रामधारी सिंह दिनकर की काव्यगत विशेषताएँ(ramdhari singh dinkar ki kavyagat visheshta)
दिनकर जी, जिनका असली नाम कृष्णदवास दिनकर था, एक मशहूर हिंदी कवि थे। उन्होंने अपने काव्य के माध्यम से समाज में गहरे प्रभाव छोड़े हैं और एक विचारशील कवि के रूप में प्रसिद्धि प्राप्त की। दिनकर जी की काव्यरचना का संरचनात्मक निर्माण और उनकी अद्वितीय भाषा और शैली ने उन्हें एक अलग पहचान दिलाई। इस लेख में हम दिनकर जी की काव्यगत विशेषताओं को विस्तार से जानेंगे और उनके प्रसिद्ध काव्य का भी वर्णन करेंगे।
समय की उग्र राष्ट्रीय चेतना से प्रेरित होकर काव्य-जगत में पदार्पण करने वाले महाकवि ‘दिनकर’ सदैव युग चेतना के साथ चलते रहे। उन्होंने प्रगतिवाद, छायावाद, हालावाद, प्रयोगवाद और नयी कविता के मूल स्वर को पहचानते हुए साहित्य का सृजन किया और अपनी प्रतिभा के बल पर ‘युग प्रतिनिधि’ या ‘युग चारण’ के पद पर प्रतिष्ठित हुए।
१. राष्ट्रीयता का स्वर:
रामधारी सिंह दिनकर जी राष्ट्रीय चेतना के कवि हैं। दिनकर जी का मानना था कि राष्ट्रीयता हमारा सबसे बड़ा धर्म है और पराधीनता हमारी सबसे बड़ी समस्या है उनकी रचनाओं में त्याग, बलिदान एवं राष्ट्रप्रेम की भावना दिखाई देती हैं। उन्होंने भारत के कण-कण को जगाने के क्रम में हिमालय का आह्वान करते हुए कहा है-
ले अंगड़ाई उठे धरा,
कर निज विराट स्वर में निनाद।
हुंकार भरे। तू शैलराट!
फट जाय कुह, भागे प्रमाद।
अनेक अन्धविश्वासों और सामाजिक रूढ़ियों में जकड़े भारत देश की दुर्दशा उनके पौरुष को ललकारती है और वे हुंकार कर उठते हैं-
फेंकता हूँ लो तोड़ मरोड़, अरी निष्ठुरे! बीन के तार ।
उठा चाँदी का उज्ज्वल शंख, फूँकता हूँ भैरव हुंकार ।।
नहीं जीते जी सकता देख, विश्व में झुका तुम्हारा भाल।
वेदना मधु का भी कर पान, आज उगलूँगा गरल कराल ।।
२. क्रांति और विद्रोह का स्वर-
‘दिनकर’ जी का हिन्दी काव्य जगत में प्रवेश क्रांति और विद्रोह के तीव्र स्वर के साथ हुआ था। उनकी कविताओं में क्रांति और विद्रोह का यह स्वर आरंभ से लेकर अंत तक है । रूढ़ियों के प्रति विराट विद्रोह दिनकर की प्रत्येक पंक्ति में दिखाई देता है। वे सड़े-गले समाज को क्रांति के द्वारा बदलना चाहते हैं, वे कहते हैं-
क्रांतिधात्रि! कविते! जाग उठ आडम्बर में आग लगा दे।
पतन, पाप, पाखण्ड जलें, जग में ऐसी ज्वाला सुलगा दे।।
३.प्रगतिशीलता :
रामधारी सिंह दिनकर जी अपने इस समय के प्रगतिशील दृष्टिकोण अपने काव्य में उतारा है। उन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से उजड़ते खलिहानों, जर्जरकाय कृषकों और शोषित मजदूरों के मार्मिक चित्र अंकित किया है। दिनकर की काव्य में प्रगतिशील विचारधारा देखने को मिलता है उनके इस पद के माध्यम से प्रगतिशीलता झलकती है-
सूखी रोटी खाएगा जब कृषक खेत में धरकर हल।
