मनुष्य और सर्प कविता का उद्देश्य ॥ Manushya Aur Sarp Kavita Ka Uddeshya

मनुष्य और सर्प कविता का उद्देश्य ॥ Manushya Aur Sarp Kavita Ka Uddeshya

मनुष्य और सर्प कविता का उद्देश्य ॥ Manushya Aur Sarp Kavita Ka Uddeshya

रामधारी सिंह ‘दिनकर’ द्वारा रचित ‘मनुष्य और सर्प’ कविता उनके प्रसिद्ध महाकाव्य ‘रश्मिरथी’ से ली गई है। यह कविता केवल महाभारत के युद्ध का वर्णन नहीं करती, बल्कि इसके माध्यम से कवि ने एक बहुत ही गहरा नैतिक, सामाजिक और मानवीय संदेश देने का प्रयास किया है। यह कविता बताती है कि एक सच्चा मनुष्य कौन होता है, और उसे किन सिद्धांतों का पालन करना चाहिए।

इस कविता में महाभारत के भीषण युद्ध की पृष्ठभूमि में कर्ण और सर्प (अश्वसेन) के संवाद के माध्यम से यह दिखाया गया है कि सच्ची वीरता छल, कपट या विष से नहीं, बल्कि ईमानदारी, मेहनत और नैतिकता से मिलती है। युद्ध के समय जब अश्वसेन कर्ण से प्रार्थना करता है कि वह उसे अपने बाण पर बैठाकर अर्जुन के हृदय में भेज दे ताकि वह अपनी माँ की मृत्यु का बदला ले सके, तो कर्ण साफ इनकार कर देता है। कर्ण कहता है कि वह मनुष्य होकर सर्प की मदद से नहीं लड़ सकता। यह कर्ण का नैतिक साहस और उच्च चरित्र को दर्शाता है।

कविता का मुख्य उद्देश्य यह है कि —

मनुष्य को किसी भी परिस्थिति में अपनी नैतिकता और धर्म नहीं छोड़नी चाहिए।

कर्ण इस कविता में एक आदर्श योद्धा और सच्चे मनुष्य के रूप में सामने आता है। वह कहता है कि यदि उसने अश्वसेन की मदद से अर्जुन को मारा, तो लोग कहेंगे कि उसने धोखा दिया, विष से मारा। वह ऐसा कोई कार्य नहीं करना चाहता जिससे उसकी वीरता पर सवाल उठे। वह चाहता है कि उसकी पहचान उसकी ईमानदारी, परिश्रम और साहस के कारण हो – न कि छल और विष के कारण।

कविता का दूसरा महत्वपूर्ण उद्देश्य यह है कि कवि सर्प को केवल एक जीव नहीं, बल्कि एक प्रतीक के रूप में प्रयोग करते हैं। वे बताते हैं कि अब सर्प केवल जंगलों में नहीं रहते, बल्कि वे मनुष्यों के भीतर भी बसते हैं। इसका अर्थ यह है कि कई लोग बाहर से इंसान दिखते हैं, लेकिन उनके मन में द्वेष, कपट, पाप और स्वार्थ का ज़हर भरा होता है। ऐसे लोगों से समाज और मानवता को ख़तरा होता है।

रामधारी सिंह दिनकर इस कविता के माध्यम से यह सीख देना चाहते हैं कि—

सच्चा बल केवल बाहुबल में नहीं होता, बल्कि वह मनुष्य के चरित्र की शक्ति में निहित होता है। जीवन या युद्ध में सफलता पाने के लिए अनैतिक साधनों का सहारा नहीं लेना चाहिए, क्योंकि ऐसे साधन अंततः विनाश की ओर ले जाते हैं। मानवता, धर्म और सत्य का मार्ग ही सच्चा और स्थायी मार्ग होता है, जो न केवल व्यक्ति को सम्मान दिलाता है, बल्कि समाज में आदर्श भी स्थापित करता है। इसलिए मनुष्य को चाहिए कि वह अपने भीतर छिपे विष—जैसे द्वेष, छल, कपट और ईर्ष्या—को समाप्त कर, आत्मशुद्धि के मार्ग पर अग्रसर हो, तभी वह सच्चे अर्थों में शक्तिशाली और विजयी कहलाएगा।

निष्कर्ष

‘मनुष्य और सर्प’ कविता का उद्देश्य केवल युद्ध का वर्णन करना नहीं है, बल्कि यह एक उच्च कोटि का नैतिक संदेश देती है। यह कविता हमें कर्ण जैसे महान योद्धा के आदर्शों से प्रेरणा लेने को कहती है। यह बताती है कि चाहे कितनी भी कठिन परिस्थिति क्यों न हो, धर्म, सत्य और ईमानदारी को नहीं छोड़ना चाहिए।

आज के समय में जब लोग स्वार्थ और छल-कपट से आगे बढ़ना चाहते हैं, यह कविता हमें याद दिलाती है कि—

“मनुष्य बनो, सर्प मत बनो। वीरता दिखाओ, विष मत उगलो।”

यह कविता आज भी उतनी ही प्रासंगिक है और हमें एक सच्चा, ईमानदार और नैतिक जीवन जीने की प्रेरणा देती है।

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