प्रश्नोत्तर विधि क्या है। प्रश्नोत्तर विधि के गुण। प्रश्नोत्तर विधि के दोष।।अर्थ।। परिभाषा।।जनक।। विशेषताएं।। उद्देश्य एवं महत्व prashnottar vidhi
प्रश्नोत्तर विधि क्या है(prashnottar vidhi kya hai)
यह विधि भाषा अध्ययन के क्षेत्र में अपने महत्वपूर्ण स्थान रखती है इस विधि के अध्यापक विद्यार्थियों से प्रश्न पूछ कर अपने पाठ का विकास करता है वह पूर्व ज्ञान से संबंधी प्रश्न पूछता है तथा शिक्षण बिंदुओं के साथ भी प्रश्न पूछता हुआ आगे बढ़ता है। इस विधि में प्रश्नों और उतरो की प्रधानता होने के कारण भी इसे प्रश्नोत्तर विधि भी कहते है इस विधि में अध्यापक छात्रों से ऐसे प्रश्न पूछता है जिससे छात्रों में रुचि एवं जिज्ञासा बनी रहे और वह कक्षा के सहयोग से ही उत्तर ढूंढने का प्रयास करता है और शंका या संदेश होने पर उसका समाधान भी करता है।
प्रश्नोत्तर विधि का अर्थ
प्रश्नोत्तर विधि (Question-Answer Method) शिक्षण की एक प्रभावी विधि है, जिसमें शिक्षक विद्यार्थियों से प्रश्न पूछकर उन्हें उत्तर देने के लिए प्रेरित करता है। यह विधि शिक्षार्थियों की सक्रिय भागीदारी, तार्किक सोच, आलोचनात्मक दृष्टिकोण और आत्म-अभिव्यक्ति को बढ़ावा देती है।
इस विधि में शिक्षक क्रमबद्ध और तर्कसंगत ढंग से प्रश्न प्रस्तुत करता है, जिससे विद्यार्थी चिंतन करके उत्तर देते हैं। इससे न केवल उनकी स्मरण शक्ति का विकास होता है, बल्कि वे विषयवस्तु को अधिक गहराई से समझने में सक्षम होते हैं।
प्रश्नोत्तर विधि की परिभाषा विभिन्न विद्वानों के अनुसार
प्रश्नोत्तर विधि (Question-Answer Method) शिक्षण की एक महत्वपूर्ण पद्धति है, जिसमें शिक्षक विद्यार्थियों से प्रश्न पूछता है और उनके उत्तर के आधार पर विषय को स्पष्ट करता है। यह विधि विद्यार्थियों की तर्कशक्ति, जिज्ञासा और संज्ञानात्मक विकास को बढ़ावा देती है। विभिन्न विद्वानों ने इस विधि की परिभाषा इस प्रकार दी है—
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सुकरात (Socrates) –
“प्रश्नोत्तर विधि शिक्षण की वह कला है, जिसमें ज्ञानार्जन और सत्य की खोज हेतु प्रश्न पूछकर विद्यार्थियों को सोचने और तर्क करने के लिए प्रेरित किया जाता है।” -
डॉ. जॉन डेवी (John Dewey) –
“प्रश्नोत्तर विधि केवल शिक्षण का माध्यम नहीं है, बल्कि यह विद्यार्थियों में समस्या-समाधान कौशल विकसित करने और उनकी तार्किक योग्यता को बढ़ाने की प्रभावी प्रक्रिया है।” -
बर्ट्रेंड रसेल (Bertrand Russell) –
“प्रश्नोत्तर विधि शिक्षा में संवाद का एक ऐसा रूप है, जो ज्ञान को स्मृति में स्थायी रूप से स्थापित करने में सहायक होता है।” -
मौरिस जॉनसन (Maurice Johnson) –
“प्रश्नोत्तर विधि शिक्षक और छात्र के बीच सक्रिय संवाद की एक प्रणाली है, जो सीखने की प्रक्रिया को सहज और प्रभावी बनाती है।” -
डॉ. एस.के. कोचर (Dr. S.K. Kochar) –
