नीड़ का निर्माण फिर फिर कविता में निहित संदेश स्पष्ट कीजिए?

नीड़ का निर्माण फिर फिर कविता में निहित संदेश स्पष्ट कीजिए, nid ka nirman fir fir kavita me nihit sandesh

नीड़ का निर्माण फिर फिर कविता में निहित संदेश स्पष्ट कीजिए?


‘नीड़ का निर्माण फिर फिर’ हरिवंश राय बच्चन द्वारा लिखित एक प्रेरणादायक कविता है, जो उनकी प्रसिद्ध काव्य कृति ‘सतरंगिनी’ से ली गई है। इस रचना में कवि ने अत्यंत सरल लेकिन गहन प्रतीकों के माध्यम से जीवन का एक महत्वपूर्ण दर्शन प्रस्तुत किया है। कविता का केंद्रीय प्रतीक “नीड़” यानी घोंसला है, जो जीवन, प्रेम, संघर्ष और निर्माण का प्रतीक बन जाता है।

कविता में कवि चिड़िया के माध्यम से मनुष्य को यह सिखाते हैं कि जीवन में कितनी भी बाधाएँ, विघ्न या विनाश क्यों न आ जाएं, मनुष्य को अपने जीवन रूपी नीड़ (घोंसले) का पुनर्निर्माण करते रहना चाहिए। प्रेम, धैर्य और संकल्प को कभी नहीं छोड़ना चाहिए। जीवन में निरंतर परिवर्तन आते रहते हैं, लेकिन जो व्यक्ति बार-बार गिरने के बाद भी उठकर फिर से मेहनत करता है, वही सफलता की ओर अग्रसर होता है।

कविता की ये पंक्तियाँ –


“नीड़ का निर्माण फिर फिर,

नेह का आह्वान फिर फिर!”


एक स्पष्ट संदेश देती हैं कि प्रेम और निर्माण की भावना को बार-बार दोहराना चाहिए, चाहे कितनी भी बार उसे तोड़ा गया हो।

कविता आगे चलकर उन परिस्थितियों का उल्लेख करती है जहाँ जीवन में अंधकार, भय और निराशा छा जाती है। उस समय लगता है कि उजाला कभी लौटेगा ही नहीं। लेकिन कवि विश्वास दिलाते हैं कि ऐसे अंधकारमय क्षणों में भी उम्मीद और हौसला नहीं छोड़ना चाहिए।

” रात के उत्पात -भय से 

भीत जन-जन ,भीत कण – कण, 

किन्तु प्राची से उषा की 

मोहिनी मुस्कान फिर -फिर “

अंततः, यह कविता हमें यह सिखाती है कि जीवन में बार-बार संकट आ सकते हैं, लेकिन हमें धैर्य और साहस के साथ फिर से निर्माण करना चाहिए। हार मानने के बजाय आशा और विश्वास के साथ आगे बढ़ना ही जीवन का सार है।

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