उसने कहा था के प्रमुख पात्र का चरित्र-चित्रण करें।

उसने कहा था के प्रमुख पात्र का चरित्र-चित्रण करें।। ‘उसने कहा था’ के लहना सिंह का चरित्र-चित्रण करें।। 

उसने कहा था के प्रमुख पात्र का चरित्र-चित्रण करें।। ‘उसने कहा था’ के लहना सिंह का चरित्र-चित्रण करें।। 

लहना सिंह ‘उसने कहा था’ कहानी के प्रमुख पात्र और नायक हैं। उनका चरित्र अत्यंत प्रभावशाली और प्रेरणादायी है। वह साधारण प्रेम-कथा के नायक से भिन्न हैं क्योंकि उनके व्यक्तित्व में व्यक्तिगत प्रेम और कर्त्तव्य-प्रेम का अद्भुत संतुलन दिखाई देता है। अपने प्रेम में वे जितने कोमल और संवेदनशील हैं, उतने ही कर्त्तव्यपालन में दृढ़ और साहसी भी। उनकी निष्ठा, वीरता और त्यागभावना उन्हें अन्य नायकों से अलग बनाती है। प्रेम और कर्त्तव्य दोनों के प्रति समान निष्ठा रखते हुए उन्होंने आदर्श प्रस्तुत किया। इसीलिए लहना सिंह का चरित्र पाठकों को गहराई से प्रभावित करता है।

i. चंचल व शरारती बालक :

बारह वर्षीय लहना सिंह जब दुकान पर आठ वर्षीया बालिका से मिलता है तो सहज ही उसकी ओर आकर्षित हो उठता है। अपनी बाल-सुलभ चंचलता और शरारतपूर्ण स्वभाव से वह उसे छेड़ते हुए पूछता है – “तेरी कुड़माई हो गई?” लड़की शरमाकर ‘धत’ कहती हुई भाग जाती है। परंतु जब एक दिन वही लड़की मज़ाक में उत्तर देती है – “हाँ, हो गई।” – तब लहना सिंह के मन पर गहरा असर पड़ता है। उसका मन अनजाने ही लगाव और चाहत से भर उठता है। इस प्रतिक्रिया में उसकी छुपी भावनाएँ प्रकट होती हैं। रास्ते में उसकी शरारतें और भी बढ़ जाती हैं – वह किसी लड़के को मोरी में ढकेल देता है, छाबड़ी वाले की कमाई बिगाड़ देता है, कुत्ते पर पत्थर मारता है और एक वैष्णवी से टकराकर ‘अंधे’ की उपाधि भी पा जाता है। यह सब उसके चंचल, शरारती और बाल-मन की सहज भावनाओं को उजागर करता है।

ii. सच्चा सिख :

लहना सिंह का चरित्र केवल एक बहादुर सैनिक का नहीं, बल्कि एक सच्चे सिख का भी प्रतीक है। फौज में रहते हुए और युद्धभूमि जैसी परिस्थितियों का सामना करते हुए भी वह अपने धर्म और परंपराओं से विचलित नहीं होता। इसका स्पष्ट प्रमाण फिरंगी मेम वाले प्रसंग में मिलता है, जब वह गर्व से कहता है – “आज तक मैं उसे समझा न सका कि सिख तम्बाकू नहीं पीते। वह सिगरेट पीने में हठ करती है, ओठों में लगाना चाहती है, और मैं पीछे हटता हूँ, तो समझती है कि राजा बुरा मान गया।” इस प्रसंग से यह स्पष्ट होता है कि लहना सिंह परिस्थितियाँ कैसी भी हों, परंतु अपने धार्मिक सिद्धांतों और मर्यादाओं के प्रति सदैव अडिग और निष्ठावान रहता है।

iii. वीर और कुशाग्र-बुद्धि :

लहना सिंह का व्यक्तित्व वीरता और अद्भुत बुद्धिमत्ता का संगम है। वह युद्ध से भागने या छुटकारा पाने की अपेक्षा निरंतर युद्धाभ्यास और संघर्ष की कामना करता है। उसके अनुसार – “बिना फेरे घोड़ा बिगड़ता है और बिना लड़े सिपाही।” यह कथन उसकी सच्ची सैनिक-भावना और युद्धप्रिय मनोवृत्ति को प्रकट करता है।

सिर्फ वीर ही नहीं, वह कुशाग्र-बुद्धि का धनी भी है। यही बुद्धिमत्ता उसे नकली लपटन साहब की चाल पहचानने में मदद करती है। यदि लहना सिंह समय रहते उसकी असलियत न समझ पाता, तो उसके साथी सैनिकों की जान खतरे में पड़ जाती। अपनी सजगता और विवेक से उसने उन्हें बचाकर अपनी वीरता और सूझबूझ का अनुपम परिचय दिया।

iv.  मानवीय संवेदना से भरपूर :

लहना सिंह केवल एक कठोर सैनिक ही नहीं, बल्कि गहरी मानवीय संवेदनाओं से ओतप्रोत व्यक्तित्व का धनी है। उसकी दया, करुणा और त्याग भावना हर कदम पर झलकती है। जब उसका साथी बोधा सिंह बुखार से तप रहा होता है, तो वह बिना संकोच अपनी जर्सी उसे पहनाता है और स्वयं ठंड सहते हुए उसके स्थान पर पहरा भी देता है। इतना ही नहीं, युद्धभूमि में घायल होने के बावजूद वह अपने घाव की चिंता किए बिना पहले बोधा सिंह को अस्पताल की गाड़ी में भेजता है। यह प्रसंग स्पष्ट करता है कि लहना सिंह के लिए मित्रता, सहानुभूति और मानवीय मूल्य उसके अपने कष्टों से कहीं अधिक महत्वपूर्ण हैं।

v. आदर्श त्यागी प्रेमी :

लहना सिंह केवल एक सच्चा प्रेमी ही नहीं, बल्कि त्याग और बलिदान का आदर्श भी है। बचपन का वही निष्कलुष प्रेम, सूबेदारनी की स्मृतियों के साथ पुनः जाग उठता है, जब वह उससे पति और पुत्र की रक्षा का वचन लेती है। लहना सिंह इस वचन को अपनी अंतिम सांस तक निभाता है और अपने प्राणों की आहुति देकर प्रेम और कर्त्तव्य का सर्वोच्च उदाहरण प्रस्तुत करता है। युद्धभूमि में उनका नाम “फ्रांस और बेलजियम – 68वीं सूची – मैदान में घावों से मरा – नं. 77 सिख राइफल्स, जमादार लहना सिंह” दर्ज होता है।

इस प्रकार लहना सिंह ‘उसने कहा था’ का आदर्श नायक है। पूरी कहानी उनके त्याग, प्रेम और बलिदान की गाथा है। इन्हीं गुणों के कारण वे हिन्दी कहानी के अमर पात्रों में स्थान पाते हैं।

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