कर्मनाशा की हार कहानी के आधार पर भैरो पाण्डे का चरित्र चित्रण करे॥ कर्मनाशा के प्रमुख पात्र का चरित्र चित्रण कीजिए ॥ Bhairav Pandey ka Charitra Chitran
उत्तर :- शिवप्रसाद सिंह द्वारा रचित कहानी ‘कर्मनाशा की हार’ के मुख्य पात्र भैरो पाण्डे का प्रगतिशील एवं निर्भीक चरित्र रूढ़िवादी समाज को फटकारते हुए सत्य को स्वीकार करने की भावना को बल प्रदान करता है। भैरो पाण्डे के चरित्र की निम्नलिखित विशेषताएँ उल्लेखनीय हैं-
क) कर्तव्यनिष्ठा एवं आदर्शवादिताः
भैरो पाण्डे पुरानी पीढ़ी के आदर्शवादी व्यक्ति हैं, जो अपने भाई को पुत्र की भाति पालते हैं तथा अपंग होते हुए भी स्वयं परिश्रम करके अपने भाई की देखभाल में कोई कमी नहीं होने देते।
ख) भ्रातृत्व-प्रेमः-
भैरो पाण्डे को अपने छोटे भाई से अत्यधिक प्रेम है। उन्होंने पुत्र के समान अपने भाई का पालन-पोषण किया है। इसलिए कुलदीप के घर से भाग जाने पर पाण्डे दुःख के सागर में डूबने लगते हैं।
ग) बौद्धिक व तार्किकः
व्यक्तित्व भैरो पाण्डे के विचार अत्यन्त गम्भीर व मनोवैज्ञानिक हैं। वे अन्धविश्वासों का खण्डन एवं रूढ़िवादिता का विरोध करने को तत्पर रहते हैं। वे कर्मनाशा की बाढ़ को रोकने के लिए निर्दोष प्राणियों की बलि दिए जाने सम्बन्धी अन्धविश्वास का विरोध करते है। वे बौद्धिक व तार्किक दृष्टिकोण से बाढ़ रोकने के लिए बाँध बनाने का उपाय सुझाते हैं।
घ) मर्यादावादी और मानवतावादी:
प्रारम्भ में भैरो पाण्डे अपनी मर्यादावादी भावनाओं के कारण फुलमत को अपने परिवार का अंग नहीं बना पाते हैं, लेकिन मानवतावादी भावना से प्रेरित होकर वे फुलमत एवं उसके बच्चे की कर्मनाशा नदी में बलि देने का कड़ा विरोध करते हैं तथा उसे अपने परिवार का सदस्य स्वीकार करते हैं।
ङ) निर्भीकता एवं साहसीपन:
भैरो पाण्डे के व्यक्तित्व में निर्भीकता एव साहसीपन के गुण मौजूद हैं। वे मुखिया सहित गाँव के सभी लोगों के। सामने अत्यन्त ही निडरता के साथ कर्मनाशा को मानव-बलि दिए जाने का विरोध करते हैं। वे साहस से कहते हैं कि यदि लोगों के पापों का हिसाब देने लगे तो यहाँ मौजूद सभी लोगों को कर्मनाशा की धारा में समाना होगा। उनकी निर्भीकता एवं साहस देखकर सभी लोग स्तब्ध रह जाते हैं।
च) आदर्श भाई :
भैरो पाण्डे एक आदर्श भाई है। माता-पिता के स्वर्ग सिधार जाने पर उनहोंने दो वर्षीय भाई कुलदीप का पालन-पोषण बेटे की तरह किया। उनहोंने बड़े लाड़ प्यार से उसे पाला -पोसा तथा उसकी शिक्षा दीक्षा का समुचित प्रबंध भी किया। कुलदीप जब घर से भाग गया तब भी भैरो पाण्डे उसकी चिंता में लीन रहते।
छ) वंश मर्यादा के प्रति सजग:
भैरो पाण्डे को यह संदेह था कि उनके भाई कुलदीप पड़ोस की विधवा युवती फुलमत से प्रेम करता है। बाल्टी लेने जब फुलमत उनके घर आई और कुलदीप से टकरा गई तो भैरो पाण्डे ने उन्हें ऐसी तीखी नजरों से देखा कि दोनों काँप गए, किन्तु जब कर्मनाशा के तट पर उन्होने दोनों का प्रेमालाप देखा तो कुलदीप को थप्पड़ मारने में भी उन्हें संकोच न हुआ। वे मन में यह भी सोचते थे – ”काश फुलमत अपनी जाट की होती,कितना अच्छा होता,वह विधवा न होती।”
ज) प्रगतिशील:
भैरो पाण्डे प्रगतिशील ग्रामीण है। जहाँ पूरे गाँव में यह अन्धविश्वास प्रचलित है कि कर्मनाशा की बाढ़ मानव बलि लेकर ही शांत होती है, वहीँ वे इस अंधविश्वास का खंडन करते हुए रूढ़िवादिता का विरोध करते हैं-”कर्मनाशा की बाढ़ दुधमुँहे बच्चे और एक अबला की बलि देने से नहीं रुकेगी,उसके लिए तुम्हें पसीना बहाकर बाँधों को ठीक करना होगा।”
इस प्रकार, भैरो पाण्डे मानवतावादी भावना के बल पर सामाजिक रूढ़ियों का निडरता के साथ विरोध करते हैं तथा कर्मनाशा की लहरों को पराजित होने के लिए विवश कर देते हैं। उक्त विवेचन के आधार पर कहा जा सकता है कि भैरो पाण्डे आदर्शवादी, नैतिक मूल्यों के समर्थक, साहसी एवं निर्भीक व्यक्ति हैं। उनके मानवतावाद एवं उनकी प्रगतिशीलता अनुकरणीय है।
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