जांच अभी जारी है कहानी का सारांश ॥ जांच अभी जारी है कहानी Ka Saransh ॥ जाँच अभी जारी हैं कहानी का सारांश अपने शब्दों में लिखें॥ Jaanch Abhi Jari Hai Kahani Ka Saransh
ममता कालिया द्वारा लिखित यह कहानी यथार्थवादी कहानी है। इसमें समाज में जी रही एक स्त्री के जीवन संघर्ष और उसके साहस का चित्रण किया गया है। कहानी की नायिका अनेक कठिनाइयों और अन्याय का सामना करती है, लेकिन वह कभी हार नहीं मानती। अपने आत्मसम्मान और पहचान को बचाए रखने के लिए वह हर परिस्थिति से डटकर लड़ती है।
यह कहानी हमें दिखाती है कि एक साधारण-सी नारी भी कितनी दृढ़ और साहसी हो सकती है। जब समाज और व्यवस्था उसे बेड़ियों में जकड़ने की कोशिश करते हैं, तब भी वह अपने हौसले और आत्मबल के सहारे आगे बढ़ती है। अन्याय और अत्याचार के सामने झुकने के बजाय वह अपने अस्तित्व को कायम रखती है।
इस प्रकार, यह कहानी न केवल एक नारी के संघर्ष को दर्शाती है, बल्कि हमें भी यह सिखाती है कि कठिन परिस्थितियों में साहस और आत्मसम्मान को कभी नहीं छोड़ना चाहिए। यही कारण है कि ममता कालिया की यह रचना हमारे दिल को गहराई से छूती है और हमें सोचने पर मजबूर कर देती है।
अपर्णा एक महत्वाकांक्षी युवती है। उसने कॉलेज की लेक्चरर की नौकरी छोड़कर एक राष्ट्रीयकृत बैंक में अधिकारी के रूप में काम करना शुरू किया। वह ईमानदार, स्पष्ट बोलने वाली, मेहनती और लगनशील है, इसलिए उसने अपने काम में खास पहचान बना ली है। अपर्णा साफ-साफ बात करती है और किसी की चमचागिरी उसे अच्छी नहीं लगती। वह अपने काम और जिम्मेदारियों के प्रति पूरी तरह समर्पित रहती है।
पुरुष प्रधान समाज में किसी भी नारी के लिए अपनी पहचान और इज्जत को सुरक्षित रखना आसान नहीं होता। अपर्णा भी एक युवती है। बैंक में उसके साथ काम करने वाले पुरुष अधिकारी उस पर डोरे डालने की कोशिश करते हैं, लेकिन वह उनके झाँसे में नहीं आती। इसी कारण कुछ लालची अधिकारी उससे नाराज़ रहते हैं।
बैंक में मिस्टर सिन्हा नाम के अधिकारी हैं। उन्होंने अपने बेटे का जन्मदिन बैंक में ही मनाने का कार्यक्रम रखा। उन्होंने अपर्णा को भी थोड़ी देर के लिए उस समारोह में आने के लिए मना लिया। अपर्णा इस जाल में फँस जाती है, लेकिन वह बहुत सतर्क रहती है। जब वह मेज़ पर शराब की बोतल और गिलास देखती है, तो तुरंत समझ जाती है कि वहाँ रुकना ठीक नहीं है। वह मिस्टर सिन्हा की इच्छा के खिलाफ ऑफिस से बाहर निकलकर घर चली जाती है।
मिस्टर सिन्हा इसे अपनी बेइज़्ज़ती मान लेते हैं और उनके मन में अपर्णा के लिए एक गाँठ पड़ जाती है।
घटनाएँ इस तरह बदलती हैं कि अपर्णा अपना एल.टी.सी. और बैंक से कुछ एडवांस लेकर जगन्नाथपुरी जाने की योजना बनाती है। लेकिन यात्रा के ठीक समय उसके पिताजी की तबीयत अचानक खराब हो जाती है और उन्हें अस्पताल में भर्ती कराना पड़ता है। इस कारण पुरी की यात्रा रुक जाती है। उसकी 10 दिन की छुट्टी पिता की देखभाल में ही बीत जाती है।
दस दिन बाद जब वह वापस दफ़्तर पहुँचती है तो बैंक का चपरासी दातादीन क्षेत्रीय कार्यालय से आकर उसे एक रजिस्टर्ड लिफाफा देता है। उस लिफाफे में अपर्णा पर बैंक के साथ धोखाधड़ी करने का आरोप लिखा होता है।
अपर्णा के साथ मिस्टर खन्ना और मिस्टर सिन्हा का बदला लेने वाला रूप सामने आता है। उसने अपने कार्यक्रम के स्थगित होने की सूचना बैंक को फोन पर दे दी थी, लेकिन लिखित सूचना न होने के कारण उसके तर्क को बेबुनियाद मान लिया जाता है। इसके बाद अपर्णा पर जाँच आयोग बैठाया जाता है। उसे तरह-तरह से मानसिक कष्ट दिया जाता है और जानबूझकर परेशान किया जाता है।
जाँच अधिकारियों के यहाँ अपर्णा की फ़ाइल बार-बार घूमती रहती है। हर बार नई तारीख दी जाती है, लेकिन जाँच की कार्यवाही खत्म होने के बजाय द्रौपदी की चीर की तरह लगातार खिंचती चली जाती है।
अपर्णा को सख्त सच का सामना करना पड़ता है। उसे परेशान किया जाता है और अधिकारियों के गुस्से का शिकार भी होना पड़ता है, लेकिन वह इस स्थिति से हार नहीं मानती। वह पूरे साहस और हिम्मत के साथ मुकाबला करती है और झुकती नहीं। जाँच की प्रक्रिया लगातार चलती रहती है।
इस तरह इस यथार्थवादी कहानी में लेखिका ने एक ऐसी नारी की संघर्ष गाथा को सफलतापूर्वक दिखाया है, जो जीवन की कठिन और जटिल परिस्थितियों से जूझते हुए भी अपनी अस्मिता और साहस बनाए रखती है।
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