“प्रश्नोत्तर विधि एक वैज्ञानिक शिक्षण पद्धति है, जिसमें विद्यार्थियों को तार्किक रूप से सोचने, उत्तर खोजने और विश्लेषण करने की क्षमता विकसित होती है।”
प्रश्नोत्तर विधि के जनक कौन है(prashnottar vidhi ke janmdata kaun hai)
प्रश्नोत्तर विधि के जन्मदाता प्रसिद्ध विद्वान तथा दार्शनिक सुकरात है।
प्रश्नोत्तर विधि के गुण
१. विद्यार्थी प्रश्न पूछता भी है और प्रश्नों का उत्तर भी देता है अतः उसमें आत्मविश्वास की भावना जागृत होती है। और संकोच भी प्रवृत्ति होती है।
२. इस विधि द्वारा पाठ में विद्यार्थी की रूचि एवं जिज्ञासा बनी रहती है जिससे वह आसानी से ज्ञान प्राप्त कर सकता है।
३. इस विधि में अध्यापक छात्र से पूर्व ज्ञान से संबंधित प्रश्न पूछता है अतः छात्र पूर्व में पढ़ाई के पाठ को भी याद करने का प्रयास करता है।
४. इस विधि द्वारा अध्यापक छात्रों का मूल्यांकन भी साथ ही साथ करता जाता है अतः उसे यह पता लगता रहता है कि छात्र शिक्षण के उद्देश्य को किस सीमा तक पूरा कर पा रहा है।
५. प्रश्नोत्तर विधि से विद्यार्थी में सोचने, समझने और तर्क करने की क्षमता का विकास होता है।
६. विद्यार्थी इस विधि के माध्यम से अध्ययन अध्यापन की प्रक्रिया में सक्रिय रूप से भाग लेते हैं।
७. इस विधि द्वारा अधिक समय बर्बाद नहीं होता और तय समय पर पाठ को पूरा किया जा सकता है।
प्रश्नोत्तर विधि के दोष
१. इस विधि का सबसे बड़ा दोष है कि विद्यार्थी को प्रश्न पूछने में शंका होती है वह कभी-कभी विषय से हटकर व्यर्थ के प्रश्न में पूछते हैं।
२. प्रश्नोत्तर विधि उच्च स्तर के बालकों के लिए अधिक उपयोगी है।
३. कभी-कभी कक्षा में प्रश्नों की बौछार इतनी अधिक होने लगती है कि बाहर से देखने वाले कुछ शिक्षण कार्य ठीक से चलता हुआ प्रतीत नहीं होता।
प्रश्नोत्तर विधि की विशेषताएँ
प्रश्नोत्तर विधि शिक्षण की एक प्रभावी और सशक्त तकनीक है, जो छात्रों को सीखने की प्रक्रिया में सक्रिय रूप से भाग लेने के लिए प्रेरित करती है। इस विधि में शिक्षक विभिन्न प्रश्नों के माध्यम से छात्रों की जिज्ञासा को जागृत करता है, जिससे वे सोचने, उत्तर खोजने और विश्लेषण करने की आदत विकसित करते हैं।
प्रश्नोत्तर विधि की प्रमुख विशेषताएँ
1. विद्यार्थी-केंद्रित विधि
- इस विधि का मुख्य उद्देश्य विद्यार्थियों को सोचने, तर्क करने और उत्तर खोजने की ओर प्रेरित करना है।
- शिक्षक केवल एक मार्गदर्शक की भूमिका निभाता है, जबकि विद्यार्थी स्वतंत्र रूप से विचार-विमर्श करते हैं और अपने उत्तर प्रस्तुत करते हैं।
- यह विधि विद्यार्थियों को आत्म-विश्वास बढ़ाने में सहायता करती है क्योंकि वे अपने उत्तरों को तर्कसंगत रूप से प्रस्तुत करना सीखते हैं।
2. ज्ञान की पुनरावृत्ति और सुदृढ़ीकरण
- प्रश्नोत्तर विधि में विषय से संबंधित प्रश्न पूछे जाते हैं, जिससे विद्यार्थी पहले पढ़ी गई जानकारी को पुनः याद कर पाते हैं।
- यह विधि विषय-वस्तु को गहराई से समझने और दीर्घकालिक स्मरण शक्ति विकसित करने में सहायक होती है।
