देशप्रेम कविता का मूल भाव लिखें ॥ Desh Prem Kavita Ka Mul Bhav

देशप्रेम कविता का मूल भाव लिखें ॥ Desh Prem Kavita Ka Mul Bhav

देशप्रेम कविता का मूल भाव लिखें ॥ Desh Prem Kavita Ka Mul Bhav

मनुष्य के जीवन में जन्मभूमि के प्रति निष्ठा और प्रेम एक स्वाभाविक गुण है। जिस भूमि की धूल में खेलकर हम बड़े होते हैं, जिसने हमें अपना आसरा दिया है, उसका ऋण चुकाना असंभव है। उसे भूल जाना अपने देश और मातृभूमि के प्रति कृतघ्नता ही कहलाएगी। कवयित्री अनामिका ने अपनी कविता ‘देशप्रेम’ में इन्हीं भावनाओं को बड़े मार्मिक और प्रतीकात्मक ढंग से व्यक्त किया है।

कवयित्री कविता की शुरुआत जीवन की एक सामान्य-सी बात से करती हैं। वह कहती हैं कि जब कोट पुराना हो जाता है, तो उसका अस्तर अक्सर फट जाता है। ऐसे में कई बार छुट्टे पैसे जेब से निकलकर अस्तर के किसी कोने में फँस जाते हैं और लंबे समय तक वहीं छिपे रहते हैं। कभी अचानक उँगलियाँ उस जगह छू जाती हैं और हमें उन पैसों की याद आती है।

इसी बात को कवयित्री ने देशभक्ति की भावना से जोड़ा है। वह कहती हैं कि उनके दिल के किसी कोने में दबा हुआ देशप्रेम भी उसी तरह अचानक उन्हें महसूस हुआ। जैसे बहुत दिनों बाद कोई खोई हुई चीज़ मिलने पर प्रसन्नता होती है, वैसे ही अपने दिल में जीवित देशप्रेम को पाकर कवयित्री का मन भी गदगद हो उठा।

कवयित्री को वह ठंडी सुबह याद आती है, जब 26 जनवरी के दिन उनका ट्रांजिस्टर खुला रह गया था और उस पर राष्ट्रगान बज उठा। वह कम्बल में दुबकी हुई थीं और मन में सोच रही थीं कि इसे अनसुना कर दें। लेकिन तभी उनके भीतर का देशप्रेम जाग उठा और वह ठंडी सुबह में भी कम्बल छोड़कर सावधान की मुद्रा में खड़ी हो गईं। यह प्रसंग बताता है कि चाहे कितनी भी उदासीनता क्यों न आ जाए, हमारे दिल में छिपा देशप्रेम अचानक भी जीवित हो उठता है।

कवयित्री पुराने दिनों को याद करती हैं, जब सिनेमा हॉल में भी फिल्म के समाप्त होने पर राष्ट्रगान बजता था। दर्शक पूरे सम्मान के साथ अपनी सीटों से खड़े होकर सावधान की मुद्रा में राष्ट्रगान सुनते थे। उस समय सिनेमा मनोरंजन का साधन जरूर था, लेकिन उसमें शालीनता और मर्यादा थी। हेलेन के कैबरे नृत्य भी सभ्य होते थे और मुकरी जैसे हास्य कलाकार अपने भोलेपन से लोगों को हँसाते थे। फिल्म खत्म होते ही पर्दे पर तिरंगे का चित्र और ‘जनगणमन…’ राष्ट्रगान सुनाई देता था, और तब तक कोई भी दर्शक अपनी सीट पर बैठता नहीं था। यह सब उस दौर के सच्चे देशप्रेम और अनुशासन का प्रतीक था।

अब कवयित्री यह सोचकर दुखी होती हैं कि देशप्रेम की वही भावना आज क्यों कम होती जा रही है। पहले जो भावना लोगों के दिलों में उमड़ती थी, अब वह धीरे-धीरे मुरझा रही है। आजकल लोग अपने मोबाइल की कॉलरट्यून पर ‘सारे जहाँ से अच्छा…’ लगाकर देशभक्ति का दिखावा करते हैं। पर वास्तव में यह कोई गहरी भावना नहीं, बल्कि केवल औपचारिकता निभाने का तरीका है। देशभक्ति अब बाहरी आडंबर बनकर रह गई है, जबकि उसके असली स्वरूप को लोग भूलते जा रहे हैं।

कवयित्री का स्पष्ट संदेश है कि हमें अपने देशप्रेम को खोने नहीं देना चाहिए। देश केवल नारों या रिंगटोन से नहीं चलता, बल्कि इसके लिए सच्चे त्याग और निष्ठा की आवश्यकता होती है। आज देश को ऐसे देशभक्तों की जरूरत है, जो अपना तन, मन और धन मातृभूमि के चरणों में अर्पित करने के लिए तैयार हों। स्वार्थी और अवसरवादी देशभक्तों से देश का उत्थान नहीं हो सकता।

‘देशप्रेम’ कविता हमें यह सिखाती है कि देशभक्ति केवल औपचारिकता नहीं, बल्कि हृदय की गहराई से निकलने वाली भावना है। पहले यह भावना लोगों के जीवन में हर समय विद्यमान थी, लेकिन अब यह केवल विशेष अवसरों तक सिमटकर रह गई है। कवयित्री हमें चेतावनी देती हैं कि यदि हमने इस भावना को सच्चे अर्थों में नहीं जिया, तो यह पूरी तरह लुप्त हो जाएगी। अतः आवश्यक है कि हम अपनी मातृभूमि के प्रति सदैव निष्ठावान रहें और सच्चे कर्मों से उसकी सेवा करें।

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