मनुष्य और सर्प कविता की व्याख्या ॥ Manushya Aur Sarp Kavita Ki Vyakhya Class 10 ॥ मनुष्य और सर्प कविता की व्याख्या क्लास 10
आप सभी का इस आर्टिकल में स्वागत है आज हम इस आर्टिकल के माध्यम मनुष्य और सर्प कविता की व्याख्या को पढ़ने जा रहे हैं। जो पश्चिम बंगाल के सरकारी विद्यालय के कक्षा 10 के पाठ्यपुस्तक साहित्य संचयन से पाठ 4 मनुष्य और सर्प से लिया गया है जिसके कवि रामधारी सिंह दिनकर है। तो चलिए मनुष्य और सर्प कविता की व्याख्या, Manushya Aur Sarp Kavita Ki Vyakhya Class 10 को देखें-
पद्यांश:1
चल रहा महाभारत का रण, जल रहा धरती का सुहाग,
फट कुरुक्षेत्र में खेल रही, नर के भीतर की कुटिल आग।
शब्दार्थ:
- रण – युद्ध
- धरती का सुहाग – धरती का सौभाग्य, जीवन का श्रृंगार
- नर – मनुष्य
- कुटिल आग – मनुष्य के मन की जलन, ईर्ष्या और बुराई की अग्नि
प्रश्न 1: रचना तथा रचनाकार का नाम लिखिए।
उत्तर:
यह पंक्तियाँ ‘मनुष्य और सर्प’ नामक कविता से ली गई हैं। इसके रचनाकार रामधारी सिंह ‘दिनकर’ हैं।
प्रश्न 2: पंक्तियों का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
इन पंक्तियों में रामधारी सिंह ‘दिनकर’ ने महाभारत के युद्ध की भीषणता का चित्रण किया है। वह बताते हैं कि कुरुक्षेत्र में भयंकर युद्ध चल रहा है। इतनी तबाही हो रही है कि ऐसा लगता है जैसे धरती का सौभाग्य (सुहाग) जलकर राख हो गया है। यह सब मनुष्य के भीतर की ईर्ष्या और कपट की आग के कारण हो रहा है, जो अब खुलकर युद्ध के रूप में सामने आ गई है। इस विनाशकारी आग से कोई भी बच नहीं पा रहा है।
काव्यगत सौंदर्य:
- इन पंक्तियों में महाभारत युद्ध की विनाशलीला का वर्णन है।
- कवि ने बताया है कि युद्ध का कारण मनुष्य की अपनी कुटिलता और ईर्ष्या है।
- धरती को मानवीय रूप देकर उसका मानवीकरण किया गया है।
- कविता में रौद्र रस का प्रयोग हुआ है।
- भाषा और शब्दचित्र युद्ध का वातावरण सजीव रूप में प्रस्तुत करते हैं।
पद्यांश:2
वाजियों-गजों की लोथों में, गिर रहे मनुज के छिन्न अंग,
बह रहा चतुष्पद और द्विपद का, रूधिर मिश्र हो एक संग।
शब्दार्थ:
- वाजियों – घोड़े
- गजों – हाथी
- लोथों – मांस के टुकड़े
- मनुज – मनुष्य
- छिन्न – कटे हुए
- चतुष्पद – चार पैर वाला (पशु)
- द्विपद – दो पैर वाला (मनुष्य)
- रूधिर – खून
- मिश्र – मिला हुआ
- संग – साथ
प्रश्न 1: पाठ व रचनाकार का नाम लिखिए।
उत्तर:
यह पंक्तियाँ ‘मनुष्य और सर्प’ नामक कविता से ली गई हैं। इसके रचनाकार रामधारी सिंह ‘दिनकर’ हैं।
प्रश्न 2: पंक्तियों का भावार्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
इन पंक्तियों में कवि ने महाभारत युद्ध की भीषणता और क्रूरता का दृश्य प्रस्तुत किया है। युद्ध इतना भयानक था कि घोड़े और हाथियों के शरीर के टुकड़ों पर मनुष्यों के कटे हुए अंग गिर रहे थे। मैदान में पशु और मनुष्य दोनों का खून मिलकर बह रहा था। यह बताना मुश्किल था कि किसका खून किसका है – पशु का या मनुष्य का। युद्ध ने सभी के जीवन को एक समान विनाश की ओर धकेल दिया था।
काव्यगत सौंदर्य:
- इन पंक्तियों में महाभारत युद्ध की भयावहता का गहन चित्रण किया गया है।
- यह बताया गया है कि मनुष्य की कुटिलता और लालच ने ही इस युद्ध को जन्म दिया।
- युद्ध के दृश्य इतने भयावह हैं कि धरती भी दुखी और व्यथित लगती है – यह मानवीकरण है।