- जब विद्यार्थी उत्तर देते हैं, तो उनके विचारों की स्पष्टता और विषय की पकड़ मजबूत होती है।
3. तर्कशीलता और विश्लेषणात्मक दृष्टिकोण का विकास
- यह विधि तर्कशक्ति, विश्लेषणात्मक चिंतन और निर्णय लेने की क्षमता को बढ़ाने में सहायक होती है।
- विद्यार्थी उत्तर देने के दौरान कारण और परिणाम का विश्लेषण करते हैं, जिससे उनकी तार्किक योग्यता का विकास होता है।
- जब शिक्षक विभिन्न कोणों से प्रश्न पूछता है, तो विद्यार्थी विषय के विभिन्न पहलुओं को समझने में सक्षम होते हैं।
4. सक्रिय सहभागिता और संवादात्मक कक्षा वातावरण
- प्रश्नोत्तर विधि कक्षा को सक्रिय और संवादात्मक बनाती है, जिसमें शिक्षक और छात्र दोनों की सक्रिय भागीदारी होती है।
- विद्यार्थी केवल पाठ को रटने के बजाय विचार साझा करने और चर्चा करने की प्रक्रिया में शामिल होते हैं।
- इससे कक्षा का वातावरण रोचक और शिक्षण प्रभावी बनता है।
5. व्यक्तिगत मूल्यांकन और सुधार की सुविधा
- शिक्षक इस विधि के माध्यम से विद्यार्थियों की समझ, प्रगति और विषय पर पकड़ का आकलन कर सकता है।
- जिन छात्रों को किसी विषय में कठिनाई होती है, उन्हें तुरंत पहचाना जा सकता है और अतिरिक्त सहायता दी जा सकती है।
- विद्यार्थियों की कमजोरियों और ताकतों की पहचान कर उन्हें सुधारने के लिए आवश्यक कदम उठाए जा सकते हैं।
6. आत्म-अभिव्यक्ति और संचार कौशल का विकास
- प्रश्नोत्तर विधि विद्यार्थियों की अभिव्यक्ति क्षमता को बेहतर बनाती है, क्योंकि उन्हें अपने विचारों को स्पष्ट रूप से प्रस्तुत करना होता है।
- इससे उनका भाषाई विकास होता है और वे अपनी बात को तर्कसंगत ढंग से कहने में सक्षम होते हैं।
- यह विधि संचार कौशल को मजबूत करती है, जो उनके भविष्य के पेशेवर जीवन में भी सहायक होती है।
7. जिज्ञासा और रुचि उत्पन्न करना
- प्रश्न पूछने से विद्यार्थियों में जिज्ञासा उत्पन्न होती है और वे स्वेच्छा से सीखने की ओर प्रेरित होते हैं।
- विषय को और अधिक गहराई से समझने के लिए वे अतिरिक्त अध्ययन करने के लिए प्रेरित होते हैं।
- यह विधि उबाऊ पढ़ाई को रोचक बनाने में मदद करती है, जिससे विद्यार्थी विषय में अधिक रुचि लेते हैं।
8. स्मरण शक्ति और कल्पनाशक्ति का विकास
- जब विद्यार्थी प्रश्नों के उत्तर सोचते हैं, तो उनकी स्मरण शक्ति तेज होती है क्योंकि वे दिमागी रूप से सक्रिय रहते हैं।
- नए विचारों को जोड़कर उत्तर देने की प्रक्रिया उनकी कल्पनाशक्ति और सृजनात्मकता को बढ़ाती है।
निष्कर्ष
प्रश्नोत्तर विधि शिक्षण की एक प्रभावशाली और रोचक तकनीक है, जो विद्यार्थियों की सोचने, तर्क करने, विश्लेषण करने और संवाद करने की क्षमताओं को विकसित करती है। यह विधि विद्यार्थियों को अधिक आत्मनिर्भर और विषय में निपुण बनाती है, जिससे वे न केवल परीक्षा में अच्छा प्रदर्शन कर पाते हैं, बल्कि जीवन में भी तार्किक और निर्णय लेने में सक्षम व्यक्ति बनते हैं।
