कर्मनाशा की हार कहानी का उद्देश्य ॥ कर्मनाशा की हार कहानी के उद्देश्य पर प्रकाश डालिए॥
कर्मनाशा की हार कहानी के संदेश॥ कर्मनाशा की हार में निहित संदेश
1. ‘कर्मनाशा की हार’ का उद्देश्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
‘कर्मनाशा की हार’ हमारे हिंदी पाठ्यक्रम कथा संचयन में शामिल एक मार्मिक और शिक्षाप्रद कहानी है, जिसके लेखक डॉ. शिवप्रसाद सिंह हैं। इस कहानी का मुख्य उद्देश्य भारतीय ग्रामीण समाज में फैले अंधविश्वास, ऊँच-नीच, जात-पात और सामाजिक भेदभाव की आलोचना करना है।
लेखक ने यह दिखाने की कोशिश की है कि किस तरह आज भी कई गाँवों में लोग बिना सोचे-समझे पुराने अंधविश्वासों पर विश्वास करते हैं और निर्दोष लोगों को दोषी ठहराते हैं। कहानी में जब कर्मनाशा नदी में बाढ़ आती है, तो गाँव के लोग मान लेते हैं कि यह फूलमत के ‘पाप’ का नतीजा है, जबकि असल में उसने कोई गलती की ही नहीं होती। यह सोच आज भी कई जगहों पर देखी जा सकती है, जहाँ महिलाओं और कमजोर वर्गों को बेवजह अपराधी बना दिया जाता है।
कहानी का उद्देश्य यह भी है कि समाज में न्याय, सहानुभूति और मानवता की भावना होनी चाहिए। भैरो पाण्डे जैसे पात्र हमें यह सिखाते हैं कि सच्चाई के लिए आवाज़ उठाना ज़रूरी है, भले ही समाज कुछ भी कहे। उन्होंने अंत में साहस दिखाया और फूलमत को बचाया।
इस कहानी के माध्यम से लेखक यह भी बताना चाहते हैं कि हमें रूढ़ियों और पुराने अंधविश्वासों से ऊपर उठकर सोचने की जरूरत है। केवल जाति, धर्म या लिंग के आधार पर किसी को अपमानित करना या बलि का पात्र बनाना बहुत बड़ा अन्याय है।
इसलिए, इस कहानी का मूल उद्देश्य है –
अंधविश्वास और सामाजिक कुरीतियों की आलोचना करना,
नारी और वंचित वर्गों के अधिकारों के लिए संवेदना और सहानुभूति जगाना,
रूढ़ियों के स्थान पर विवेक और मानवीयता की जीत को दिखाना,
तथा साहस और सच्चाई के साथ अन्याय का विरोध करने की प्रेरणा देना।
कहानी हमें यह संदेश देती है कि मानवता सबसे बड़ा धर्म है, और जब हम सच्चाई व इंसानियत के पक्ष में खड़े होते हैं, तभी समाज में वास्तविक परिवर्तन संभव होता है।
2. ‘कर्मनाशा की हार’ कहानी में निहित संदेश को स्पष्ट कीजिए।, कर्मनाशा की हार में निहित संदेश
उत्तर:
‘कर्मनाशा की हार’ कहानी में लेखक डॉ. शिवप्रसाद सिंह ने भारतीय ग्रामीण समाज में फैली सामाजिक कुरीतियों, अंधविश्वासों और जातिगत भेदभाव की गहरी आलोचना की है। यह कहानी केवल एक प्रेम प्रसंग की नहीं, बल्कि समाज की संकीर्ण सोच और सच्चाई के संघर्ष की कहानी है।
इस कहानी के माध्यम से लेखक ने यह संदेश दिया है कि किसी भी इंसान को उसके जाति, धर्म या सामाजिक स्थिति के आधार पर गलत ठहराना अन्याय है। फूलमत एक विधवा, मल्लाह समाज की लड़की है, जो अपने प्रेम और मातृत्व के अधिकार के लिए संघर्ष कर रही है। जब वह एक बच्चे को जन्म देती है, तो समाज बिना सच जाने उसे दोषी ठहरा देता है और कर्मनाशा नदी को शांत करने के लिए उसकी और बच्चे की बलि देना चाहता है। यह हमारे समाज में फैले अंधविश्वास और स्त्री विरोधी सोच को दर्शाता है।
इस कहानी का सबसे बड़ा संदेश मानवता की जीत है। भैरो पाण्डे, जो शारीरिक रूप से कमजोर हैं, लेकिन आत्मबल और नैतिकता में सबसे मजबूत निकलते हैं। वे समाज के डर और बदनामी के भय को पीछे छोड़कर सच्चाई के पक्ष में खड़े होते हैं। वे साहसपूर्वक घोषणा करते हैं कि फूलमत उनके छोटे भाई की पत्नी है और बच्चा उनका भतीजा है। यह दृश्य दर्शाता है कि जब एक व्यक्ति सच्चाई और न्याय के लिए खड़ा होता है, तो पूरे समाज की ग़लत सोच हार जाती है।
कहानी यह भी संदेश देती है कि हमें समाज में फैली रूढ़ियों, अंधविश्वासों और झूठे मान-सम्मान की परंपराओं से ऊपर उठकर सहानुभूति, विवेक और मानव मूल्यों को अपनाना चाहिए।
अंततः, ‘कर्मनाशा की हार’ हमें सिखाती है कि असली पाप किसी की जाति या प्रेम नहीं, बल्कि सच्चाई छिपाना और अन्याय का साथ देना होता है। जब एक व्यक्ति साहस के साथ सच्चाई का साथ देता है, तो पूरे समाज की ग़लत सोच को पराजित किया जा सकता है। यही इस कहानी का प्रमुख संदेश है – रूढ़ियों की हार और मानवता की विजय।
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