चप्पल कहानी के शीर्षक के औचित्य पर प्रकाश डालिए ॥ chappal kahani ke shirshak ke auchitya par prakash daliye ॥ चप्पल कहानी के शीर्षक की सार्थकता
किसी भी कहानी का शीर्षक उसकी आत्मा होता है। यह वह पहला माध्यम है, जो पाठक को कहानी पढ़ने के लिए आकर्षित करता है। एक अच्छा शीर्षक छोटा, स्पष्ट और याद रखने योग्य होता है। साथ ही, वह पाठक के मन में जिज्ञासा पैदा करे, जिससे वह कहानी के रहस्य को जानने के लिए उत्सुक हो जाए।
कावुटूरि बैंकट नारायण राव द्वारा रचित कहानी ‘चप्पल’ एक बच्चे और उसके शिक्षा-प्रेमी पिता रंगय्या की भावपूर्ण कहानी है। कहानी का शीर्षक भी पूरी तरह से इसके मुख्य विषय के अनुरूप है। यह शीर्षक केवल संक्षिप्त और एक शब्द का है, जिससे यह आसानी से याद रखा जा सकता है। साथ ही, इसे पढ़ते ही पाठक के मन में अनेक प्रश्न उठते हैं—“चप्पल किसकी है?”, “कहानी चप्पल के इर्द-गिर्द क्यों घूमती है?” आदि। इस प्रकार शीर्षक न केवल कौतूहलवर्द्धक है, बल्कि पाठक को कहानी पढ़ने के लिए प्रेरित भी करता है।
कहानी की शुरुआत ही चप्पल से होती है। रंगय्या अपने बेटे के मास्टर साहब के चप्पल को ठीक करने के लिए प्रयास करता है। इस छोटे से कार्य के माध्यम से उसकी महानता प्रकट होती है, क्योंकि वह शिक्षा और अपने बेटे के भविष्य के लिए अपनी पूरी निष्ठा और प्रेम को समर्पित करता है। कहानी में रंगय्या का संघर्ष और समर्पण तब चरम पर पहुँचता है जब वह स्कूल से लौटकर मास्टर साहब के चप्पल को अटारी पर रखता है। उसके बाद, जब झोपड़ी में आग लग जाती है, तो वह चप्पल को बचाने के लिए अपनी जान तक दे देता है।
इस प्रकार, कहानी का पूरा केंद्र बिंदु चप्पल ही है। कहानी की घटनाएँ, रंगय्या की भावनाएँ, उसकी निष्ठा, उसके पुत्र के प्रति प्रेम और शिक्षा के प्रति आदर—सब कुछ चप्पल के इर्द-गिर्द घूमता है। इसलिए शीर्षक ‘चप्पल’ संक्षिप्त, सार्थक, प्रासंगिक और आकर्षक है। यह पाठक को कहानी का मुख्य संदेश तुरंत समझने में मदद करता है और उसे भावनात्मक रूप से कहानी से जोड़ देता है।
अतः हम कह सकते हैं कि कहानी का शीर्षक इस कथा के सभी गुणों को पूरी तरह दर्शाता है। यह शीर्षक संक्षिप्त होने के साथ-साथ जिज्ञासा उत्पन्न करने वाला, कहानी से गहराई से संबंधित और प्रभावशाली है। यही कारण है कि ‘चप्पल’ शीर्षक न केवल कहानी के लिए उपयुक्त है, बल्कि यह एक पूर्ण रूप से सार्थक शीर्षक भी है।
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