- कविता में रौद्र रस का प्रभाव है, जो क्रोध और विनाश को दर्शाता है।
- भाषा और दृश्यात्मकता (Imagery) पाठक को भय और पीड़ा का अनुभव कराती है, जिससे वातावरण जीवंत हो उठता है।
पद्यांश:3
गत्वर, गैरेय, सुधर-भूधर से, लिए रक्त-रंजित शरीर,
ये जूझ रहे कौन्तेय-कर्ण, क्षण-क्षण करते गर्जन गंभीर।
शब्दार्थ:
- गत्वर – तेज गति वाला
- गैरेय – लाल रंग
- सुधर-भूधर – सुंदर और पहाड़ जैसे विशाल शरीर
- रक्त-रंजित – खून से सना हुआ
- कौंतेय – कुंती के पुत्र (युधिष्ठिर, भीम और अर्जुन)
- कर्ण – कुंती का पुत्र
- गर्जन – जोर से गर्जना करना, गरजना
प्रश्न 1: रचनाकार का नाम लिखिए।
उत्तर:
इन पंक्तियों के रचनाकार रामधारी सिंह ‘दिनकर’ हैं।
प्रश्न 2: पंक्तियों का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
इन पंक्तियों में महाभारत के युद्ध का जीवंत चित्र प्रस्तुत किया गया है। युद्ध के मैदान में तेज़ गति से दौड़ते हुए, विशाल और सुंदर शरीर वाले योद्धा, जो अब खून से सने हुए हैं, लड़ रहे हैं। ये योद्धा हैं – कौंतेय (युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन) और कर्ण। वे आपस में भीषण युद्ध कर रहे हैं। हर क्षण उनके शौर्य की गरज सुनाई देती है, जो युद्ध की गंभीरता को दर्शाती है।
काव्यगत सौंदर्य:
- इन पंक्तियों में महाभारत युद्ध की भयंकरता और वीरता का चित्रण है।
- यह बताया गया है कि मनुष्य की कुटिल प्रवृत्ति ने इस महायुद्ध को जन्म दिया।
- धरती को भावनात्मक रूप में प्रस्तुत किया गया है – मानवीकरण।
- ‘गत्वर, गैरेय’, ‘रक्त-रंजित’, ‘कौंतेय-कर्ण’, ‘गर्जन-गंभीर’ – इन शब्दों में अनुप्रास अलंकार है (एक ही वर्ण की पुनरावृत्ति)।
- ‘क्षण-क्षण’ में छेकानुप्रास अलंकार है।
- रस – वीभत्स है, जो युद्ध की भयंकरता को दर्शाता है।
- भाषा स्थिति और वातावरण के अनुसार प्रभावशाली है।
पद्यांश: 4
दोनों रण-कुशल धनुर्धर नर, दोनों सम बल, दोनों समर्थ,
दोनों पर दोनों की अमोघ, थी विशिख वृष्टि हो रही व्यर्थ।
शब्दार्थ:
- रण-कुशल – युद्ध में निपुण, दक्ष
- धनुर्धर नर – धनुष चलाने वाले योद्धा
- सम बल – समान शक्ति वाले
- समर्थ – योग्य, सक्षम
- अमोघ – जो कभी खाली नहीं जाता, अचूक
- विशिख वृष्टि – बाणों (तीरों) की वर्षा
- व्यर्थ – बेकार, निष्फल
प्रश्न 1: प्रस्तुत पद्यांश के पाठ का नाम लिखिए।
उत्तर:
यह पद्यांश ‘मनुष्य और सर्प’ पाठ से लिया गया है।
प्रश्न 2: पद्यांश का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
इन पंक्तियों में कवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ ने यह बताया है कि महाभारत युद्ध में कौरव और पांडव पक्ष के वीर योद्धा धनुष चलाने में बहुत कुशल थे। वे बलवान और समर्थ थे। दोनों पक्षों के पास ऐसे बाण थे जो कभी लक्ष्य से चूकते नहीं थे। फिर भी दोनों ओर से हो रही तीरों की वर्षा बेकार जा रही थी, क्योंकि दोनों ही पक्ष बराबर की शक्ति और कौशल वाले थे। युद्ध न किसी को जीत दिला रहा था और न किसी को हार।
काव्यगत सौंदर्य:
- इस पद्यांश में कौरव और पांडवों की युद्ध-कुशलता और समानता को दिखाया गया है।
- दोनों पक्षों को समान रूप से शक्तिशाली और योग्य बताया गया है।
- ‘विशिख वृष्टि’ में अनुमास अलंकार है – एक ध्वनि की सुंदर पुनरावृत्ति।
- रस – रौद्र है, जो युद्ध के उग्र वातावरण को प्रकट करता है।
- भाषा सरल, प्रभावशाली और प्रसंग के अनुकूल है।
