्राहे ने सन् 1577 में यह सिद्ध किया कि धूमकेतु पृथ्वी से बहुत दूर, चंद्रमा से भी आगे होते हैं। यह खोज अंधविश्वासों को तोड़ने में बहुत उपयोगी सिद्ध हुई।

इसके बाद महान वैज्ञानिक एडमंड हेली ने धूमकेतुओं का गहन अध्ययन किया। उन्होंने 1531, 1607 और 1682 में प्रकट हुए धूमकेतुओं का तुलनात्मक अध्ययन करके यह निष्कर्ष निकाला कि यह वास्तव में अलग-अलग धूमकेतु नहीं, बल्कि एक ही धूमकेतु है, जो 75–76 वर्ष में पुनः सूर्य की परिक्रमा करके लौटता है। उनकी इस भविष्यवाणी के अनुसार जब सन् 1758 में वही धूमकेतु फिर से प्रकट हुआ तो यह सिद्ध हो गया कि धूमकेतु भी ग्रहों की तरह सूर्य के चारों ओर परिक्रमा करते हैं और हमारे सौरमंडल के सदस्य हैं। यही धूमकेतु आज हेली का धूमकेतु नाम से प्रसिद्ध है।

इन वैज्ञानिक खोजों के माध्यम से यह स्पष्ट हो गया कि धूमकेतु न तो अनिष्टकारी होते हैं और न ही किसी विपत्ति का कारण। यह केवल एक खगोलीय घटना है, जो प्राकृतिक नियमों के अनुसार घटित होती है।

‘धूमकेतु’ निबंध का मुख्य उद्देश्य यही है कि धूमकेतुओं के बारे में समाज में फैले अंधविश्वासों को समाप्त किया जाए और लोगों को यह समझाया जाए कि यह कोई अमंगलकारी या भयावह तारा नहीं है, बल्कि एक सामान्य खगोलीय घटना है। विज्ञान ने स्पष्ट कर दिया है कि धूमकेतुओं का प्रकट होना प्राकृतिक नियमों के अंतर्गत होता है और इनमें डरने जैसी कोई बात नहीं है। इसलिए हमें इन आकाशीय घटनाओं को अंधविश्वास और डर की दृष्टि से नहीं, बल्कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखना और समझना चाहिए। यही इस निबंध का मूल उद्देश्य है, जो हमें ज्ञान, जागरूकता और तार्किक सोच की ओर प्रेरित करता है।

इसे भी पढ़िए:

 

 

Leave a Comment