नौरंगिया का चरित्र चित्रण ॥ नौरंगिया कविता के नौरंगिया का चरित्र चित्रण कीजिए ॥ naurangiya ka charitra chitran kijiye ॥ naurangia ka charitra chitran ।।
कैलाश गौतम की कविता “नौरंगिया” में भारतीय ग्रामीण स्त्री के श्रम, संघर्ष, त्याग और आत्मसम्मान से भरे जीवन का यथार्थ चित्रण मिलता है। नौरंगिया का चरित्र केवल एक ग्रामीण महिला का नहीं, बल्कि भारत की उस नारी का प्रतीक है जो विपरीत परिस्थितियों में भी धैर्य, साहस और कर्मठता से जीवन का निर्वाह करती है। कवि ने उसके माध्यम से ग्रामीण जीवन की कठोर वास्तविकताओं, गरीबी की मार और समाज की विषमताओं को उजागर किया है।
1. परिश्रमी और कर्मठ स्त्री
नौरंगिया का जीवन श्रम और कठिन परिश्रम से भरा हुआ है। वह घर के छोटे-मोटे काम ही नहीं करती, बल्कि खेत-खलिहान का दायित्व भी संभालती है। कभी वह खेतों में हल जोतते पति का साथ देती है, तो कभी कटाई-बोवाई में श्रम करती है। उसकी जिंदगी आराम और ऐशोआराम से दूर, केवल श्रम और संघर्ष से भरी है। यही उसकी सबसे बड़ी विशेषता है कि वह पुरुषों से भी अधिक परिश्रमी और कर्मठ है।
2. त्यागमयी और सहनशील नारी
ग्रामीण महिला के जीवन में त्याग का बहुत महत्व होता है। नौरंगिया स्वयं अभाव और कठिनाइयाँ झेलकर भी परिवार की भलाई के लिए तत्पर रहती है। उसके जीवन में व्यक्तिगत सुख-दुख का कोई महत्व नहीं है। भूख, गरीबी और आर्थिक संकट जैसी स्थितियों को भी वह धैर्यपूर्वक सह लेती है। कठिनाइयों के बीच जीते हुए भी वह परिवार की नींव को मजबूत बनाए रखती है।
3. संघर्षशील और साहसी व्यक्तित्व
नौरंगिया हार मानने वाली महिला नहीं है। गरीबी, भूख, अभाव, अशिक्षा और समाज की विषमताओं से जूझते हुए भी वह हार नहीं मानती। उसका चरित्र यह दर्शाता है कि भारतीय ग्रामीण नारी हर परिस्थिति का डटकर सामना कर सकती है। समाज में अक्सर उसे कमजोर समझा जाता है, लेकिन वास्तव में वह संघर्षों में पुरुषों से भी आगे निकल जाती है।
4. आशावान और आत्मविश्वासी नारी
नौरंगिया का व्यक्तित्व केवल दुख और कष्टों तक सीमित नहीं है। उसमें आशा और आत्मविश्वास भी है। कठिनाइयों में भी वह उम्मीद नहीं छोड़ती। यही कारण है कि कवि ने उसे “पुरुष से भी अधिक आशावान” बताया है। उसका विश्वास है कि मेहनत से जीवन की कठिनाइयों को पार किया जा सकता है। वह निराशा में भी आशा की किरण खोज लेती है।
5. ग्रामीण स्त्री की यथार्थ छवि
नौरंगिया के माध्यम से कवि ने भारतीय गाँवों में रहने वाली साधारण स्त्रियों की तस्वीर खींची है। उसका जीवन गरीबी, अभाव और श्रम का प्रतीक है। वह आधुनिक सुख-सुविधाओं से दूर, मिट्टी और पसीने से जुड़ा हुआ जीवन जीती है। उसकी दुनिया खेत, खलिहान, पशु और परिवार तक सीमित है। वह समाज के केंद्र में रहते हुए भी अक्सर उपेक्षित और अनदेखी रह जाती है।
6. आत्मसम्मान और स्वाभिमान से परिपूर्ण
नौरंगिया भले ही गरीबी और कठिनाइयों से जूझ रही हो, लेकिन उसका आत्मसम्मान और स्वाभिमान अटूट है। वह किसी के आगे झुकना नहीं जानती। उसका यह गुण भारतीय नारी की उस मूल प्रवृत्ति को प्रकट करता है जिसमें आत्मगौरव और आत्मनिर्भरता सबसे बड़ी शक्ति है।
7. प्रतीकात्मक महत्व
नौरंगिया मात्र एक पात्र नहीं है, बल्कि वह भारतीय ग्रामीण नारी का जीवंत प्रतीक है। उसके संघर्ष में अनगिनत स्त्रियों का जीवन झलकता है। उसकी छवि देखकर यह कहा जा सकता है कि गाँव की असली ताकत वही महिलाएँ हैं, जो खेतों से लेकर घर तक हर जिम्मेदारी उठाती हैं।
नौरंगिया का चरित्र भारतीय ग्रामीण स्त्री के श्रम, संघर्ष, त्याग, साहस और आत्मसम्मान की प्रतिमूर्ति है। वह समाज के हाशिए पर जीती हुई भी अपने जीवन को मेहनत और कर्मठता से संवारती है। कैलाश गौतम ने उसकी छवि प्रस्तुत करके ग्रामीण जीवन की गहरी सच्चाइयों और भारतीय नारी की शक्ति को उजागर किया है। इस प्रकार नौरंगिया एक सामान्य स्त्री होकर भी असाधारण है। वह भारतीय स्त्री की उस विराट शक्ति का प्रतीक है जो पुरुष से भी अधिक धैर्यवान, आशावान और कर्मठ होकर समाज और परिवार की रीढ़ बनी हुई है।
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