पद्यांश: 5
इतने में शर को लिए कर्ण ने, देखा ज्यों अपना निषंग,
तरकस में से फुंकार उठा, कोई प्रचंड विषधर भुजंग।
शब्दार्थ:
- शर – बाण (तीर)
- निषंग – तरकस (तीर रखने का स्थान)
- तरकस – जिसमें तीर रखे जाते हैं
- प्रचंड – बहुत भयंकर
- विषधर – ज़हर वाला, जहरीला प्राणी
- भुजंग – साँप
प्रश्न 1: कवि का नाम लिखिए।
उत्तर:
इस पद्यांश के कवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ हैं।
प्रश्न 2: प्रस्तुत पद्यांश का भावार्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
इन पंक्तियों में महाभारत युद्ध के एक रोमांचक दृश्य का वर्णन है। कवि बताते हैं कि जब कर्ण ने एक बाण निकालने के लिए अपना तरकस देखा, तो उसमें से एक भयंकर ज़हरीला साँप (विषधर भुजंग) फुँफकारता हुआ दिखाई दिया। यह दृश्य अचानक और चौंकाने वाला था, जिसे देखकर कर्ण भी आश्चर्यचकित रह गया।
काव्यगत सौंदर्य:
- विषधर भुजंग की यह घटना महाभारत के खांडव वन प्रसंग से जुड़ी हुई है।
- यह अश्वसेन नामक साँप था, जो अपनी माता की मृत्यु का बदला लेने के लिए पांडवों से दुश्मनी रखता था।
- अश्वसेन ने सोचा कि कर्ण भी अर्जुन का शत्रु है, इसलिए वह कर्ण की सहायता करके अपना बदला ले सकता है।
- भाषा प्रवाहमयी और घटनाक्रम के अनुसार सजीव है।
- यह दृश्य कविता को रहस्यमयी और रोमांचक बना देता है।
पद्यांश: 6
कहता कि कर्ण! मैं अश्वसेन, विश्रुत भुजंगों का स्वामी हूँ,
जन्म से पार्थ का शत्रु परम, तेरा बहुविधि हितकामी हूँ।
शब्दार्थ:
- विश्रुत – प्रसिद्ध, विख्यात
- भुजंगों – साँपों
- पार्थ – अर्जुन (कुंतीपुत्र)
- परम – सबसे बड़ा
- बहुविधि – अनेक तरीकों से
- हितकामी – भला चाहने वाला, मददगार
प्रश्न 1: पाठ का नाम लिखिए।
उत्तर:
इस पद्यांश का नाम ‘मनुष्य और सर्प’ है।
प्रश्न 2: प्रस्तुत पद्यांश की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
इस पद्यांश में कवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ ने कर्ण और अश्वसेन के बीच हुई बातचीत को दिखाया है। अश्वसेन, जो एक भयानक और प्रसिद्ध साँपों का राजा है, कर्ण से कहता है कि वह जन्म से ही अर्जुन (पार्थ) का दुश्मन है। उसने कर्ण से यह भी कहा कि वह उसका सच्चा शुभचिंतक है और हर तरह से उसकी सहायता करना चाहता है।
अश्वसेन को पता था कि कर्ण और अर्जुन एक-दूसरे के विरोधी हैं, इसलिए वह सोचता है कि कर्ण उसकी मदद स्वीकार करेगा ताकि वह अर्जुन से अपनी माँ की मौत का बदला ले सके।
काव्यगत सौंदर्य:
- इस अंश में महाभारत के अश्वसेन प्रसंग को सुंदर ढंग से प्रस्तुत किया गया है।
- अश्वसेन की सोच और बदले की भावना को स्पष्ट किया गया है।
- कर्ण को पांडवों का शत्रु जानकर अश्वसेन ने उससे मित्रता और सहयोग की बात की।
- भाषा सरल, प्रवाहमयी और विषय के अनुकूल है, जिससे पाठक को संवाद सहज रूप से समझ आता है।
पद्यांश: 7
बस एक बार कृपा बनुष पर, चढ़ शाख्य तक जाने दे,
इस महाशत्रु को अभी तुरत, स्पंदन में पुँजरे सुलाने दे।
शब्दार्थ:
- शाख्य – लक्ष्य (जिसे मारना है)
- स्पंदन – रथ (यहाँ जीवन या चेतना का प्रतीक है)
- महाशत्रु – बहुत बड़ा दुश्मन
- पुँजरे सुलाना – मार देना, शांत कर देना
प्रश्न 1: रचना तथा रचनाकार का नाम लिखिए।
उत्तर:
यह पंक्तियाँ ‘मनुष्य और सर्प’ नामक रचना से ली गई हैं, जिसके रचनाकार रामधारी सिंह ‘दिनकर’ हैं।
प्रश्न 2: वक्ता कौन है?
