कहानी कला की दृष्टि से उसने कहा था की समीक्षा कीजिए ।। उसने कहा था कहानी की समीक्षा कीजिए
उत्तर – चन्द्रधर शर्मा ‘गुलेरी’ द्वारा रचित ‘उसने कहा था’ हिन्दी साहित्य की अमर कहानियों में गिनी जाती है। इसमें प्रेम, त्याग और बलिदान की अद्भुत झलक मिलती है। कहानी कला की दृष्टि से भी यह अत्यंत प्रभावशाली और अनुपम रचना है। किसी भी साहित्यिक कृति की समीक्षा के लिए कुछ निश्चित मानक होते हैं और उन्हीं मानकों पर आधारित होकर उसकी विशेषताओं का मूल्यांकन किया जाता है। यही मानक इस कहानी की कलात्मकता और साहित्यिक महत्व को समझने में सहायक होते हैं। किसी भी साहित्यिक रचना की समीक्षा निश्चित मानकों के आधार पर की जाती है, जैसे – विषय, कथानक, भाषा, शिल्प और चरित्र-चित्रण। इन्हीं मानकों पर देखने पर ‘उसने कहा था’ एक पूर्ण और उत्कृष्ट कहानी सिद्ध होती है, जो आज भी पाठकों को गहराई से प्रभावित करती है।
1. शीर्षक –
किसी भी साहित्यिक रचना का शीर्षक उसका दर्पण माना जाता है, जिसमें पूरी कहानी का सार झलकता है। शीर्षक ऐसा होना चाहिए जो आकर्षक होने के साथ-साथ पाठकों में उत्सुकता भी जगाए। ‘उसने कहा था’ कहानी का शीर्षक देखते ही मन में कई प्रश्न उत्पन्न होते हैं – किसने कहा था? क्या कहा था? कब और क्यों कहा था? किससे कहा था? इस प्रकार यह शीर्षक पाठकों को कहानी पढ़ने के लिए प्रेरित करता है और उनके मन में जिज्ञासा उत्पन्न करता है। इस दृष्टि से यह शीर्षक पूर्णतः सार्थक, प्रभावोत्पादक और कौतूहलवर्धक सिद्ध होता है।
2. कथानक –
किसी भी कहानी की सफलता का सबसे बड़ा आधार उसका कथानक होता है। कथानक ही वह सूत्र है जो पात्रों, घटनाओं और संवेदनाओं को एक सूत्र में पिरोकर पाठकों तक पहुँचाता है। ‘उसने कहा था’ का कथानक अत्यंत अनूठा, स्वाभाविक और हृदयस्पर्शी है। यह कहानी दो खंडों में विभाजित है।
पहले खंड की घटनाएँ अमृतसर में घटित होती हैं। यहाँ एक सिक्ख लड़का और एक सिक्ख लड़की का परिचय बड़े ही नाटकीय और रोचक ढंग से होता है। लड़का बार-बार लड़की से हँसी-मज़ाक में पूछता है – “तेरी कुड़माई हो गई?” शुरुआत में लड़की संकोच और हँसी में इस प्रश्न को टाल देती है, लेकिन कई बार दोहराए जाने पर एक दिन वह उत्तर देती है – “हाँ, हो गई कल, देखते नहीं यह रेशम से कड़ा वाला सालू।” इस उत्तर से लड़का गहराई से व्यथित हो जाता है। यह छोटा-सा प्रसंग ही आगे पूरी कहानी की नींव रखता है। उस समय यह घटना मामूली लगती है, पर यही भविष्य में कहानी के मोड़ का कारण बनती है।
दूसरा खंड प्रथम विश्वयुद्ध की पृष्ठभूमि पर आधारित है, जहाँ जीवन और मृत्यु के बीच संघर्ष चल रहा है। वही लड़का अब लहना सिंह के रूप में 77 रायफल में जमादार है। संयोग से उसी टुकड़ी में लड़की का पति हजारा सिंह और उनका बेटा बोधा भी शामिल होते हैं। मोर्चे पर युद्ध के दौरान जब सूबेदारनी (वही कुड़माई वाली लड़की) लहना सिंह से अपने पति और बेटे की रक्षा की विनती करती है, तो लहना अपने प्राणों की परवाह न करते हुए उनकी सुरक्षा का दायित्व उठा लेता है। युद्धभूमि में वह दोनों को सुरक्षित रखते हुए स्वयं वीरगति को प्राप्त करता है। अंतिम क्षणों में वह यही कहता है – “उसने जो कहा था, मैंने पूरा कर दिया।”
