बिस्मिल्ला खाँ काशी छोड़कर क्यों नहीं जाना चाहते थे पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।

बिस्मिल्ला खाँ काशी छोड़कर क्यों नहीं जाना चाहते थे पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।

बिस्मिल्ला खाँ काशी छोड़कर क्यों नहीं जाना चाहते थे पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।

उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ काशी छोड़ना इसलिए नहीं चाहते थे क्योंकि उनका जीवन और संगीत काशी से गहरे जुड़ा था। उनका काशी के प्रति लगाव केवल भौगोलिक नहीं था, बल्कि आध्यात्मिक और सांस्कृतिक भी था। उनके पूर्वजों ने इसी शहर में शहनाई बजाई और वहीँ से उन्हें संगीत की तालीम मिली। उनके नाना और मामा का भी काशी से गहरा नाता था, इसलिए वे यहाँ की मिट्टी, गलियाँ, मंदिर और माहौल से इतने जुड़े थे कि किसी अन्य जगह जाने का विचार उनके लिए असंभव था।

बिस्मिल्ला खाँ के लिए काशी केवल रहने की जगह नहीं थी, बल्कि संगीत और साधना का केंद्र था। उन्होंने बचपन में काशी की गलियों, घाटों और मंदिरों की गूँज में संगीत का बीज बोया और नौबतखाने में घंटों रियाज करके अपने कौशल को संवार लिया। उनका मानना था कि जिस भूमि ने उन्हें संगीत और संस्कार दिया, वह उनके लिए सबसे महत्वपूर्ण है। उनके कथन—“ई काशी छोड़कर कहाँ जाएँ? गंगा यहाँ, बाबा विश्वनाथ यहाँ, बालाजी का मंदिर यहाँ। मरते दम तक न शहनाई छूटेगी, न काशी”—में उनकी अटूट श्रद्धा और काशी से गहन लगाव झलकता है।

इसके साथ ही, उनका जीवन गंगा-जमुनी तहजीब और हिन्दू-मुस्लिम एकता का प्रतीक भी था। उन्होंने अपने संगीत को इबादत की तरह माना और धर्म की सीमाओं से परे इसे लोगों को जोड़ने का माध्यम बनाया। काशी में संगीत महोत्सवों में उनकी उपस्थिति अनिवार्य थी, और वे हमेशा प्रेम, भाईचारे और संस्कृति की शिक्षा देते रहे। इस प्रकार, बिस्मिल्ला खाँ का काशी से लगाव उनके लिए सिर्फ स्थान का नहीं, बल्कि जीवन, साधना और भारतीय संस्कृति से जुड़ा गहरा बंधन था।

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