शारीरिक विकास को प्रभावित करने वाले कारक (Factors Influencing Physical Development) sharirik vikas ko prabhavit karne wale karak
1. वंशानुक्रम (Heredity)-
वंशानुक्रम या आनुवांशिकता शारीरिक विकास को प्रभावित करने वाला सर्वप्रमुख कारक है। बेन्डिक्ट के अनुसार- “आनुवंशिकता माता-पिता के जैविक गुणों का सन्तति हस्तान्तरण है।”
“Heredity is the transmission of traits from parents of spring.”
-Ruth Bendict
प्राणी की उत्पत्ति माता-पिता के बीज कोशों के संयोग से होती है। जैव वैज्ञानिकों तथा मनोवैज्ञानिकों ने अपने विभिन्न अध्ययनों द्वारा यह सिद्ध कर दिया है कि माता-पिता के शील-गुणों का उनकी संतान पर व्यापक प्रभाव पड़ता है। स्वस्थ माता-पिता की संतान प्रायः स्वस्थ होती है और रोगी तथा निर्बल माता-पिता की संतान प्रायः निर्बल और रोगी होती है। वंशानुक्रम या आनुवंशिकता को शारीरिक विकास का सर्वाधिक महत्वपूर्ण कारक माना जाता है।
फ्रांसिस गाल्टन के अनुसार “मानव विकास में पोषण की अपेक्षा आनुवांशिकता सर्वाधिक सशक्त कारक है।”
“Heredity is a far more powerful agent in human development than nature.”
2. वातावरण (Environment) –
मनोवैज्ञानिक रॉस के अनुसार “कोई बाह्य शक्ति जो हमें प्रभावित करती हैं, वातावरण हैं।”
मनोवैज्ञानिक दृष्टि से किसी व्यक्ति का पर्यावरण वातावरण उन सब उत्तेजनाओं का योगफल है जो उसे गर्भाधान से मृत्युपर्यन्त प्राप्त होती है। वातावरण के मुख्यतः तीन आयाम होते हैं- भौगोलिक वातावरण, सामाजिक वातावरण तथा मानसिक वातावरणं । अनुकूल वातावरण शारीरिक विकास पर अनुकूल प्रभाव डालता है जबकि प्रतिकूल वातावरण का प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। दूसरे शब्दों में जलवायु, पर्याप्त प्रकाश, स्वच्छ मनोरम बातावरण बालक-बालिकाओं के शारीरिक विकास पर सकारात्मक प्रभाव डालता है।
3. पौष्टिक भोजन (Nutritive Diet)-
बालक का स्वस्थ एवं स्वाभाविक विकास विशेष रूप से पौष्टिक तथा संतुलित आहार पर निर्भर होता है। इस सम्बन्ध में सोरेन्सन ने कहा है- “पौष्टिक भोजन थकान का प्रबल शत्रु और शारीरिक विकास का परम मित्र होता है।”
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4. नियमित दिनचर्या (Regulated Routine) –
बालक के शारीरिक विकास पर नियमित दिनचर्या का प्रभाव पड़ता है। उसके खाने, पीने, पढ्ने, लिखने, सोने आदि के लिए समय निश्चित होना चाहिए। अतः स्वस्थ एवं स्वाभाविक विकास के लिए बालक में आरम्भ से ही नियमित जीवन बिताने की आदत डालनी चाहिए।
5. निद्रा व विश्राम (Sleep and Rest) –
शरीर के स्वस्थ विकास के लिए निद्रा और विश्राम आवश्यक है। अतः शिशु को अधिक-से-अधिक सोने देना चाहिए। तीन या चार वर्ष के शिशु के लिए 12 घण्टे की निद्रा आवश्यक है। बाल्यावस्था और किशोरावस्था में क्रमशः 10 और 8 घण्टे की निद्रा पर्याप्त होती है। बालक को इतना विश्राम मिलना आवश्यक है, जिससे कि उसकी क्रियाशीलता से उत्पन्न होने वाली थकान पूरी तरह से दूर हो जाए, क्योंकि धकान उसके विकास में बाधक सिद्ध होती है।
6. व्यायाम, खेलकूद व मनोरंजन (Exercise, Games and Entertainment) –
सदैव काम करते रहना तथा खेलकूद न करना, मनोरंजन के अवसर न मिलना बालक के विकास को मन्द कर देता है। इस प्रकार शारीरिक विकास के लिए व्यायाम और खेलकूद अपरिहार्य होते हैं। इसके साथ मनोरंजन एवं मनोविनोद भी शारीरिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं।
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7. प्रेम (Love) –
बालक के शारीरिक विकास पर माता-पिता तथा अध्यापक के व्यवहार का भी काफी असर पड़ता है। यदि बालक को इनसे प्रेम और सहानुभूति नहीं मिलती है तो वह काफी दुःखी रहने लगता है जिससे उसके शरीर का संतुलित और स्वाभाविक विकास नहीं हो पाता है। उसका विकास कुठित हो जाता है।
8. सुरक्षा (Security) –
शिशु या बालक के सम्यक् विकास के लिए उसमें सुरक्षा की भावना अति आवश्यक है। इस भावना के अभाव में वह भय का अनुभव करने लगता है और आत्म-विश्वास खो बैठता है। ये दोनों बातें उसके विकास को अवरुद्ध कर देती हैं।
9. पारिवारिक परिवेश (Family Environment) –
परिवार ममता का स्थल होता है। ममता, मैत्री, वात्सल्य, प्रफुल्लता, स्नेह, सहयोग, संरक्षण, सहानुभूति परिवार में ही सुलभ होते हैं। अतः उपयुक्त शारीरिक विकास के लिए उपयुक्त पारिवारिक परिवेश नितान्त आवश्यक हो जाता है।
10. अन्य कारक (Other Factors) –
शारीरिक विकास को प्रभावित करने वाले कुछ अन्य कारक भी हैं, जैसे- गर्भवती का स्वास्थ्य, रोग अथवा दुर्घटना के कारण उत्पन्न शारीरिक विकृतियाँ, जलवायु, सामाजिक परम्पराएँ, परिवार की आर्थिक स्थिति, परिवार का रहन-सहन, विद्यालय और शिक्षा आदि ।