‘नीड़ का निर्माण फिर-फिर’ शीर्षक कविता के प्रतिपाद्य को अपने शब्दों में लिखिए।
“नीड़ का निर्माण फिर-फिर” शीर्षक कविता का प्रतिपाद्य जीवन की कठिनाइयों और असफलताओं के बावजूद आशा, धैर्य और आत्मबल बनाए रखने का महत्व है। हरिवंश राय बच्चन इस कविता के माध्यम से यह संदेश देते हैं कि जीवन में आए विपत्तियाँ, दुःख और संकट स्थायी नहीं होते। जैसे तूफ़ान में पक्षियों के घोंसले उड़ जाते हैं, परंतु वे तिनका-तिनका जोड़कर फिर से नीड़ का निर्माण करते हैं, वैसे ही इंसान को भी अपने जीवन में आए संकटों और परेशानियों के बावजूद पुनर्निर्माण और आगे बढ़ने का साहस रखना चाहिए।
कविवर हरिवंश राय बच्चन चिड़िया के माध्यम से यह बताना चाहते हैं कि व्यक्तिरूपी चिड़िया को सदैव अपने जीवनरूपी घोंसले के नवनिर्माण में लगे रहना चाहिए। उसे अपने जीवन से प्रेम और स्नेह को कभी अलग नहीं करना चाहिए। यदि जीवन में किन्हीं कारणों या मतभेदों से कटुता उत्पन्न हो जाए, तब भी व्यक्ति को बार-बार उस कटुता को मिटाकर स्नेह और प्रेम की स्थापना करनी चाहिए। यही कविता का मूल उद्देश्य है।
कवि अपने निजी दुःख—विशेषकर पत्नी की असमय मृत्यु—को आधार बनाकर यह स्पष्ट करते हैं कि निराशा और पीड़ा जीवन का अंत नहीं, बल्कि नए सृजन और संभावनाओं की शुरुआत हैं। कविता में प्रकृति के माध्यम से दुःख और आशा के चक्र को चित्रित किया गया है: अंधकार, तूफ़ान और भारी आँधी के बाद फिर उजियारा और उषा का आगमन होता है, जो दर्शाता है कि जीवन में दुख स्थायी नहीं है और हर कठिनाई के बाद सुख और समाधान की संभावना रहती है।
इस प्रकार, “नीड़ का निर्माण फिर-फिर” का प्रतिपाद्य यह है कि जीवन में चाहे कितनी भी विपत्तियाँ क्यों न आएँ, व्यक्ति को हार मानने के बजाय आशा, प्रेम और साहस के साथ पुनः उठकर अपने जीवन को सँवारना चाहिए। यह कविता संघर्ष में भी मुस्कुराने, स्नेह बनाए रखने और हर बार नए सिरे से अपने नीड़—अपनी ज़िंदगी—का निर्माण करने की प्रेरणा देती है।
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