कर्मनाशा की हार’ कहानी का सारांश लिखिए ॥ ‘कर्मनाशा की हार’ कहानी का संक्षिप्त विवरण अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
‘कर्मनाशा की हार’ प्रसिद्ध लेखक राही मासूम रज़ा द्वारा लिखी गई एक भावनात्मक और सामाजिक कहानी है, जिसमें समाज की तंग सोच, अंधविश्वास और इंसानियत के बीच की गहरी लड़ाई को दर्शाया गया है। यह कहानी उत्तर प्रदेश के एक गाँव नई डीह की है, जो कर्मनाशा नदी के किनारे बसा हुआ है।
इस गाँव में भैरो पाण्डे नामक एक पंडित रहते हैं। वे पैरों से अपाहिज हैं और अपनी पूरी ज़िंदगी ईमानदारी से गुज़ारते हैं। उनके माता-पिता का देहांत हो चुका है और उनका छोटा भाई कुलदीप, जिसे उन्होंने बचपन से अपने बेटे की तरह पाला है, अब सोलह साल का हो गया है। भैरो पाण्डे ने कुलदीप की परवरिश में कोई कसर नहीं छोड़ी, और वे चाहते हैं कि कुलदीप उनकी तरह आदर्श जीवन जिए।
भैरो पाण्डे के घर के पास ही एक मल्लाह परिवार रहता है। उसी परिवार की फूलमत नामक एक विधवा लड़की है। एक दिन फूलमत उनके घर बाल्टी माँगने आती है। भैरो पाण्डे, कुलदीप से कहते हैं कि वह फूलमत को बाल्टी दे दे। जब कुलदीप बाल्टी देने जाता है, तो वह फूलमत से हल्का टकरा जाता है। फूलमत पहले तो घबरा जाती है लेकिन फिर मुस्कुरा देती है। कुलदीप भी उसकी ओर आकर्षित होकर देखने लगता है।
भैरो पाण्डे यह सब चुपचाप देख लेते हैं। वे कुछ नहीं कहते लेकिन उन्हें यह बात चुभ जाती है। इसके बाद वे कुलदीप की गतिविधियों पर नजर रखने लगते हैं। धीरे-धीरे कुलदीप और फूलमत एक-दूसरे से प्रेम करने लगते हैं। एक रात दोनों कर्मनाशा नदी के किनारे चुपचाप मिलने जाते हैं। भैरो पाण्डे संयोग से उन्हें देख लेते हैं। वे बहुत क्रोधित हो जाते हैं। गुस्से में वे फूलमत को डांटते हैं और कुलदीप को थप्पड़ मारते हैं।
इस अपमान से आहत होकर कुलदीप घर छोड़कर भाग जाता है। भैरो पाण्डे उसे बहुत खोजते हैं, लेकिन वह नहीं मिलता। कई महीने बीत जाते हैं। इतने में कर्मनाशा नदी में भीषण बाढ़ आ जाती है। गाँव में डर का माहौल बन जाता है। गाँव वालों का यह अंधविश्वास है कि जब भी कर्मनाशा नदी उफनती है, वह किसी इंसान की बलि मांगती है।
उसी समय गाँव में यह खबर फैलती है कि फूलमत ने एक बच्चे को जन्म दिया है। गाँव के लोग यह मान लेते हैं कि फूलमत का पाप ही इस बाढ़ का कारण है। वे यह निर्णय लेते हैं कि फूलमत और उसके बच्चे को कर्मनाशा नदी में फेंक दिया जाए ताकि नदी शांत हो जाए। यह सुनकर भैरो पाण्डे का मन दुविधा में पड़ जाता है। वे जानते हैं कि बच्चा कुलदीप का है, लेकिन समाज के डर से चुप रहते हैं।
भैरो पाण्डे का मन इस अन्याय को देखकर भीतर ही भीतर टूट रहा होता है। एक तरफ उनका डर है कि अगर उन्होंने फूलमत का पक्ष लिया तो समाज उन्हें अपमानित करेगा, लेकिन दूसरी तरफ उनका अंतर्मन उन्हें सच कहने के लिए उकसाता है। आखिरकार इंसानियत की जीत होती है। वे निर्भय होकर कर्मनाशा के तट पर पहुँचते हैं, जहाँ फूलमत डरी हुई खड़ी होती है और ग्रामीण उसे और उसके बच्चे को बलिदान देने की तैयारी कर रहे होते हैं।
भैरो पाण्डे सबके सामने साहस के साथ सच्चाई बताते हैं कि फूलमत कोई पापिन नहीं है, बल्कि उनकी छोटी बहु है और उसका बच्चा उनके भाई कुलदीप का पुत्र है। यह सुनकर गाँव के लोग हैरान रह जाते हैं। गाँव का मुखिया फिर भी कहता है कि पाप का दंड मिलना चाहिए। तब भैरो पाण्डे गुस्से में कहते हैं कि अगर सबके पाप गिनने लगें, तो यहाँ खड़े सभी लोगों को कर्मनाशा में डूबना पड़ेगा।
यह सुनकर गाँव वाले शर्मिंदा और चुप हो जाते हैं। भैरो पाण्डे का निडर और न्यायप्रिय चरित्र गाँव के लोगों की आँखें खोल देता है।
यह कहानी हमें सिखाती है कि अंधविश्वास, सामाजिक भय और झूठे सम्मान से बढ़कर सत्य और इंसानियत होती है। ‘कर्मनाशा की हार’ सिर्फ नदी की हार नहीं, उस सोच की हार है जो प्रेम, सच्चाई और करुणा को पाप समझती है।
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