नन्हा संगीतकार शीर्षक कहानी की मार्मिकता पर प्रकाश डालिए

नन्हा संगीतकार शीर्षक कहानी की मार्मिकता पर प्रकाश डालिए

नन्हा संगीतकार शीर्षक कहानी की मार्मिकता पर प्रकाश डालिए

“नन्हा संगीतकार” एक ऐसी संवेदनशील और हृदयस्पर्शी कहानी है, जो हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि अभाव और गरीबी किस प्रकार एक मासूम बालक की प्रतिभा और सपनों को कुचल सकती है। यह कहानी सिर्फ एक गरीब लड़के की नहीं, बल्कि उन तमाम बच्चों की आवाज़ है, जिनके भीतर अद्भुत प्रतिभाएँ छिपी होती हैं, लेकिन संसाधनों के अभाव में वे कभी पंख नहीं फैला पाते।

कहानी का नायक एक बेहद गरीब परिवार का बच्चा है। उसका बचपन अभावों में गुज़रता है। खाने-पीने की सही सुविधा न मिलने के कारण वह जन्म से ही कमजोर और बीमार-सा रहता है। दस साल की उम्र तक पहुँचते-पहुँचते उसके शरीर की कमजोरी और अधिक बढ़ जाती है, लेकिन उसके दिल में संगीत के प्रति एक गहरी चाहत और लगन जन्म लेती है।

वह जब भी पशुओं को जंगल में चराने जाता, तो प्रकृति की मधुर ध्वनियाँ उसे सम्मोहित कर लेतीं। पत्तों की सरसराहट, पक्षियों का चहचहाना और नदी की कलकल ध्वनि उसके लिए किसी संगीत से कम न थी। यही अनुभव उसकी आत्मा में संगीत के बीज बोते रहे। इसके अतिरिक्त, उसके घर के पास की बार में जब वायलिन बजती, तो वह मंत्रमुग्ध होकर उसे सुनता और उसका मन भी वायलिन बजाने की तीव्र इच्छा करता।

बालक की सबसे बड़ी ख्वाहिश एक वायलिन पाने की थी। वह चाहता था कि उसके भी हाथों से मधुर स्वर फूटें और वह संगीत की दुनिया में खो जाए। लेकिन गरीबी उसकी राह का सबसे बड़ा रोड़ा थी। उसकी माँ इतने पैसे नहीं जुटा पाती कि वह अपने बेटे के लिए वायलिन खरीद सके। बालक ने खुद कोशिश कर एक सारंगी बनाई, परंतु उसकी ध्वनि उस मनमोहक वायलिन जैसी न थी।

एक दिन उसने पड़ोस के खाली पड़े घर में टंगी एक वायलिन देखी। मन में संगीत की तीव्र लालसा जागी और उसने सोचा कि बस थोड़ी देर ही सही, वह इस वायलिन को बजा ले। लेकिन यह मासूम कोशिश उसकी ज़िंदगी की सबसे बड़ी भूल साबित हुई। वह पकड़ा गया और अदालत में चोर की तरह पेश किया गया। जज ने उसकी गरीबी और कमजोर हालत देखकर उसे जेल तो नहीं भेजा, लेकिन चौकीदार से डंडे मारने की सज़ा दी।

चौकीदार की निर्ममता ने उस नन्हे बालक को अधमरा कर दिया। दो-तीन दिनों तक तड़पने के बाद उसकी मृत्यु हो गई। इस प्रकार, एक प्रतिभाशाली नन्हा संगीतकार दुनिया से विदा हो गया, जिसने सिर्फ वायलिन बजाने का सपना देखा था।

इस कहानी की सबसे बड़ी मार्मिकता यह है कि बालक अपराधी नहीं था, वह तो केवल संगीत की प्यास से प्रेरित होकर वायलिन बजाना चाहता था। उसकी इच्छा चुराने की नहीं, बल्कि सुरों को छूने की थी। लेकिन समाज ने उसकी चाहत को अपराध समझा और निर्दयता से उसे दंडित कर दिया।

“नन्हा संगीतकार” हमें यह सिखाती है कि गरीबी केवल पेट की भूख ही नहीं बढ़ाती, बल्कि कई बार मासूम प्रतिभाओं का गला भी घोंट देती है। यह कहानी समाज को यह संदेश देती है कि हमें गरीब और प्रतिभावान बच्चों को अवसर देना चाहिए ताकि उनकी कला, उनका हुनर और उनके सपने दब न जाएँ। यही इस कहानी की मार्मिकता और यथार्थ है।

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