धावक कहानी में समाज की किन समस्याओं की ओर लेखक ने इशारा किया है स्पष्ट कीजिए
संजीव की ‘धावक’ कहानी केवल एक साधारण व्यक्ति भंवल दा की जीवनी नहीं है, बल्कि इसमें लेखक ने समाज की कई गहरी समस्याओं की ओर संकेत किया है। इन समस्याओं को कहानी में जीवन के अलग-अलग प्रसंगों के माध्यम से सामने लाया गया है।
समाज की समस्याएँ जिनकी ओर लेखक ने इशारा किया है –
1. शिक्षा और असमानता की समस्या
भंवल दा का जीवन शिक्षा और अवसरों की असमानता को उजागर करता है। वे साधारण विद्यार्थी होते हुए पाँच बार परीक्षा देकर मैट्रिक पास करते हैं, जिससे यह स्पष्ट होता है कि गरीब और मध्यमवर्गीय छात्रों को संसाधनों की कमी और संघर्षपूर्ण परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है। दूसरी ओर, उनके भाई अशोक दा छात्रवृत्ति और बेहतर अवसर पाकर बड़े अधिकारी बन जाते हैं। यह अंतर बताता है कि समाज में शिक्षा और अवसरों का समान वितरण नहीं है। यही असमानता गरीब वर्ग को पीछे धकेलती है, जबकि साधन-संपन्न लोग आसानी से आगे बढ़ जाते हैं।
2. भ्रष्टाचार और सिफारिश की समस्या
भंवल दा के जीवन प्रसंग से यह तथ्य स्पष्ट होता है कि समाज में भ्रष्टाचार और सिफारिश की समस्या गहराई से फैली हुई है। जब कथावाचक उन्हें नौकरी में प्रमोशन के लिए बड़े भाई की सिफारिश लेने का सुझाव देते हैं, तो वे इसे ठुकरा देते हैं, क्योंकि उनका विश्वास है कि सफलता केवल योग्यता और परिश्रम से मिलनी चाहिए, न कि किसी की कृपा से। यह प्रसंग दर्शाता है कि समाज में अक्सर योग्य और ईमानदार व्यक्ति को नज़रअंदाज़ कर दिया जाता है, जबकि सिफारिश और प्रभाव के आधार पर पदोन्नति दी जाती है। यही प्रवृत्ति एक बड़ी सामाजिक बुराई है।
3. संयुक्त परिवार में बिखराव और रिश्तों की दूरी
भंवल दा के जीवन में यह स्पष्ट रूप से दिखाई देता है कि संयुक्त परिवार की परंपरा टूटती जा रही है और रिश्तों में दूरी बढ़ती जा रही है। वे घर, माँ और बहन की जिम्मेदारी अपने कंधों पर उठाते हैं, जबकि बड़े भाई उच्च पद और सुख-सुविधा भरे जीवन में माँ-बहन की परवाह नहीं करते। यह स्थिति आधुनिक समाज की उस गंभीर समस्या को उजागर करती है, जहाँ पारिवारिक संबंधों और जिम्मेदारियों को अक्सर अनदेखा कर दिया जाता है। परिवार के सदस्य अपने व्यक्तिगत स्वार्थ और सुविधाओं में उलझकर आपसी सहयोग और भावनात्मक जुड़ाव को दरकिनार कर देते हैं।
4. त्याग और व्यक्तिगत जीवन की उपेक्षा
भंवल दा का जीवन इस सच्चाई को सामने लाता है कि परिवार की जिम्मेदारियाँ निभाते-निभाते कई बार व्यक्ति को अपने व्यक्तिगत जीवन और इच्छाओं का त्याग करना पड़ता है। उन्होंने विवाह नहीं किया क्योंकि माँ की बीमारी, बहन की जिम्मेदारी और सीमित आय ने उन्हें अपनी खुशियों से दूर कर दिया। उनका निजी जीवन समाज और परिवार की भेंट चढ़ गया। यह समस्या उन लोगों की है, जो निस्वार्थ भाव से परिवार के लिए त्याग करते हैं, लेकिन बदले में उन्हें अपेक्षित सम्मान या मान्यता नहीं मिलती और उनका त्याग अक्सर अनदेखा रह जाता है।
5. पुरस्कार और पद-प्रतिष्ठा की लालसा
कहानी में बड़े भाई अशोक दा का चरित्र समाज की उस प्रवृत्ति को उजागर करता है, जहाँ लोग पद, पुरस्कार और दिखावे को ही सफलता का पैमाना मानते हैं। वे भंवल दा को “जोकर” का पुरस्कार देना चाहते हैं, जो उनकी संकीर्ण मानसिकता और व्यंग्यात्मक दृष्टिकोण को दर्शाता है। इसके विपरीत भंवल दा का स्पष्ट और साहसिक संवाद – “गलत पुरस्कार मैं नहीं लेता” – इस प्रवृत्ति पर करारा प्रहार करता है। यह कथन केवल व्यक्तिगत आत्मसम्मान का प्रतीक नहीं है, बल्कि समाज में व्याप्त झूठे सम्मान और पुरस्कार-लालसा की मानसिकता पर तीखा व्यंग्य भी है।
6. गरीबी और साधारण वर्ग का संघर्ष
भंवल दा का जीवन समाज के साधारण और मेहनतकश वर्ग के संघर्षों को स्पष्ट रूप से सामने लाता है। वे एक साधारण नौकरी करते हुए भी पूरे परिवार की जिम्मेदारी निभाते हैं, अपनी सुख-सुविधाओं की परवाह किए बिना माँ और बहन के लिए हर संभव त्याग करते हैं। इसके बावजूद समाज उन्हें वह सम्मान नहीं देता जिसके वे हकदार हैं। लेखक ने बड़ी संवेदनशीलता से यह दिखाया है कि गरीब और मेहनतकश वर्ग लगातार कठिनाइयों से जूझता है, परिवार और समाज के लिए अपनी खुशियाँ कुर्बान करता है, फिर भी उसकी उपेक्षा की जाती है और उसकी मेहनत को अक्सर नज़रअंदाज़ कर दिया जाता है।
संजीव ने ‘धावक’ कहानी में समाज की शिक्षा में असमानता, भ्रष्टाचार और सिफारिश, पारिवारिक जिम्मेदारियों की उपेक्षा, व्यक्तिगत जीवन के त्याग, पुरस्कार-लालसा और गरीब वर्ग के संघर्ष जैसी समस्याओं की ओर संकेत किया है। भंवल दा का चरित्र इन समस्याओं के बीच भी ईमानदारी, त्याग और स्वाभिमान की मिसाल प्रस्तुत करता है।
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