इस प्रकार, 25 वर्ष पुराने बचपन के संवाद और वचन का प्रभाव लहना सिंह के जीवन पर इतना गहरा पड़ता है कि वह अपने प्राणों की आहुति देकर भी उस वचन को निभा देता है। कथा का यह प्रवाह पाठकों को आरंभ से अंत तक बाँधकर रखता है। कथानक सरल होते हुए भी भावनाओं की गहराई से परिपूर्ण है, जिसमें प्रेम, त्याग और बलिदान की चरम सीमा दिखाई देती है। यही कारण है कि कथानक की दृष्टि से ‘उसने कहा था’ हिन्दी साहित्य की उत्कृष्ट और अमर कहानियों में गिनी जाती है।
3. कथोपकथन –
किसी भी कहानी, एकांकी या नाटक की जान उसके कथोपकथन में होती है। यही किसी रचना की श्रेष्ठता और प्रभाव को मापने का प्रमुख आधार बनता है। ‘उसने कहा था’ इस दृष्टि से एक बेजोड़ और अनुपम कहानी है। इसमें प्रयुक्त संवाद न केवल चुटीले और स्वाभाविक हैं, बल्कि उनमें जीवंतता और मार्मिकता भी है। पात्रों के बीच होने वाला संवाद सीधे हृदय को छू लेता है और पाठकों के मन में गहरी छाप छोड़ता है।
उदाहरणस्वरूप –
“तेरे घर कहाँ?”
“मगरे में! और तेरे?”
“माँझे में, वहाँ कहाँ रहते हैं?”
“अतर सिंह की बैठक में, वे मेरे मामा होते हैं।”
“तेरी कुड़माई हो गई है?”
ऐसे संवाद पाठक को तत्कालीन परिस्थितियों और पात्रों की भावनाओं से जोड़ देते हैं। लड़की का “धत् कहकर भाग जाना” या बाद में “कयामत आयी है और वह लपटन साहब की वर्दी पहनकर आयी है” जैसे कथोपकथन कहानी की रोचकता और कलात्मकता को और गहराई प्रदान करते हैं। इस प्रकार ‘उसने कहा था’ का कथोपकथन चुटीला, सहज, प्रभावशाली और कलात्मक है, जो इसे अमर कहानियों की श्रेणी में स्थापित करता है।
4. पात्र एवं चरित्र-चित्रण –
किसी भी कहानी की सफलता उसके पात्रों और उनके सजीव चरित्र-चित्रण पर निर्भर करती है। ‘उसने कहा था’ में पात्रों की संख्या अधिक नहीं है, फिर भी कहानीकार ने उनका चयन बड़े ही कौशल से किया है। इसमें सूबेदार हजारा सिंह, उसका पुत्र बोधा, सूबेदारनी (वजीरा) और नायक लहना सिंह प्रमुख पात्र हैं। इन सभी पात्रों ने कहानी को पूर्णता दी है, लेकिन कथा का केंद्र बिंदु और मुख्य आकर्षण लहना सिंह का चरित्र है।
लहना सिंह एक आदर्श नायक के रूप में प्रस्तुत किया गया है। उसमें वे सभी गुण मिलते हैं जो किसी सशक्त चरित्र-नायक में होने चाहिए – वीरता, साहस, कर्तव्यनिष्ठा, विवेक, सेवा-भाव और बलिदान की भावना। वह बचपन के प्रेम और वचन की मर्यादा को निभाने के लिए युद्धभूमि में अपने प्राण न्योछावर कर देता है। उसका यह बलिदान यह सिद्ध करता है कि सच्चा प्रेम केवल पाने में नहीं, बल्कि त्याग करने में है।
सूबेदार हजारा और बोधा कहानी को आगे बढ़ाने में सहायक पात्र हैं, जबकि वजीरा (सूबेदारनी) के माध्यम से ही लहना सिंह के त्याग और प्रेम की गहराई उजागर होती है। इस प्रकार देखा जाए तो पात्र कम होने के बावजूद उनका चरित्र-चित्रण अत्यंत सजीव, प्रभावशाली और हृदयस्पर्शी है। यही कारण है कि यह कहानी आज भी अमर है।
5. देशकाल एवं वातावरण –
किसी भी कहानी को जीवंत बनाने में देशकाल और वातावरण की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। ‘उसने कहा था’ में देशकाल एवं वातावरण का अत्यंत सूक्ष्म और सफल चित्रण किया गया है। यह कहानी प्रथम विश्वयुद्ध की पृष्ठभूमि पर आधारित है और लेखक ने युद्ध की वास्तविकता को बखूबी उकेरा है।