तब दूंगी मैं तृप्ति उसे बनकर लोटे का गंगाजल।
उनकी प्रगतिशील विचारधारा पर आधारित रचनाएं हैं पाटलिपुत्र की गंगा, हिमालय, बोधिसत्व, तांडव, कस्मै दैवाय इत्यादि।
४. शोषण के विरुद्ध आवाज –
दिनकर जी पीड़ित मानवता और दलित समाज के प्रति गहरी सहानुभूति अपनी काव्य में दिखाई है। समाज में फैले शोषण का उन्होंने तीव्र स्वर में विरुद्ध किया है। किसानों, मजदूरों, और सर्वहारा दलित वर्ग के प्रति उन्होंने काफी आवाज उठाई है। समाज में व्याप्त आर्थिक विषमता और शोषण को देखकर उनका पौरुष दहाड़ उठता है और वे कहते हैं –
श्वानों को मिलता दूध-वस्त्र, भूखे बालक अकुलाते हैं,
माँ की हड्डी से चिपक ठिठुर, जाड़ों की रात बिताते हैं।
युवती के लज्जा-वसन बेच, जब ब्याज चुकाये जाते हैं,मालिक जब तेल फुलेलों पर पानी सा द्रव्य बहाते हैं।
पापी महलों का अहंकार, तब देता मुझको आमंत्रण ।।
५. भाग्यवाद का विरोध
‘दिनकर’ जी कर्म में विश्वास रखते थे न कि भाग्य पर । अतः उन्हें मनुष्य के पुरुषार्थ पर विश्वास है। भाग्यवाद उनकी दृष्टि में एक छल है जिसके द्वारा एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति के हक को दबाकर सुख भोगता है। यथा-
भाग्यवाद आवरण पाप का और शस्त्र शोषण का
जिससे रखता दबा एक जन, भाग दूसरे जन का ।।
ब्रह्मा से कुछ लिखा भाग्य में, मनुज नहीं लाया है।
अपना सुख उसने अपने भुजबल से ही पाया है।
६. ओजपूर्ण शैली –
‘ओज एवं प्रेम दिनकर जी की शैली के प्रधान गुण है उनकी रचनाओं में प्रबंध और मुक्तक दोनों ही काव्य शैली देखने को मिलती है। ‘समर शेष है’ कविता में उनकी ओजपूर्ण शैली का उदाहरण देखिए-
तिमिर पुत्र ये दस्यु कहीं कोई दुष्काण्ड रचें ना ।
सावधान हो खड़ी देश भर में गाँधी की सेना ।।
बलि देकर भी बली! स्नेह का यह मृदुव्रत साधो रे ।
७. परिष्कृत भाषा :
दिनकर जी की काव्य-भाषा शुद्ध खड़ी बोली हिन्दी है। उनकी भाषा में नाद-सौंदर्य, चित्रमयता और मुहावरों का समुचित प्रयोग मिलता है। उनकी कविताओं में व्यक्त होने वाले भावों को सही ढंग से व्यक्त करने के लिए दिनकर जी दक्ष हैं। उनकी शब्दयोजना कठोर भावों के समय कार्कश होती है जबकि कोमल भावों के समय वह कोमल हो जाती है। इससे दिनकर जी की भाषा परिष्कृत और उनके विचारों को पूर्णतः व्यक्त करने में सक्षम होती है।
८. दिनकर जी के काव्य में अलंकार और छन्द का महत्व:
दिनकर जी एक मशहूर हिंदी कवि रहे हैं, जिन्होंने अपनी कविताओं के माध्यम से साहित्यिक जगत को आकर्षित किया है। उनकी कविताओं में न केवल सुंदरता का सम्मिलन है, बल्कि अलंकार और छन्द के उपयोग से भी उन्होंने उन्नति के पथ पर अग्रसर होते हुए दिखाई दी है।
