नौरंगिया कविता का मूल भाव अपने शब्दों में लिखिए॥ Naurangiya Kavita Ka Mul Bhav

नौरंगिया कविता का मूल भाव अपने शब्दों में लिखिए॥ Naurangiya Kavita Ka Mul Bhav ॥  Naurangiya Kavita Ka Mul Bhav Likhiye ॥ नौरंगिया कविता का मूल भाव लिखिए

नौरंगिया कविता का मूल भाव अपने शब्दों में लिखिए॥ Naurangiya Kavita Ka Mul Bhav ॥  Naurangiya Kavita Ka Mul Bhav Likhiye ॥ नौरंगिया कविता का मूल भाव लिखिए

‘नौरंगिया’ कविता में जनवादी कवि कैलाश गौतम ने भारतीय किसान महिला के जीवन को बहुत ही सजीव तरीके से दिखाया है। नौरंगिया गंगापार की रहने वाली है। गंगापार का इलाका दियारा अंचल कहलाता है। इस इलाके की भौगोलिक स्थिति ऐसी है कि वहाँ के लोग मजबूत और मेहनती होते हैं। इस क्षेत्र के लोगों की लंबी और छरहरी कद-काठी उनकी खास पहचान है। कवि यह भी बताते हैं कि किसान परिवार की महिलाएँ पुरुषों से ज़्यादा जुझारू और मेहनतकश होती हैं। नौरंगिया उसी मेहनत और संघर्ष की सच्ची मिसाल है।

कवि बताते हैं कि नौरंगिया देवी-देवताओं की कृपा पर भरोसा करने के बजाय अपने कर्म पर विश्वास करती है। वह बहुत सीधी और भोली है, उसके मन में किसी तरह का छल-कपट नहीं है। साथ ही, वह बेहद जुझारू स्वभाव की है। गाँव के रसूखदार लोगों के सामने भी वह कभी झुकती नहीं। अपने ही दम पर खेती-बाड़ी और घर-गृहस्थी का सारा काम संभाल लेती है। उसका पति आलसी और निकम्मा है, जिसे कवि उस कोयले से तुलना करते हैं जो जलने लायक भी नहीं होता। फिर भी नौरंगिया अपने ऐसे पति से घृणा नहीं करती, बल्कि शान और गरिमा के साथ उसके साथ प्रेमपूर्वक जीवन बिताती है। उसके रूप और गुणों की चर्चा पूरे गाँव में ठीक वैसे ही होती है जैसे अखबार की किसी खास खबर की चर्चा होती है।

नौरंगिया जवान और मेहनती युवती है। उसकी देह श्रम से तपकर भी स्वस्थ और आकर्षक है। उसका रंग इतना साफ और निर्मल है कि जैसे काँच के बर्तन में रखा पानी पारदर्शी दिखता है। वह हमेशा चौकन्नी रहती है, ठीक वैसे ही जैसे आम की गुठली से निकली कोमल पत्तियाँ हवा के हलके झोंकों से काँपती रहती हैं। उसके चेहरे पर घने काले बाल भौंरे की तरह लटके रहते हैं और उसका चेहरा पानी से धुलकर निखरे चेहरे की भाँति सदा दमकता है। उसमें बनावटीपन का कोई अंश नहीं है। उसके होंठ हर समय सहज भाव से खुले रहते हैं। उसका रूप देखकर सचमुच लगता है कि वह विधाता की अनुपम कृति है। लेकिन उसके इसी रूप-सौंदर्य के कारण समाज की कुदृष्टि से खुद को बचाना उसके लिए सबसे बड़ी चुनौती बन जाता है। लगान वसूलने वाले कर्मचारी से लेकर गाँव के ठेकेदार तक, सब उसकी ओर बुरी नज़र से देखते हैं और पीछे पड़े रहते हैं।

नौरंगिया अपने काम को पूरा करने के लिए दिन-रात जुटी रहती है। उसके स्वभाव में हार मानना नहीं है। जब तक उसकी आँखें खुली रहती हैं, वह लगातार काम करती रहती है। जिस परिवेश में वह पली-बढ़ी है, वहाँ साँप, गोह और बिच्छू जैसे जीव अक्सर दिखाई देते हैं। यही वातावरण उसे इतना साहसी बना चुका है कि वह उनसे बिना घबराए आसानी से निपट लेती है। उसके भीतर सौंदर्य-बोध भी है। खाली समय में वह रेडियो पर विविध भारती के गीत सुनकर आनंद लेती है। उसका स्वभाव सीधी लाठी की तरह बिल्कुल सीधा और सरल है। जीवन के प्रति उसका दृष्टिकोण बेहद आशावादी है। हर छोटे-बड़े पर्व-त्योहार को वह पूरे उत्साह और उमंग के साथ मनाती है।

नौरंगिया गरीबी के बीच अपना जीवन गुज़ार रही है। उसके घर की मिट्टी की दीवारें गिर चुकी हैं और ऊपर पुराना छप्पर किसी तरह टिका हुआ है। जैसे ही उसकी फसल तैयार होती है, महाजन वसूली के लिए दरवाज़े पर आ धमकते हैं। जीवन-यापन के लिए उसके गहने गिरवी पड़े हैं, जिन्हें छुड़ाने की सामर्थ्य उसमें नहीं है। यह सोचकर उसका मन दुखी हो उठता है, लेकिन वह हार मानकर बैठ नहीं जाती। उसके जीवन-संघर्ष की कोई अंतिम सीमा दिखाई नहीं देती। उसके सपने पूरे होने से पहले ही बिखर गए, फिर भी उसने कभी अपने मन को मलिन नहीं होने दिया। प्रतिकूल परिस्थितियों में भी वह हँसती और मुस्कुराती रहती है। उसके पैरों में किसी से माँगी हुई चप्पल है और तन पर जो नई साड़ी है, वह भी उधार के पैसों से खरीदी गई है।

नौरंगिया के संघर्षमय जीवन के चित्रण के माध्यम से कवि ने भारतीय किसान परिवार की महिला की करुण और यथार्थपूर्ण गाथा को अभिव्यक्ति दी है।

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