तीसरी कसम कहानी के शीर्षक का औचित्य पर विचार कीजिए।

तीसरी कसम कहानी के शीर्षक का औचित्य पर विचार कीजिए। Teesri Kasam Kahani Ke Shirshak Ka Auchitya

तीसरी कसम कहानी के शीर्षक का औचित्य पर विचार कीजिए। Teesri Kasam Kahani Ke Shirshak Ka Auchitya

उत्तर – ‘तीसरी कसम’ कहानी के शीर्षक का औचित्य यह है कि यह फणीश्वर नाथ ‘रेणु’ द्वारा रचित एक चर्चित आंचलिक कहानी है। इस कहानी ने रेणु जी को आंचलिक कहानीकारों में विशेष पहचान दिलाई। शीर्षक का संबंध नायक हिरामन की तीसरी कसम से है, जिसमें वह नौटंकी वाली स्त्रियों को गाड़ी में न बिठाने का प्रण करता है। यह शीर्षक कथा की मूल संवेदना, नायक के जीवन दर्शन और आदर्शों को पूर्णतः स्पष्ट करता है।

‘तीसरी कसम’ कहानी में तीन लघु कथाएँ एवं एक मुख्य कथा है।

एक हीरामन गाड़ीवान तस्करी के अनाज को नेपाल में पहुँचाते समय पकड़ लिए जाने की सम्भावना होती है तो वह गाड़ी छोड़कर पलायन कर जाता है और प्रथम कसम खाता है कि तस्करी का भाड़ा अपनी बैलगाड़ी पर लदनी नहीं करेगा।

दूसरी लघु कथा में वह कसम खाता है कि वह अपनी बैलगाड़ी पर बाँस की लदनी नहीं करेगा।

तीसरी लघु कथा महुआ घटवारिन की करूण कथा है जिसकी सौतेली माँ उसे प्रौढ़ महाजन के हाथों बेच देती है और वह नदी में कूदकर उसकी चंगुल से बच निकलती है।

तीसरी मुख्य कथा है नौटंकी कम्पनी की जिसकी नायिका हीराबाई है। हीराबाई को हीरामन अपनी बैलगाड़ी पर बैठाकर मेले में ले जाता है लेकिन जब वह हीराबाई की सुन्दरता को देखता है तो यह मंत्रमुग्ध हो जाता है और उससे प्रेम करने लगता है। लेकिन हीरामन का यह प्रेम एकपक्षीय प्रेम है। कहानी का अंत बड़ा ही मर्मस्पर्शी है। नाटक कम्पनी अपने कार्यक्रम को पूरा करके मेले से प्रस्थान कर जाती है।

तब वह हीराबाई से कहता है कि बाई तुम सरकस में काम करो, नौटंकी में तुम्हे लोग बुरी नजर से देखते हैं। मैं तुम्हारा अपमान सहन नहीं कर सकता। उसे पता चलता है कि हीराबाई स्टेशन पर पहुँच चुकी है, उसे ट्रेन से जाते हुए देखकर वह सन्न रह जाता है और वह अपने क्रोध को बैलों पर उतारता है। वह गुनगुनाने लगता है ‘अजी हाँ मारे गये गुलफाम’ और वह तीसरी कसम खाता है कि वह कभी नौटंकी कम्पनी की औरत की लदनी नहीं करेगा।

 

फणीश्वर नाथ ‘रेणु’ की कहानी ‘तीसरी कसम’ का शीर्षक अत्यंत उपयुक्त और सार्थक है। यह शीर्षक कहानी की मूल संवेदना को उद्घाटित करता है और आरंभ से लेकर अंत तक कथा के साथ जुड़ा हुआ रहता है। कहानी का केंद्र बिंदु ही नायक हीरामन की खाई गई कसमें हैं, जिनमें तीसरी कसम सबसे अधिक मर्मस्पर्शी और निर्णायक सिद्ध होती है।

कहानी के घटनाचक्र में पहली और दूसरी कसमें केवल अनुभवजन्य शिक्षाएँ हैं, परंतु तीसरी कसम हीरामन के जीवन और उसके भावनात्मक संसार पर गहरी छाप छोड़ती है। हीरामन जब हीराबाई जैसी संवेदनशील स्त्री को समाज की उपेक्षा और अपमान का सामना करते देखता है, तब वह तीसरी कसम खाता है कि अब कभी किसी नौटंकी की औरत को अपनी बैलगाड़ी पर नहीं बिठाएगा। यही कसम उसके निष्कलुष प्रेम, त्याग और आंतरिक पीड़ा को प्रकट करती है।

शीर्षक संक्षिप्त, आकर्षक, कौतुहलवर्द्धक और विषयानुकूल है। इसे पढ़कर पाठक के मन में कई प्रश्न उठते हैं – कसम किसने खाई? क्यों खाई? तीन ही क्यों खाईं? – और यही जिज्ञासा कहानी को पढ़ने के लिए प्रेरित करती है। इस प्रकार ‘तीसरी कसम’ शीर्षक पूरी कहानी का सार प्रस्तुत करता है और पूर्णतः उपयुक्त सिद्ध होता है।

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