दिनकर जी के काव्य में अलंकारों का उपयोग स्वाभाविक रूप से हुआ है। उन्होंने उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा, दृष्टान्त आदि सादृश्यमूलक अलंकारों के साथ-साथ मानवीकरण अलंकार का भी प्रयोग किया है। इन अलंकारों के द्वारा वे न केवल अपने विचारों और भावों को सुंदरता से अभिव्यक्त करते हैं, बल्कि पाठकों के मन में एक अद्वितीय अनुभव भी जगाते हैं।
दिनकर जी ने अपनी कविताओं में छन्दमुक्त और छन्दबद्ध दोनों प्रकार की कविताएँ रची हैं। उन्हें छन्द की पूर्णता की समझ थी और वे इसे अपनी कविताओं में सार्थकता और लय के साथ संगठित करने के लिए इस्तेमाल करते थे। उर्वशी कविता में भी छन्दयुक्त और छन्दबद्ध दोनों पद्धतियाँ दिखाई गई हैं, जो उनके काव्य की सुंदरता को और बढ़ाती हैं।
९ प्रतिस्पर्धी भावना
दिनकर जी के काव्य में प्रतिस्पर्धी भावना की विशेषता देखी जा सकती है। उनकी कविताओं में वीर रस, उत्कटता और साहस का प्रचुर उपयोग किया गया है। उनकी कविताओं में देशभक्ति और स्वाधीनता के भाव प्रधान होते हैं और उन्होंने अपनी कविताओं के माध्यम से देश की आत्मा को पुनर्जीवित किया है। उनकी कविता “रण की ज्वाला” इस विशेषता का उत्कृष्ट उदाहरण है, जहां उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की अद्भुतता को दर्शाया है।
१०. गंभीरता और सौंदर्य
दिनकर जी की कविताओं में गंभीरता और सौंदर्य की मिलावट देखी जा सकती है। उनकी कविताओं में वाद-विवाद, समस्याओं का विचार और गंभीर विषयों के प्रतिष्ठान ने उन्हें अलग बनाया है। उनकी कविता “हम तुम एक हो जाएंगे” इस विशेषता का उत्कृष्ट उदाहरण है, जहां वे सामाजिक और राष्ट्रीय मुद्दों पर विचार करते हैं और सभी मनुष्यों के बीच एकता की बात करते हैं।
११. समाजसेवा का संदेश
दिनकर जी के काव्य में समाजसेवा का संदेश भी निहित है। उन्होंने अपनी कविताओं के माध्यम से समाज में समस्याओं के प्रति जागरूकता पैदा की है और समाजसेवा की महत्वपूर्णता को बताया है। उनकी कविता “उधार का सुनहरा दिन” इस विशेषता का उत्कृष्ट उदाहरण है, जहां उन्होंने गरीबी के खिलाफ लड़ाई को दर्शाया है और समाज के उत्थान के लिए अपना योगदान दिया है।
१२. विचार एवं भावना का समन्वय
‘दिनकर’ जी के काव्य में विचार और भावना का सुन्दर समन्वय दिखाई पड़ता है। भावना के उच्छल प्रवाह के साथ-साथ विचारों की गहनता भी उनके काव्य में सर्वत्र मिलती है। उनकी प्रबन्ध रचनाओं में भावुकता और बौद्धिकता दोनों ही सुन्दर ढंग से समाहित हैं। उर्वशी, कुरुक्षेत्र तथा रश्मिरथी इसके प्रपुष्ट प्रमाण हैं।
इस प्रकार, दिनकर जी की काव्यगत विशेषताएँ व्यापक हैं और उन्होंने अपनी कविताओं के माध्यम से राष्ट्रीय भावना, गंभीरता, सौंदर्य और समाजसेवा को उजागर किया है। उनका योगदान हिंदी साहित्य के क्षेत्र में महत्वपूर्ण है और उन्होंने अपने काव्य के माध्यम से आदर्शों को प्रेरित किया है
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