शिक्षा मनोविज्ञान क्या है
शिक्षा मनोविज्ञान, मनोविज्ञान का वह व्यवहारिक रूप है। मनोविज्ञान के सिद्धांतों का चीज क्षेत्र में निरूपण होने लगता है उसी के नाम से अलग शाखा बन जाती हैं मनोविज्ञान के सिद्धांतों का शिक्षा में निरूपण होना ही शिक्षा मनोविज्ञान है।
शिक्षा मनोविज्ञान की परिभाषा
कोसनिक के अनुसार :-शिक्षा मनोविज्ञान,मनोविज्ञान के सिद्धांत और अनुसाधन का शिक्षा में प्रयोग हैं।
जे.ए. स्टीफन :- शिक्षा मनोविज्ञान शैक्षणिक विकास का क्रमिक अध्ययन है।
सी.ई. स्किनर के अनुसार :- शिक्षा मनोविज्ञान अनुसंधानों का शैक्षिक परिस्थितियों में प्रयोग करता है जो शैक्षिक परिस्थितियों में मानव तथा प्राणियों से संबंधित हैं।
शिक्षा मनोविज्ञान का महत्व
आज के युग में शिक्षा मनोविज्ञान के अभाव में शिक्षा की प्रक्रिया कुशलतापूर्वक संपादित नहीं की जा सकती। आधुनिक युग में शिक्षा का आधार मनोविज्ञान है। शिक्षा मनोविज्ञान का महत्व इस प्रकार से है –
१. बाल केंद्रित शिक्षा :-
प्राचीन समय में शिक्षा का केंद्र बालक ना होकर अध्यापक था। बालक की रूचियों, अभिवृत्ति हो तथा अभिरुचियों की परवाह किए बिना ही शिक्षण कार्य चलता था। अब समय बदल गया है और उसी के साथ सा शिक्षा का केंद्र बिंदु बाला खो गया है। बालक की योग्यता, उनकी क्षमता, उनकी रूचि, उनके अभिरुचि के अनुसार ही पाठ्यक्रम तथा शिक्षण विधियों का निर्माण किया जाता है।
२. शिक्षण पद्धति में परिवर्तन :
प्राचीन काल में शिक्षा का आधार बिंदु अध्यापक ही होते थे और वह बालक को रटने पर बल देते थे परंतु मनोवैज्ञानिकों ने रटने पर बल ना देकर बालक के आंतरिक शक्तियों का विकास करने पर बल दिया है आज के युग में मनोवैज्ञानिक शिक्षण पद्धतियों का विकास हो चुका है जिससे बालक के आंतरिक शक्तियों का विकास तो होता ही है साथ ही साथ उन्हें अभिव्यक्ति करने का माध्यम भी मिल जाता है।
३. पाठ्यक्रम :-
मनोवैज्ञानिक पहलुओं के विकास से पहले पाठ्यक्रम में किस बात पर बल दिया जाता था कि पाठ्यक्रम कठिन हो तथा उसमें अभ्यास अधिक हो यह कारण है कि गणित में कठिनतम प्रश्न रखकर अभ्यास पर बल दिया जाता रहा है। अनेक मनोवैज्ञानिक परीक्षणों ने छात्रों की क्षमताओं तथा व्यक्तिगत भेदों के द्वारा छात्रों के ज्ञान, विकास तथा परिपक्वता को समझने में भी योगदान दिया है यही कारण है कि आज पाठ्यक्रम का निर्माण करते समय बालक की रूचियों अभिवृत्ति विकास आदि को ध्यान में रखा जाता है। पाठ्यक्रम बच्चों के लिए हैं बच्चे पाठ्यक्रम के लिए नहीं।
4. समय सारणी :-
पहले बालकों की थकान, विश्राम, अवधान, आदि का कोई ध्यान नहीं रखा जाता था। उस समय अध्यापक की सुविधा का ध्यान, समय सारिणी बनाते समय रखा जाता था। छात्र की क्षमता तथा योग्यता का ध्यान बिल्कुल नहीं रखा जाता था। शिक्षा मनोविज्ञान के कारण ही विद्यालयों में समय सारणी बनाते समय या ध्यान रखा जाता है कि कौन सा विषय पहले रखा जाये और कौन सा बाद में। अब समय सारणी बनाते समय मौसम, छात्रों की योग्यता, रूचि, आदि का ध्यान रखा जाता है।
5. पाठ्य सहगामी क्रियायें :-
पहले यहां समझा जाता था कि पढ़ाई के अतिरिक्त की क्रियाओं से बालक अपना समय नष्ट करते हैं। अब यह विचार बदल गया है। वाद-विवाद, प्रतियोगिता, निबंध, लेख, कहानी, प्रतियोगिता, अंताक्षरी, भ्रमण, छात्र संघ, खेलकूद अभिनय तथा नाटक संगीत तथा इसी प्रकार के अन्य क्रियाओं को पाठ्यक्रम में स्थान देने के कारण बालकों के सर्वांगीण विकास में बहुत सहयोग मिला है।