उत्तर:
इन पंक्तियों का वक्ता अश्वसेन नामक सर्प है।
प्रश्न 3: पद्यांश का भावार्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
इस पद्यांश में अश्वसेन, जो एक ज़हरीला साँप है, कर्ण से प्रार्थना करता है। वह कहता है – “कृपया मुझे एक बार अपने बाण (तीर) पर चढ़ा दो और मेरे शत्रु (अर्जुन) तक पहुँचने दो। मैं उसे अपने विष से तुरंत खत्म कर दूँगा, जैसे उसे रथ से नीचे गिराकर शांत कर दिया गया हो।”
यह घटना महाभारत के खांडव वन प्रसंग से जुड़ी है, जहाँ अर्जुन द्वारा लगाई गई आग में अश्वसेन की माँ की मृत्यु हो गई थी। अब अश्वसेन उसका बदला लेना चाहता है और इसलिए कर्ण से सहायता माँग रहा है, क्योंकि कर्ण भी अर्जुन का शत्रु है।
काव्यगत सौंदर्य:
- कवि ने अश्वसेन और कर्ण के संवाद के माध्यम से बदले की भावना को दर्शाया है।
- यह प्रसंग महाभारत के युद्ध और खांडव वन की पृष्ठभूमि से जुड़ा है।
- अश्वसेन अर्जुन को मारने के लिए पूरी तैयारी से कर्ण के पास आया है और उसे अपना सहयोगी बनाना चाहता है।
- भाषा प्रवाहमयी, भावपूर्ण और प्रसंग के अनुसार गंभीर है।
पद्यांश: 8
कर वमन गरल जीवन-भर का, संचित प्रतिशोध, उतासूभा तू,
मुझे सहारा दे, बढ़कर, मैं अभी पार्थ को गासेग्य।
शब्दार्थ:
- वमन – उगलना, बाहर निकालना
- गरल – विष (ज़हर)
- संचित – जमा किया हुआ
- प्रतिशोध – बदला
- पार्थ – अर्जुन
- गासेग्य – समाप्त कर दूँगा, मार दूँगा
प्रश्न 1: कवि का नाम लिखिए।
उत्तर:
इस पद्यांश के कवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ हैं।
प्रश्न 2: वक्ता का नाम क्या है?
उत्तर:
इस पद्यांश का वक्ता अश्वसेन नामक सर्प है।
प्रश्न 3: प्रस्तुत पद्यांश की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
इस पद्यांश में अश्वसेन कर्ण से कहता है कि अगर वह उसे अपने बाण पर चढ़ाकर अर्जुन (पार्थ) तक पहुँचा दे, तो वह अपने जीवन भर का संचित विष अर्जुन के शरीर में उगल देगा। यही उसका बहुत पुराना बदला है, जो वह अब पूरा करना चाहता है।
वह कर्ण से मदद की गुहार लगाता है और कहता है कि अगर कर्ण थोड़ा सहारा दे, तो वह तुरंत ही अर्जुन को मार डालेगा।
यह पद्यांश अश्वसेन के बदले की भावना और उसकी तीव्र इच्छा को दर्शाता है कि वह अर्जुन को खत्म कर अपने प्रतिशोध को पूरा करे।
काव्यगत सौंदर्य:
- इस अंश में कवि ने अश्वसेन की पीड़ा और प्रतिशोध की भावना को मार्मिक रूप से प्रस्तुत किया है।
- अश्वसेन कर्ण को अर्जुन का शत्रु मानकर उससे सहायता माँगता है।
- उसकी बातों में क्रोध, विष और बदले की तीव्र इच्छा झलकती है।
- भाषा प्रसंग के अनुसार गंभीर, प्रभावशाली और भावपूर्ण है।
- इस दृश्य में वीर रस और रौद्र रस दोनों की झलक मिलती है।
पद्यांश: 9
राधेय ज़रा हँसकर बोला, ‘के कुटिल! बात क्या कहता है?
जय का समस्त साधन नर का, अपनी बाँहों में रहता है।’
शब्दार्थ:
- राधेय – कर्ण (राधा का पुत्र)
- कुटिल – चालाक, धोखा देने वाला
- जय – विजय, जीत
- साधन – उपाय, माध्यम
- नर – मनुष्य
- बाँहों में – अपने बल या बाहुबल में
प्रश्न 1: वक्ता कौन है?
उत्तर:
इस पंक्ति का वक्ता कर्ण (राधेय) है।
प्रश्न 2: वक्ता का आशय स्पष्ट करें / पंक्ति का भावार्थ लिखें।
उत्तर:
जब अश्वसेन कर्ण से अर्जुन को मारने के लिए अपने बाण पर बैठाकर भेजने की बात करता है, तो कर्ण मुस्कराते हुए कहता है – “हे कुटिल (धूर्त) सर्प! तू कैसी बात कर रहा है?”
कर्ण का मानना है कि मनुष्य की जीत का सबसे बड़ा साधन उसका अपना परिश्रम और बाहुबल होता है। उसे दूसरों की चालबाज़ी या विष की सहायता की ज़रूरत नहीं है।
कर्ण को अपने पराक्रम और वीरता पर गर्व है, इसलिए वह अश्वसेन की मदद लेने से साफ इनकार कर देता है।
काव्यगत सौंदर्य:
- इस अंश में कवि दिनकर ने कर्ण के आत्मबल, स्वाभिमान और नायकत्व को दर्शाया है।
- कर्ण धूर्त साधनों से सहायता लेने के विरुद्ध है और सच्चे युद्ध धर्म का पालन करता है।
- कर्ण की यह बात उसकी महानता और चरित्र की ऊँचाई को प्रकट करती है।
- भाषा सरल, प्रभावशाली और प्रसंग के अनुसार उपयुक्त है।
- वीर रस और नीति बोध की भावना इस पद्यांश में झलकती है।
पद्यांश: 10
उस पर भी साँपों से मिलकर मैं मनुज, मनुज से युद्ध करूँ?