प्रश्नोत्तर विधि के उद्देश्य और महत्व
प्रश्नोत्तर विधि (Question-Answer Method) शिक्षण की एक प्रभावी पद्धति है, जिसमें शिक्षक और विद्यार्थी के बीच संवादात्मक प्रक्रिया के माध्यम से ज्ञान का आदान-प्रदान होता है। यह विधि विद्यार्थियों को सोचने, समझने, तर्क करने और आत्मनिरीक्षण करने के लिए प्रेरित करती है।
प्रश्नोत्तर विधि के उद्देश्य
- ज्ञान की स्पष्टता बढ़ाना – इस विधि के माध्यम से विषय की जटिल अवधारणाओं को स्पष्ट किया जाता है।
- बौद्धिक विकास करना – यह विधि विद्यार्थियों के चिंतन, विश्लेषण और तर्कशक्ति को विकसित करती है।
- सक्रिय सहभागिता बढ़ाना – इस विधि से कक्षा में विद्यार्थियों की भागीदारी बढ़ती है और वे अधिक रुचि से सीखते हैं।
- स्मरण शक्ति को मजबूत बनाना – बार-बार प्रश्न पूछने और उत्तर देने से विषयवस्तु लंबे समय तक स्मरण रहती है।
- आत्मविश्वास विकसित करना – विद्यार्थियों को अपने विचारों को व्यक्त करने और उनके उत्तर देने का आत्मविश्वास मिलता है।
- आलोचनात्मक और सृजनात्मक सोच को प्रोत्साहित करना – प्रश्नों के उत्तर देने की प्रक्रिया से विद्यार्थी सोचने और नए दृष्टिकोण विकसित करने की क्षमता बढ़ाते हैं।
- अध्ययन की स्वायत्तता को बढ़ावा देना – यह विधि विद्यार्थियों को स्वाध्याय और स्व-विश्लेषण के लिए प्रेरित करती है।
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प्रश्नोत्तर विधि का महत्व
- विद्यार्थी-केंद्रित शिक्षण – यह विधि शिक्षण को विद्यार्थी-केंद्रित बनाती है, जिससे वे स्वयं सीखने में रुचि लेते हैं।
- ज्ञान की पुनरावृत्ति और सुदृढ़ीकरण – बार-बार प्रश्न पूछने से विद्यार्थी विषय को अच्छी तरह समझ पाते हैं और याद रख पाते हैं।
- संवाद कौशल का विकास – उत्तर देने की प्रक्रिया से विद्यार्थियों का संचार कौशल (Communication Skills) बेहतर होता है।
- शिक्षण को रोचक बनाना – यह विधि शिक्षण को एकतरफा न बनाकर संवादात्मक और रोचक बनाती है।
- निर्णय लेने की क्षमता विकसित करना – प्रश्नों का उत्तर सोच-समझकर देने से विद्यार्थियों की निर्णय लेने की योग्यता मजबूत होती है।
- समस्या-समाधान कौशल विकसित करना – यह विधि विद्यार्थियों को तार्किक रूप से समस्याओं को हल करने की आदत डालती है।
- शिक्षक और विद्यार्थी के बीच मजबूत संबंध – प्रश्न-उत्तर की प्रक्रिया से दोनों के बीच संवाद बढ़ता है और सीखने की प्रक्रिया अधिक प्रभावी बनती है।
- आत्ममूल्यांकन का अवसर – इस विधि के माध्यम से विद्यार्थी अपनी समझ और ज्ञान का स्वयं मूल्यांकन कर सकते हैं।
निष्कर्ष
प्रश्नोत्तर विधि न केवल विद्यार्थियों की सीखने की क्षमता को बढ़ाती है, बल्कि उनके आत्मविश्वास, तार्किकता और संवाद कौशल का भी विकास करती है। यह शिक्षण को अधिक प्रभावी, रोचक और संवादात्मक बनाती है, जिससे विद्यार्थियों को विषयवस्तु की गहरी समझ प्राप्त होती है।
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