6. अनुशासन :-
बच्चों के अनुशासन पर ध्यान देना अत्यंत आवश्यक है बच्चे तब बिगड़ते हैं जब उन पर ध्यान नहीं दिया जाता है जैसे कि बच्चे को मार पड़ने पर वह बहुत ज्यादा जिद्दी हो जाता है मनोविज्ञानिक परीक्षणों ने या भी सिद्ध कर दिया है कि छात्र, अपराध करने पर दंड से डरते नहीं, पर वे यह अवश्य चाहते हैं कि उन्हें दंड उनके अनुकूल दिया जाए। यही कारण है कि यदि कोई छात्र कक्षा में या कक्षा के बाहर कोई अपराध करता है तो उसको दण्ड से दबाकर उसके कारणों की खोज करके स्थायी उपचार पर बल दिया जाता है।
7. स्वस्थ वातावरण :-
शिक्षा के क्षेत्र में यह भी अनुभव किया जाने लगा है कि स्वस्थ बालकों की शिक्षा के लिए स्वस्थ वातावरण की आवश्यकता है। स्वस्थ वातावरण छात्रों से सीखने के प्रति अधिक रूचि उत्पन्न करता है। विद्यालय के वातावरण में अर्जित ज्ञान का स्थानांतरण व्यवहारिक जीवन में हो सके बालकों का मानसिक एवं शारीरिक स्वास्थ्य बना रहे यह प्रयास किया जाता है।
8. अनुसंधान :
प्राचीन काल में अनुसंधान पर ज्यादा बल नहीं दिया जाता था क्योंकि प्राचीन काल की शिक्षा शास्त्रों की शिक्षा पर ज्यादा बल दिया जाता था आज के आधुनिक युग में अनुसंधान पर सबसे ज्यादा बल दिया जाता है क्योंकि आज के शिक्षा नीति तथा विधियां या तकनीकी बदल चुकी है जिसमें बालक की रूचियों, अभिवृत्तियों, अभिनयों, खोजो पर ज्यादा बल दिया जाता है ताकि बालक का सर्वांगीण विकास हो सके।
9. शिक्षा समस्याओं पर मत निर्धारण :-
आज के आधुनिक युग की शिक्षा हमें समाज में पनप रहे अनेक बुराइयों तथा शिक्षा की समस्याओं पर मत निर्धारण करने का मौका देती है ताकि उनमें सुधार ला सके और समाज या देश को उन्नति के शिखर पर ले जा सके इन समस्याओं का आधार बिंदु विद्यालय ही होता है क्योंकि बच्चे हर समाज और हर धर्म और जाति के बच्चे विद्यालय में आते हैं उनके बुराइयों को बदलना है तो हमें शुरुआत विद्यालय से ही करना होता है यह समस्याएं हैं बाल अपराध, पिछड़ापन, समस्या बालक, छुआछूत, धार्मिक विविधता इत्यादि। इसे दूर कर विद्यालय हमें एक सूत्र में बांधने का प्रयास करता है।
10. मापन एवं मूल्यांकन :-
आज के युग में बालक के मापन एवं मूल्यांकन की अनेक पद्धतियां विकसित हो चुकी है जो उनके मूल्यांकन या मापन में बहुत बड़ा योगदान साबित होती है। शिक्षा मनोविज्ञान का महत्वपूर्ण योग है मापन तथा मूल्यांकन के विधियों का विकास तथा उनका प्रयोग। आज बालक की रूचियों, योग्यताओं, अभिरुचि, आंतरिक शक्तियों का विकास करके उसे विकास की दिशा दी जाती है। इसे बालक को जीवन की सही दिशा मिलती है और वह अपनी क्षमता तथा योग्यता का उच्चतम विकास करता है।
11. शिक्षा के उद्देश्य की प्राप्ति में साधक :-
शिक्षा मनोविज्ञान शिक्षा तथा छात्रा के व्यवहार के आसपास ही रहता है तथा शिक्षक तथा छात्रों के उद्देश्य एवं छात्रों के लक्ष्यों की प्राप्ति में भी सहायक सिद्ध होता है।
12. व्यक्तिक भेदों पर बल :-
शिक्षा मनोविज्ञान व्यक्तिगत भेदों पर बल देता है एक क्लास में एक शिक्षक के शिक्षण को कुछ विद्यार्थी शीघ्र ही समझ लेते हैं और कुछ नहीं समझ पाते ऐसे छात्रों के लिए व्यक्तिगत शिक्षण की आवश्यकता होती हैं जिनमें मंदबुद्धि प्रतिभाशाली तथा विकलांग इत्यादि बालकों के लिए शिक्षा में अलग-अलग होती हैं शिक्षा मनोविज्ञान इस बात पर ध्यान देता है।