जीवन भर जो निष्ठा पाली, उससे आचरण विरुद्ध करूँ?
शब्दार्थ:
- मनुज – मनुष्य
- निष्ठा – विश्वास, सच्ची लगन
- आचरण-विरुद्ध – आचरण के खिलाफ, अपने व्यवहार या सिद्धांत के विपरीत
प्रश्न 1: कवि का नाम लिखिए।
उत्तर:
इस पद्यांश के कवि हैं रामधारी सिंह ‘दिनकर’।
प्रश्न 2: वक्ता तथा श्रोता का नाम लिखिए।
उत्तर:
वक्ता कर्ण है और श्रोता अश्वसेन नामक सर्प है।
प्रश्न 3: पद्यांश का भावार्थ लिखिए।
उत्तर:
जब अश्वसेन कर्ण से अर्जुन को मारने के लिए सहायता माँगता है, तो कर्ण यह प्रस्ताव ठुकराते हुए कहता है कि क्या वह एक मनुष्य होकर, साँप की सहायता से दूसरे मनुष्य से युद्ध करेगा?
कर्ण कहता है कि उसने अपने जीवन भर मनुष्य धर्म और निष्ठा का पालन किया है, और वह अब ऐसा कोई कार्य नहीं करेगा जो उसके आचरण के विरुद्ध हो।
वह युद्ध में ईमानदारी और वीरता से लड़ना चाहता है, न कि किसी छल या विष के सहारे।
काव्यगत सौंदर्य:
- इस अंश में कर्ण की उच्च नैतिकता और निष्ठा को दर्शाया गया है।
- वह साँप जैसे प्राणी से सहायता लेना उचित नहीं मानता, क्योंकि वह मनुष्य धर्म का पालन करता है।
- ‘मनुज मनुज’ में छेकानुप्रास अलंकार है – समान शब्दों की पुनरावृत्ति से प्रभाव पैदा होता है।
- भाषा सरल, प्रवाहमयी और प्रसंग के अनुसार उपयुक्त है।
- इस अंश में नीति बोध, वीरता, और सच्चे आचरण की भावना दिखाई देती है।
पद्यांश: 11
शब्दार्थ:
- जय – जीत, विजय
- अनायास – बिना कठिनाई के, सहज रूप से
- मानवता – मनुष्यता, मनुष्यों की भावी पीढ़ी
- मुख दिखलाऊँगा – जवाब कैसे दूँगा, लज्जा से सिर कैसे उठाऊँगा
प्रश्न 1: पाठ का नाम लिखिए।
उत्तर:
इस पद्यांश का नाम है ‘मनुष्य और सर्प’।
प्रश्न 2: वक्ता तथा श्रोता का नाम लिखिए।
उत्तर:
वक्ता कर्ण है और श्रोता अश्वसेन नामक सर्प है।
प्रश्न 3: पद्यांश का भावार्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
इस पद्यांश में कर्ण सर्प अश्वसेन को विनम्रता से मना करते हुए कहता है कि तुम्हारी सहायता से मुझे बहुत आसानी से विजय मिल सकती है, लेकिन यह सोचो कि भविष्य की पीढ़ी, यानी आने वाली मानवता के सामने मैं क्या मुँह दिखाऊँगा?
अगर मैं छल, धोखे या ज़हर से किसी को हराऊँ, तो लोग मुझे नीचा और कायर समझेंगे।
कर्ण वीरता और नैतिकता के साथ जीतना चाहता है, न कि किसी सर्प की चालाकी से।
काव्यगत सौंदर्य:
- यह अंश कर्ण की नैतिकता, आत्मसम्मान और दूरदृष्टि को दर्शाता है।
- वह आने वाली मानवता के प्रति भी उत्तरदायी महसूस करता है।
- यह दर्शाता है कि सच्चा वीर वही है जो नीति और धर्म के साथ लड़े, चाहे जीत मिले या हार।
- भाषा सरल, प्रभावशाली और भावपूर्ण है।
- इसमें नीति-रस के साथ-साथ वीरता और आत्मगौरव की भावना भी झलकती है।
पद्यांश: 12
संसार कहेगा, जीवन का, सब सुकृत कर्ण ने क्षार किया,
प्रतिभर के वध के लिए, सर्प का पापी ने साहाय्य लिया।
शब्दार्थ:
- सुकृत – अच्छे कर्म, पुण्य कार्य
- क्षार – राख करना, नष्ट करना
- प्रतिभर – शत्रु (यहाँ अर्जुन)
- वध – हत्या, मारना
- सर्प – साँप
- साहाय्य – सहायता, मदद
- पापी – पाप करने वाला
प्रश्न 1: रचना तथा रचनाकार का नाम लिखिए।
उत्तर:
यह पद्यांश ‘मनुष्य और सर्प’ नामक कविता से लिया गया है। इसके रचनाकार हैं रामधारी सिंह ‘दिनकर’।
प्रश्न 2: श्रोता कौन है?
