‘मनुष्य और सर्प’ कविता का मूल भाव अपने शब्दों में लिखिए।

‘मनुष्य और सर्प’ कविता का मूल भाव अपने शब्दों में लिखिए। Manushya Aur Sarp Kavita Ka Mul Bhav Kya Hai

'मनुष्य और सर्प' कविता का मूल भाव अपने शब्दों में लिखिए। Manushya Aur Sarp Kavita Ka Mul Bhav Kya Hai

उत्तर :
‘मनुष्य और सर्प’ कविता का आधार महाभारत का युद्ध है। महाभारत की कथा के आधार पर ही दिनकर जी ने रश्मिरथी नामक काव्य की रचना की और इस काव्य में महाभारत काल के महावीर कर्ण के उज्ज्वल और आदर्श चरित्र को दर्शाया है।  महाभारत के युद्ध में कौरवों की तरफ भीष्म, द्रोणाचार्य, कर्ण जैसे वीर थे और पाण्डवों की तरफ भगवान श्रीकृष्ण। युद्ध के दौरान जब अर्जुन और कर्ण आमने-सामने लड़ रहे थे, तभी कर्ण को उसकी तरकश में एक सर्प की आवाज सुनाई दी। वह सर्प कोई आम सर्प नहीं बल्कि सर्पों का राजा अश्वसेन था।

अश्वसेन ने कर्ण से कहा कि वह अर्जुन का दुश्मन है और अगर कर्ण उसे अपने बाण में बिठा कर अर्जुन तक पहुँचा दे, तो वह अर्जुन को अपने विष से खत्म कर देगा। इस तरह अर्जुन की मृत्यु हो जाएगी और कर्ण की जीत तय हो जाएगी।

लेकिन कर्ण ने उस सर्प की मदद लेने से मना कर दिया। कर्ण ने कहा कि वह एक मनुष्य है और उसके दुश्मन अर्जुन भी मनुष्य है। इसलिए वह अर्जुन को हराने के लिए किसी गैर-मानव की मदद नहीं लेगा। कर्ण का मानना था कि जीत अगर किसी गलत तरीके से पाई जाए, तो उसका कोई मूल्य नहीं होता। वह कहता है कि अगर वह सर्प की मदद से अर्जुन को मार देगा, तो आने वाली पीढ़ियाँ उसे धोखेबाज कहेंगी और उसका नाम बदनाम होगा।

तेरी सहायता से जय तो, मैं अनायास पा जाऊँगा,
आनेवाली मानवता को, लेकिन क्या मुख दिखलाऊँगा?

कर्ण ने यह भी कहा कि शत्रुता हमेशा नहीं चलती, यह इसी जीवन तक होती है। समझदार लोग शत्रुता को पीढ़ियों तक नहीं बढ़ाते। इसलिए उसने अश्वसेन को यह कहकर मना कर दिया कि वह किसी सर्प की मदद नहीं लेगा, चाहे उसे जीत मिले या नहीं।

अर्जुन है मेरा शत्रु, किन्तु वह सर्प नहीं, नर ही तो है,
संघर्ष, सनातन नहीं, शत्रुता, इस जीवन-भर ही तो है।

कविता का मूल भाव यह है कि एक सच्चा और चरित्रवान इंसान कभी भी गलत या धोखेबाज़ तरीके से अपनी जीत नहीं चाहता। वह सामने से, ईमानदारी से, और नैतिक रास्ते से ही जीत हासिल करना चाहता है। जो लोग छिपकर वार करते हैं या गलत साधनों का उपयोग करते हैं, वे मानवता के लिए खतरा होते हैं।

कर्ण का यह व्यवहार हमें सिखाता है कि सच्चा साहस और नैतिकता हमेशा सच्चाई और ईमानदारी के साथ होती है, भले ही उसके बदले में हार क्यों न मिले। अक्सर दुश्मन का दुश्मन मित्र बन जाता है और वे आज के समय में इस रास्ते पर चलना ही अपना ध्येय मान लेते हैं । परंतु कर्ण अश्वसेन द्वारा दिए गये प्रस्ताव को ठुकरा देता है। कर्ण के लिए तो अपने शत्रु को छल से मारना स्वयं की कायरता का परिचय देना है। वह मनुष्य के सहज स्वाभाविक शत्रु से सहायता लेकर अर्जुन को मारना इसे अनैतिक मानता है ।

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