Nifty 50 में गिरावट: क्या रिटेल निवेशकों का SIP निवेश भारतीय बाजार को बचा सकता है?
मुंबई: भारतीय शेयर बाजार में इन दिनों एक दिलचस्प परिदृश्य देखने को मिल रहा है। जहां एक ओर विदेशी निवेशकों (Foreign Investors) ने बाजार से मुंह मोड़ लिया है, वहीं दूसरी ओर घरेलू रिटेल निवेशकों का म्यूचुअल फंड (Mutual Funds) में भरोसा बढ़ता जा रहा है। इस दौरान, म्यूचुअल फंड के सिस्टमेटिक इन्वेस्टमेंट प्लान (SIP) निवेश ने एक नया रिकॉर्ड बनाया है। 2024 के दिसंबर महीने में SIP के माध्यम से निवेश का आंकड़ा 26,459 करोड़ रुपये तक पहुंच गया, जो पिछले महीने यानी नवंबर 2024 के 25,320 करोड़ रुपये से कहीं अधिक है। यह म्यूचुअल फंड निवेशकों के बीच बढ़ती प्रवृत्ति को दर्शाता है, जो बाजार की अस्थिरता के बावजूद अपने निवेश को लंबी अवधि के लिए बनाए रखते हैं।
विदेशी निवेशकों की निकासी और भारतीय बाजार में प्रभाव
विदेशी संस्थागत निवेशकों (FII) की भारतीय शेयर बाजारों से निकासी 2025 में भी जारी है। इन निवेशकों ने साल 2025 के पहले सात कारोबारी दिनों में लगभग 2 अरब डॉलर (लगभग 14,000 करोड़ रुपये) के शेयर बेचे हैं। इससे पहले, 2024 में एफआईआई ने भारतीय शेयर बाजारों से कुल 1,19,277 करोड़ रुपये के शेयरों की बिकवाली की थी। विदेशी निवेशकों की यह बिकवाली घरेलू बाजार पर दबाव बना रही है और निवेशकों के बीच चिंताओं का कारण बन रही है।
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निफ्टी 50 में गिरावट और उसके कारण
एफआईआई की निरंतर बिकवाली के प्रभाव से निफ्टी 50 इंडेक्स अपने शिखर से 10% नीचे आ चुका है। इस गिरावट का मुख्य कारण विदेशी निवेशकों का बाजार से बाहर निकलना, उच्च मूल्यांकन, और वैश्विक बाजारों में बढ़ती अनिश्चितता है। इसके बावजूद, एसआईपी निवेशकों का विश्वास कायम है, जो लगातार म्यूचुअल फंड्स में निवेश कर रहे हैं।
हालांकि, यह एसआईपी फ्लो बेंचमार्क इंडेक्स को ज्यादा प्रभावित नहीं कर पा रहा है, क्योंकि निफ्टी 50 विदेशी निकासी, उच्च मूल्यांकन और वैश्विक अनिश्चितताओं के कारण संघर्ष कर रहा है। इसके परिणामस्वरूप, भारतीय शेयर बाजार में घरेलू रिटेल निवेशकों का उत्साह और व्यापक बाजार की भावना में एक स्पष्ट अंतर दिखाई दे रहा है।
एफआईआई की बदलती निवेश रणनीति
विशेषज्ञों का कहना है कि विदेशी निवेशकों ने अपनी रणनीति में बदलाव किया है। वे अब भारतीय शेयर बाजार में निवेश तो कर रहे हैं, लेकिन सीधे तौर पर सेकेंडरी मार्केट (जैसे शेयर बाजार) में निवेश करने की बजाय, वे प्राइमरी मार्केट (IPO और योग्य संस्थागत प्लेसमेंट, QIP) के माध्यम से निवेश कर रहे हैं। विशेषज्ञ संदीप सभरवाल का कहना है कि भारतीय इक्विटी कल्चर अब पूरी तरह से स्थापित हो चुका है और इस कारण नियमित एसआईपी फ्लो जारी रहेगा। हालांकि, इस निवेश का प्रभाव सेकेंडरी बाजार पर बहुत अधिक नहीं पड़ा है, क्योंकि एफआईआई शुद्ध विक्रेता बने हुए हैं।
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निफ्टी 50 को मूल्यांकन और आर्थिक चुनौतियों का सामना
निफ्टी 50 की वर्तमान स्थिति भी चिंताजनक है, क्योंकि यह विभिन्न आर्थिक और वैश्विक कारकों से प्रभावित हो रहा है। भारतीय शेयर बाजारों को मूल्यांकन संबंधी चिंताएं, कंपनियों की आय में गिरावट और कमजोर होते रुपये जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। इस समय रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 85.93 के रिकॉर्ड निचले स्तर पर है, जो भारतीय बाजारों के लिए एक महत्वपूर्ण खतरे की घंटी है।
इन प्रतिकूल परिस्थितियों के कारण एफआईआई ने अमेरिकी बाजारों की ओर रुख किया है, जहां उच्च बॉन्ड यील्ड और मजबूत डॉलर ने अधिक आकर्षक निवेश अवसर प्रदान किए हैं। अमेरिकी बाजारों में सुरक्षित निवेश की ओर बढ़ती प्रवृत्ति ने भारतीय बाजारों में विदेशी निवेशकों की भागीदारी को सीमित कर दिया है।
एचएसबीसी का संशोधित लक्ष्य और वैश्विक जोखिम
वैश्विक मंदी के दृष्टिकोण को और मजबूत करते हुए, ब्रोकरेज फर्म एचएसबीसी ने हाल ही में भारत के बाजार का दृष्टिकोण घटाकर ‘न्यूट्रल’ कर दिया है और 2025 के लिए सेंसेक्स का लक्ष्य भी संशोधित कर दिया है। इसके बाद से बाजार की धारणा और भी कमजोर हो गई है। वैश्विक स्तर पर, अमेरिकी फेडरल रिजर्व की नीतियों और डोनाल्ड ट्रंप के प्रशासन के तहत संभावित व्यापार नीतियों को लेकर अनिश्चितताओं ने भारतीय बाजारों में जोखिम से बचने की प्रवृत्ति को बढ़ावा दिया है, जिससे विदेशी निवेशकों की भागीदारी घट रही है।
इस पूरे परिदृश्य से यह स्पष्ट है कि भारतीय शेयर बाजार को वैश्विक निवेशकों के संकोच और घरेलू आर्थिक चुनौतियों के चलते एक कठिन दौर से गुजरना पड़ रहा है। हालांकि, रिटेल निवेशकों का विश्वास म्यूचुअल फंड और एसआईपी जैसे दीर्घकालिक निवेश विकल्पों में बना हुआ है।