बिस्मिल्ला खाँ के जीवन से हमें क्या प्रेरणा मिलती हैं ॥ नौबत खाने में इबादत शीर्षक निबंध से आपको क्या प्रेरणा मिलती है
उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ का जीवन भारतीय संगीत की गौरवमयी परंपरा का ऐसा अध्याय है, जो समर्पण, सादगी और विनम्रता का अद्भुत उदाहरण प्रस्तुत करता है। बचपन से ही उनके भीतर संगीत की गहरी रुचि थी। उन्हें संगीत सीखने की प्रेरणा रसूलनबाई और बतूलनबाई जैसी महान गायिकाओं से मिली। वे बालाजी मंदिर के नौबतखाने में प्रतिदिन रियाज करने जाते थे। यह रास्ता रसूलनबाई के घर से होकर गुजरता था। वहाँ से गुजरते हुए वे दोनों बहनों द्वारा गाए जा रहे ठुमरी, टप्पे और दादरा को सुनते थे। इन मधुर स्वरों ने उनके मन में संगीत के प्रति अदम्य आकर्षण और लगन पैदा की।
‘नौबतखाने में इबादत’ पाठ के आधार पर बिस्मिल्ला खाँ के जीवन से हमें अनेक प्रेरणाएँ प्राप्त होती हैं। सबसे पहली प्रेरणा यह है कि सफलता की ऊँचाइयों को छू लेने के बाद भी किसी कलाकार को अपनी कला को विराम नहीं देना चाहिए। निरंतर अभ्यास और साधना ही कला को जीवंत और प्रगतिशील बनाए रखती है।
दूसरी प्रेरणा यह है कि कलाकार का लक्ष्य केवल नाम और शोहरत पाना नहीं होना चाहिए, बल्कि अपनी कला में निरंतर निखार लाने की कोशिश करना चाहिए। बिस्मिल्ला खाँ ने हमेशा अपनी कला को श्रेष्ठ बनाने के लिए कठोर परिश्रम किया।
तीसरी महत्वपूर्ण सीख धार्मिक सौहार्द्र से जुड़ी है। उन्होंने यह साबित किया कि संगीत सभी धर्मों से ऊपर है। वे मंदिरों और मस्जिदों दोनों में समान श्रद्धा से प्रस्तुति देते थे। यह उनके जीवन की सबसे बड़ी विशेषता थी कि वे धार्मिक भेदभाव से दूर रहकर लोगों के दिलों को छूते थे।
बिस्मिल्ला खाँ का जीवन हमें यह भी सिखाता है कि सफलता प्राप्त करने पर कभी अहंकार नहीं करना चाहिए। वे अपनी उपलब्धियों के बावजूद अत्यंत सरल और विनम्र बने रहे। उनका मानना था कि जो कुछ उन्हें मिला है, वह ईश्वर की कृपा से मिला है। यही कारण है कि विषम परिस्थितियों में भी उन्होंने अपने ईश्वर पर विश्वास बनाए रखा।
सबसे बड़ी प्रेरणा उनके समर्पण भाव से मिलती है। अपनी कला के प्रति उनका निस्वार्थ समर्पण ही उन्हें दुनिया के महानतम शहनाई वादकों में शुमार करता है।
अतः बिस्मिल्ला खाँ का जीवन हमें यह शिक्षा देता है कि समर्पण, आस्था और निरंतर साधना से ही मनुष्य सच्ची सफलता प्राप्त कर सकता है और समाज में अमर स्थान बना सकता है।
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