युद्धक्षेत्र का वातावरण, सैनिकों की खाइयाँ, मोर्चेबंदी, बंदूकों की गर्जना, बम और गोलों के विस्फोट की गूँज, सैनिकों की मृत्यु और घायल सैनिकों को ले जाने वाली रिलीफ गाड़ियों का आना—ये सभी चित्र अत्यंत प्रभावशाली और सजीव ढंग से प्रस्तुत किए गए हैं। पाठक पढ़ते समय स्वयं को युद्धभूमि के बीच खड़ा महसूस करता है।
लेखक ने युद्ध की विभीषिका को केवल बाहरी वातावरण तक सीमित नहीं रखा, बल्कि उस माहौल में सैनिकों की मानसिक दशा, भय, साहस और त्याग की भावना को भी गहराई से चित्रित किया है। यही कारण है कि कहानी का देशकाल और परिस्थिति पूर्णतः वास्तविक, मार्मिक और विश्वसनीय प्रतीत होते हैं। इस दृष्टि से ‘उसने कहा था’ को एक अत्यंत सफल और प्रभावशाली कहानी कहा जा सकता है।
6. भाषा-शैली –
‘उसने कहा था’ की भाषा-शैली अत्यंत सजीव, प्रभावशाली और परिस्थिति के अनुकूल है। यह कहानी सिक्ख समाज एवं पंजाब की पृष्ठभूमि पर आधारित है, इसलिए इसमें पंजाबी और उर्दू शब्दों का प्रयोग स्वाभाविक रूप से हुआ है, जो कथा को यथार्थ का स्पर्श प्रदान करता है।
क्योंकि कहानी का दूसरा खंड विदेशी भूमि पर युद्ध से संबंधित है, इसलिए वहाँ अंग्रेजी के कई शब्द जैसे – फिरंगी, मेम, स्वेटर आदि भी प्रयुक्त हुए हैं। इस तरह हिन्दी, पंजाबी, उर्दू और अंग्रेज़ी शब्दों का मिश्रण कहानी को बहुरंगी बनाता है और पाठक को उस समय की वास्तविक स्थिति का अनुभव कराता है।
कहानी में वर्णनात्मक शैली का प्रमुख रूप से प्रयोग किया गया है। युद्ध का वातावरण, सैनिकों की गतिविधियाँ, बम और गोलों की आवाज़ें तथा युद्ध से जुड़ी विभीषिकाएँ इतनी स्पष्टता और मार्मिकता से चित्रित हुई हैं कि दृश्य पाठक की आँखों के सामने जीवंत हो उठते हैं। संवादों की सहजता और चुटीलापन भाषा को और अधिक प्रभावोत्पादक बनाते हैं।
इस प्रकार ‘उसने कहा था’ की भाषा-शैली सहज, सरल, प्राकृतिक और परिस्थितियों के अनुकूल है, जो कहानी को कलात्मक ऊँचाई प्रदान करती है।
7. उद्देश्य –
किसी भी रचना का अपना एक निश्चित उद्देश्य होता है, जो लेखक की भावनाओं और संदेश को पाठकों तक पहुँचाता है। ‘उसने कहा था’ के माध्यम से कहानीकार ने यह स्पष्ट करना चाहा है कि सच्चा प्रेम केवल प्राप्ति की आकांक्षा नहीं करता, बल्कि उसमें त्याग और बलिदान की भावना निहित होती है।
इस कहानी का नायक लहना सिंह अपने बचपन के प्रेम और वचन को निभाने के लिए युद्धभूमि में अपने प्राण न्योछावर कर देता है। उसका यह बलिदान यह सिद्ध करता है कि प्रेम का आधार केवल स्वार्थ या प्राप्ति नहीं है, बल्कि त्याग और निःस्वार्थ सेवा में ही उसका वास्तविक सौंदर्य है। चाहे वह प्रेम व्यक्तिगत हो, समाज से जुड़ा हो या राष्ट्र से, उसका सच्चा रूप बलिदान में ही दिखाई देता है।
प्रसाद जी के शब्दों में भी यही संदेश मिलता है कि “प्रेम प्रतिदान की अपेक्षा नहीं रखता।” जब प्रेम में मूल्य या प्रतिदान की अपेक्षा होने लगे तो उसका वास्तविक स्वरूप नष्ट हो जाता है। इस दृष्टि से ‘उसने कहा था’ का उद्देश्य न केवल व्यक्तिगत प्रेम की महानता को दर्शाना है, बल्कि समाज और राष्ट्र के प्रति निष्ठा तथा त्याग की भावना को भी स्थापित करना है। यही इसे अमर और आदर्श कहानी बनाता है।
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