उत्तर:
इस पंक्ति का श्रोता है अश्वसेन नामक साँप।
प्रश्न 3: पंक्तियों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
इस पंक्ति में कर्ण कहता है कि यदि वह अर्जुन (प्रतिभर) को मारने के लिए साँप (अश्वसेन) की सहायता लेता है, तो सारा संसार यही कहेगा कि कर्ण ने अपने जीवन के सभी अच्छे कर्मों को बर्बाद कर दिया।
लोग कहेंगे कि कर्ण ने एक सर्प की मदद से अर्जुन को मारा, जो कि एक पापपूर्ण और नीच कार्य है।
कर्ण को लगता है कि अगर उसने ऐसा किया तो आने वाली पीढ़ियाँ भी उसे पापी कहेंगी, और वह कभी सम्मान से याद नहीं किया जाएगा।
काव्यगत सौंदर्य:
- इस अंश में कर्ण के चरित्र की महानता, आत्मसम्मान और धर्मनिष्ठा का सुंदर चित्रण है।
- वह धोखे या नीच उपायों से जीतना नहीं चाहता, भले ही जीत आसान हो।
- कर्ण चाहता है कि उसका नाम आने वाली पीढ़ियों में आदर के साथ लिया जाए, न कि निंदा के साथ।
- भाषा सरल, प्रभावशाली और प्रसंग के अनुसार गंभीर है।
- इस पंक्ति में नीति-बोध, आत्मबल, और वीर रस का समावेश है।
पद्यांश: 13
से अश्वसेन! तेरे अनेक वंशज हैं छिपे नरों में भी,
सीमित वन में ही नहीं, बहुत बसते पुर, ग्राम-घरों में भी।
शब्दार्थ:
- वंशज – संतान, वंश में जन्मा हुआ
- नरों – मनुष्य
- सीमित वन – जंगल तक ही सीमित
- बसते – रहते हैं
- पुर – नगर
- ग्राम – गाँव
प्रश्न 1: पाठ का नाम लिखिए।
उत्तर:
इस पद्यांश का नाम है ‘मनुष्य और सर्प’।
प्रश्न 2: अश्वसेन कौन था?
उत्तर:
अश्वसेन एक सर्प (साँप) था। पांडवों द्वारा खांडव वन में लगाई गई आग में उसकी माँ जलकर मर गई थी, और वह उसी का बदला लेने के लिए अर्जुन को मारना चाहता था।
प्रश्न 3: पद्यांश का भावार्थ लिखिए।
उत्तर:
इस पद्यांश में कर्ण कहता है – “हे अश्वसेन! तुम्हारे जैसे कई जहरीले लोग अब इंसानों के रूप में भी इस दुनिया में मौजूद हैं।
साँप केवल जंगलों में ही नहीं होते, अब वे नगरों, गाँवों और घरों में भी छिपे रहते हैं।”
यहाँ कर्ण का अर्थ सीधा साँपों से नहीं, बल्कि उन मनुष्यों से है जो चालाक, कुटिल और धोखेबाज़ हैं।
वे बाहरी रूप से मनुष्य दिखते हैं, लेकिन भीतर से साँपों जैसे ज़हरीले और खतरनाक होते हैं।
काव्यगत सौंदर्य:
- कर्ण ने प्रतीकात्मक ढंग से उन लोगों की ओर इशारा किया है जो इंसान होकर भी साँप जैसे जहरीले व्यवहार वाले हैं।
- यह पंक्तियाँ दर्शाती हैं कि दुष्टता केवल जंगलों में नहीं, बल्कि सभ्य समाज, शहरों और गाँवों में भी होती है।
- यहाँ कर्ण का संकेत उन कुटिल और स्वार्थी लोगों की ओर है जिन्होंने महाभारत जैसे युद्ध को जन्म दिया।
- भाषा सरल, प्रवाहमयी और प्रतीकात्मक रूप में गहन भावों को व्यक्त करती है।
पद्यांश: 14
शब्दार्थ:
- नर-भुजंग – मनुष्य के रूप में साँप (छल-कपट और नीच प्रवृत्ति वाले लोग)
- पथ – रास्ता
- मानवता का पथ – सच्चाई, नैतिकता और सदाचार का मार्ग
- प्रतिबल – शत्रु, विरोधी
- वध – मारना
- साहाय्य – सहायता
- सर्प – साँप
प्रश्न 1: रचनाकार का नाम लिखिए।
उत्तर:
इस पद्यांश के रचनाकार हैं रामधारी सिंह ‘दिनकर’।
प्रश्न 2: पद्यांश की व्याख्या करें।
उत्तर:
कर्ण इस पद्यांश में कहता है कि जो लोग मनुष्य के रूप में साँप जैसे छल-कपट वाले होते हैं, वे सच्चे इंसान और मानवता के मार्ग में बड़ी बाधा बनते हैं।
वे अपने शत्रुओं से बदला लेने के लिए नीच तरीकों का सहारा लेते हैं, जैसे कि साँप की सहायता से किसी को मारना।
ऐसे लोग न केवल युद्ध धर्म का अपमान करते हैं, बल्कि सत्य और ईमानदारी की राह को भी कठिन बना देते हैं।
काव्यगत सौंदर्य:
- इस पद्यांश में ‘नर-भुजंग’ शब्द के माध्यम से ऐसे लोगों की आलोचना की गई है जो बाहर से मनुष्य दिखते हैं, लेकिन भीतर से विषैले और धोखेबाज़ होते हैं।
- यह दिखाता है कि ऐसे लोग मानवता और नैतिकता के मार्ग को बाधित करते हैं।
- ‘नर-भुजंग’ में रूपक अलंकार है – मनुष्य को सीधे साँप कहकर प्रस्तुत किया गया है।
- ‘साहाय्य सर्प’ में अनुप्रास अलंकार है – एक ही वर्ण (स) की पुनरावृत्ति से संगीतात्मक प्रभाव उत्पन्न हुआ है।
- भाषा प्रभावशाली, प्रसंगानुकूल और नैतिक संदेश से युक्त है।
पद्यांश: 15
ऐसा न हो कि इन साँपों में, मेरा भी उज्ज्वल नाम चढ़े,
पाकर मेरा आदर्श और कुछ, नरता का यह पाप बढ़े।
शब्दार्थ:
- आदर्श – उदाहरण, जिससे लोग प्रेरणा लें
- नरता – मनुष्यता, इंसानियत
- उज्ज्वल नाम – सम्मानित और आदर्श के रूप में प्रसिद्ध नाम
- पाप बढ़े – गलत मार्ग पर चलने की प्रवृत्ति बढ़े
प्रश्न 1: कविता तथा कवि का नाम लिखिए।
उत्तर:
यह पंक्तियाँ ‘मनुष्य और सर्प’ कविता से ली गई हैं। इसके कवि हैं रामधारी सिंह ‘दिनकर’।
प्रश्न 2: पद्यांश का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
इस पद्यांश में कर्ण कहता है कि वह नहीं चाहता कि उसका नाम भी उन मनुष्यों में शामिल हो जो साँपों जैसे नीच और छलपूर्ण मार्ग अपनाते हैं।
उसे डर है कि यदि उसने साँप (अश्वसेन) की सहायता ली और विजय पाई, तो लोग उसे भी ऐसे पापपूर्ण रास्ते पर चलने वाला मानेंगे।
कहीं ऐसा न हो कि लोग उसे आदर्श मानकर आगे भी छल-कपट और अधर्म के मार्ग पर चलें और इससे मानवता और अधिक कलुषित हो जाए।
काव्यगत सौंदर्य:
- इस अंश में कर्ण की दूरदृष्टि और नैतिक चेतना को दर्शाया गया है।
- वह नहीं चाहता कि उसका नाम कुटिल और नीच कार्य करने वालों की श्रेणी में आए।
- वह यह भी नहीं चाहता कि उसे आदर्श मानकर लोग गलत मार्ग अपनाएँ।
- यहाँ कर्ण की महानता, आत्मबल और सच्ची वीरता का सुंदर चित्रण हुआ है।
- भाषा सरल, प्रवाहमयी और गहरी नैतिक सीख देने वाली है।
पद्यांश: 16
अर्जुन है मेरा शत्रु, किन्तु वह सर्प नहीं, नर ही तो है,
संघर्ष, सनातन नहीं, शत्रुता, इस जीवन-भर ही तो है।
शब्दार्थ:
- नर – मनुष्य
- सर्प – साँप
- सनातन – सृष्टि के आरंभ से, हमेशा के लिए
- शत्रुता – दुश्मनी, विरोध
- संघर्ष – लड़ाई, टकराव
प्रश्न 1: कविता का नाम लिखिए।
उत्तर:
इस पद्यांश का नाम है ‘मनुष्य और सर्प’।
प्रश्न 2: वक्ता कौन है?
उत्तर:
इन पंक्तियों का वक्ता कर्ण है।
प्रश्न 3: इन पंक्तियों की व्याख्या करें।
उत्तर:
इस पद्यांश में कर्ण, सर्प अश्वसेन से कहता है कि अर्जुन मेरा शत्रु जरूर है, लेकिन वह मनुष्य है, कोई सर्प नहीं।
मनुष्यों के बीच का संघर्ष भी सनातन यानी हमेशा का नहीं होता, यह सिर्फ इसी जीवन तक सीमित होता है।
इसलिए वह नहीं चाहता कि किसी पशु (सर्प) की सहायता से अर्जुन को मारे और अपनी मानवता व नैतिकता को नष्ट करे।
कर्ण यहाँ मनुष्य और सर्प में अंतर समझाते हुए यह भी स्पष्ट करता है कि वह नैतिक मूल्यों के विरुद्ध नहीं जाना चाहता।
काव्यगत सौंदर्य:
- कर्ण यह दर्शाता है कि मनुष्य और सर्प की प्रकृति में अंतर होता है, और इंसान को इंसान की तरह ही युद्ध करना चाहिए।
- वह शत्रुता को सनातन (सदैव) नहीं मानता, बल्कि इसे एक सीमित अवधि का टकराव समझता है।
- ‘संघर्ष, सनातन’ में अनुप्रास अलंकार है – ‘स’ ध्वनि की पुनरावृत्ति।
- इस पद्यांश में कर्ण की गहरी मानवता और उच्च नैतिक सोच को दर्शाया गया है।
- भाषा प्रवाहमयी, अर्थपूर्ण और प्रसंगानुकूल है।
पद्यांश: 17
अगला जीवन किसलिए भला, तब हो द्वेषांध बिगारूँ मैं,
साँपों की जाकर शरण, सर्प बन, क्यों मनुष्य को मारूँ मैं?
