देशप्रेम कविता का सारांश अपने शब्दों में लिखिए ॥ Desh Prem Kavita Ka Saransh Class 10

देशप्रेम कविता का सारांश अपने शब्दों में लिखिए ॥ Desh Prem Kavita Ka Saransh

देशप्रेम कविता का सारांश अपने शब्दों में लिखिए

कवयित्री अनामिका की कविता ‘देशप्रेम’ हमारे समय की बदलती मानसिकता और लोगों के भीतर कम होती देशभक्ति की भावना को बहुत ही प्रतीकात्मक और गहरे अंदाज़ में प्रस्तुत करती है। यह कविता हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि क्यों आज के इंसान के जीवन से देश के प्रति समर्पण और जिम्मेदारी का भाव धीरे-धीरे लुप्त होता जा रहा है।

कवयित्री कहती हैं कि आज का दौर बड़ा कठिन और खतरनाक है। यह ऐसा समय है, जब व्यक्ति केवल अपने स्वार्थ में डूबा हुआ है और किसी दूसरे के प्रति जिम्मेदारी लेना नहीं चाहता। समाज और देश के प्रति संवेदना और दायित्व की जो भावना पहले लोगों के दिलों में दिखाई देती थी, अब वह लगभग गायब होती जा रही है।

कवयित्री ने घटते हुए देशप्रेम को एक बहुत ही सुंदर प्रतीक के माध्यम से समझाया है। वह कहती हैं कि आज देशभक्ति हमारे दिल के किसी कोने में वैसे ही छिपी हुई है, जैसे किसी पुराने कोट की जेब में रखे छुट्टे पैसे। इन पैसों की याद तभी आती है, जब अचानक हाथ जेब में चला जाए। इसी तरह, हमें अपने देशप्रेम का एहसास भी केवल खास अवसरों पर या अनजाने में ही होता है।

उदाहरण के लिए, जब गलती से रेडियो, ट्रांजिस्टर या मोबाइल से 26 जनवरी या 15 अगस्त पर बजता हुआ राष्ट्रगीत सुनाई दे जाता है, तभी हमारे मन में देशभक्ति का भाव जाग उठता है। उस क्षण हम संवेदनशील हो जाते हैं, भावुक हो जाते हैं, लेकिन यह भावना बहुत देर तक टिकती नहीं है। थोड़ी ही देर बाद हम फिर से अपनी दिनचर्या और व्यस्तताओं में खो जाते हैं।

कवयित्री मानती हैं कि आज के समय में हमारी संवेदनाएँ बोझिल और थकी हुई हो गई हैं। राष्ट्रगीत सुनते ही हमारे मन में देशभक्ति की लहर तो उठती है, लेकिन उतनी ही जल्दी वह थम भी जाती है। फिर भी, हमारे भीतर थोड़ा-सा जज्बा अभी बाकी है, जो हमें अनचाहे भी खड़ा कर देता है और राष्ट्रगीत के प्रति सम्मान प्रकट करने को मजबूर करता है। कवयित्री इसे अजीब-सी आदत बताती हैं और कहती हैं कि —
“देशप्रेम भी एक अजब-सी घीज़ है, जो आसानी से छूटती नहीं।”

कवयित्री को वह दौर याद आता है, जब लोगों के दिलों में देशभक्ति का भाव बहुत प्रबल था। उस समय सिनेमा घरों में भी फिल्म समाप्त होने के बाद राष्ट्रगीत बजाया जाता था और दर्शक पूरे सम्मान के साथ खड़े होकर उसे सुनते थे। उस समय मनोरंजन के साधनों में भी शालीनता और सादगी थी। फिल्मों में भले ही नृत्य और हास्य होते थे, लेकिन उनमें अश्लीलता या फूहड़ता नहीं होती थी। उस दौर में लोगों का जीवन सरल था और दिलों में देश के प्रति गहरी निष्ठा बसी हुई थी।

अब सवाल यह है कि धीरे-धीरे देशप्रेम का यह आवेग क्यों कम होता जा रहा है? आज देशप्रेम हमारे लिए एक भारी-भरकम शब्द बन गया है, जिसे हम बोझ की तरह ढो रहे हैं। राष्ट्रगीत, जो कभी सम्मान और भावनाओं का प्रतीक था, आज मोबाइल की रिंगटोन बनकर रह गया है। जब यह अचानक बजता है तो थोड़ी देर के लिए भावनाएँ जागती हैं, लेकिन तुरंत ही हम उसे बंद कर देते हैं और फिर अपनी सामान्य बातों में मशगूल हो जाते हैं।

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