शब्दार्थ:
- द्वेषांध – द्वेष (शत्रुता) में अंधा हो जाना
- शरण – शरण लेना, आश्रय लेना
- सर्प बन – साँप की तरह कार्य करना, छल से मारना
- बिगारूँ – खराब करना, नष्ट करना
प्रश्न 1: रचना तथा रचनाकार का नाम लिखिए।
उत्तर:
यह पंक्तियाँ ‘मनुष्य और सर्प’ नामक कविता से ली गई हैं। इसके रचनाकार हैं रामधारी सिंह ‘दिनकर’।
प्रश्न 2: पद्यांश का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
इस पद्यांश में कर्ण कहता है कि यदि यह शत्रुता केवल इसी जन्म तक सीमित है, तो फिर वह द्वेष में अंधा होकर अपना अगला जन्म क्यों खराब करे?
वह कहता है कि क्या मैं साँपों की शरण में जाकर, स्वयं सर्प जैसा बनकर किसी मनुष्य को मारूँ?
कर्ण यह मानता है कि अगर वह नीच और छलपूर्ण कार्य करेगा, तो उसे अगले जन्म में भी उसका दंड भोगना पड़ेगा।
इसलिए वह ऐसा कोई कार्य नहीं करना चाहता जो उसकी मानवता, निष्ठा और भविष्य दोनों को नष्ट कर दे।
काव्यगत सौंदर्य:
- इस अंश में कर्ण की पुनर्जन्म में आस्था और नैतिक चेतना स्पष्ट रूप से झलकती है।
- वह केवल द्वेष के कारण पाप नहीं करना चाहता, क्योंकि उसका प्रभाव अगले जन्म तक हो सकता है।
- कर्ण युद्ध धर्म और मानवता की रक्षा करते हुए, नीच साधनों से दूर रहना चाहता है।
- भाषा सरल, गूढ़ भावों से युक्त, प्रवाहपूर्ण और प्रसंग के अनुकूल है।
- यह अंश नीति-रस और वीर-रस दोनों को व्यक्त करता है।
पद्यांश: 18
जा भाग, मनुज का सहज शत्रु, मित्रता न मेरी पा सकता,
मैं किसी हेतु भी यह कलंक, अपने पर नहीं लगा सकता।
शब्दार्थ:
- सहज शत्रु – जन्मजात या स्वभाव से दुश्मन
- मित्रता – दोस्ती, साथ
- किसी हेतु – किसी भी कारण से
- कलंक – अपयश, बदनामी, धब्बा
प्रश्न 1: रचना तथा रचनाकार का नाम लिखिए।
उत्तर:
यह पंक्तियाँ ‘मनुष्य और सर्प’ कविता से ली गई हैं। इसके रचनाकार हैं रामधारी सिंह ‘दिनकर’।
प्रश्न 2: वक्ता कौन है? वह किसे भागने को कहता है और क्यों?
उत्तर:
वक्ता कर्ण है। वह सर्प अश्वसेन से कहता है कि तू मानव और मानवता का स्वाभाविक शत्रु है, इसलिए तू मेरी मित्रता का अधिकारी नहीं हो सकता।
कर्ण उसे भाग जाने के लिए कहता है, क्योंकि वह उसकी सहायता लेकर कोई ऐसा काम नहीं करना चाहता, जिससे उसे बदनामी या कलंक का सामना करना पड़े।
प्रश्न 3: प्रस्तुत पद्यांश की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
इस पद्यांश में कर्ण, सर्प अश्वसेन को कठोर शब्दों में फटकारते हुए कहता है कि तू तो स्वभाव से ही मनुष्यता का शत्रु है।
ऐसे में मेरे और तेरे बीच कभी भी कोई मित्रता नहीं हो सकती।
कर्ण यह भी कहता है कि वह किसी भी हालत में ऐसा कोई काम नहीं करेगा जिससे उसके चरित्र पर कलंक लगे।
वह युद्ध में नैतिकता और वीरता से जीतना चाहता है, न कि किसी छल या सर्प की मदद से।
काव्यगत सौंदर्य:
- इस अंश में कर्ण की नैतिकता, आत्मगौरव और वीरता का सुंदर चित्रण है।
- वह नीच उपायों से विजय नहीं चाहता, भले ही उसका शत्रु कितना भी बड़ा क्यों न हो।
- कर्ण मानवता का सच्चा रक्षक बनकर उभरता है, और अपने आदर्शों से कभी समझौता नहीं करता।
- भाषा सरल, प्रवाहमयी और प्रसंग के अनुसार उपयुक्त है।
- इस पद्यांश में वीर रस और नीति बोध की सुंदर झलक है।
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