तीसरी कसम कहानी की समीक्षा करें॥ Teesri Kasam Kahani Ki Samiksha Karen

तीसरी कसम कहानी की समीक्षा करें॥ Teesri Kasam Kahani Ki Samiksha Karen

तीसरी कसम कहानी की समीक्षा करें॥ Teesri Kasam Kahani Ki Samiksha Karen

उत्तर – फणीश्वर नाथ ‘रेणु’ की ‘तीसरी कसम’ कहानी हिन्दी साहित्य की कालजयी रचनाओं में गिनी जाती है। यह कहानी आंचलिक जीवन, प्रेम, संवेदना और सामाजिक यथार्थ का सजीव चित्र प्रस्तुत करती है। इसमें हीरामन गाड़ीवान के माध्यम से ग्रामीण परिवेश की सरलता, ईमानदारी और निश्छल भावनाओं को दिखाया गया है। हीराबाई के चरित्र के जरिए स्त्रियों की विवशता और समाज की कठोरता झलकती है। कहानी में तीन कसमें हीरामन के आत्मसम्मान और जीवन-दर्शन को प्रकट करती हैं। भाषा सहज, आंचलिक और चित्रात्मक है। कथा में लोकगीत, ग्रामीण बोली और संवेदनात्मक प्रस्तुति इसे अद्वितीय बनाती है। इस प्रकार यह कहानी कथ्य, शैली और भाव के स्तर पर हिन्दी कहानी को नया आयाम देती है।

1. शीर्षक

कहानी का शीर्षक किसी भी कथा का दर्पण माना जाता है, जिसमें उसकी सम्पूर्ण रूपरेखा झलकती है। शीर्षक जितना आकर्षक और कौतूहलपूर्ण होगा, पाठकों का मन उतना ही अधिक कहानी की ओर खिंचेगा। ‘तीसरी कसम’ का शीर्षक पढ़ते ही मन में अनेक प्रश्न उठने लगते हैं—आख़िर किसने कसम खाई होगी? क्यों खाई होगी? तीन ही कसम क्यों और किन परिस्थितियों में? यह जिज्ञासा पाठकों को कहानी पढ़ने के लिए प्रेरित करती है। शीर्षक कहानी के मूल कथ्य और नायक के जीवन से प्रत्यक्ष रूप से जुड़ा हुआ है, क्योंकि हिरामन की भावनाओं, अनुभवों और परिस्थितियों का सार उसकी तीन कसमें ही हैं। प्रत्येक कसम उसकी सोच, जीवन-दृष्टि और मानवीय संवेदनाओं का प्रतीक बन जाती है। इस दृष्टि से देखा जाए तो यह शीर्षक न केवल उपयुक्त है बल्कि पूरी कहानी की आत्मा को व्यक्त करता है। इसीलिए ‘तीसरी कसम’ का शीर्षक अत्यंत सार्थक और प्रभावशाली प्रतीत होता है।

2. कथावस्तु 

फणीश्वरनाथ ‘रेणु’ आंचलिक कथाकार के रूप में प्रसिद्ध हैं। उनकी कहानियों का ताना-बाना गाँव-देहात की मिट्टी, वहाँ की लोकजीवन और आंचलिक संस्कृति की पृष्ठभूमि पर बुना जाता है। ‘तीसरी कसम’ की कथाबस्तु भी इसी विशेषता से परिपूर्ण है। इसमें मूलतः तीन अलग-अलग लघुकथाएँ एक साथ गुँथी हुई हैं, जो अंततः नायक हीरामन के जीवन से जुड़कर उसे एक व्यापक और मार्मिक रूप देती हैं।

पहली कहानी हीरामन के जीवन से जुड़ी है, जब वह चौरायन और स्मगलिंग की घटनाओं में फँस जाता है। यह प्रसंग उसके भोलेपन और परिस्थितियों से मजबूरी में जुड़ने की झलक प्रस्तुत करता है। दूसरी कहानी उस समय की है, जब वह अपनी बैलगाड़ी पर बाँस लादकर ले जा रहा होता है और उसकी पिटाई होती है। यह प्रसंग उसकी कठिनाइयों और समाज की कठोरता को उजागर करता है। ये दोनों घटनाएँ हीरामन के जीवन के संघर्षों का प्रतीक हैं।

तीसरी और मुख्य कथा अत्यंत मार्मिक है। इसमें हीरामन नौटंकी कम्पनी की नायिका हीराबाई को अपनी गाड़ी पर बैठाकर मेले तक ले जाता है। इस सफ़र में उसके मन में हीराबाई के प्रति सहज, निर्मल और एकतरफ़ा प्रेम पनपता है। परंतु जब मेले में हीराबाई को समाज की तिरस्कारपूर्ण दृष्टि और उसकी विवशता सामने आती है, तो हीरामन का हृदय टूट जाता है। वह वियोग और पीड़ा को सह नहीं पाता और अंततः तीसरी कसम खा लेता है कि अब कभी किसी नौटंकी कम्पनी की औरत को अपनी गाड़ी पर नहीं बैठाएगा।

इसके अतिरिक्त कहानी में महुआ घटवारिन का प्रसंग भी जुड़ता है, जो अत्यंत हृदयस्पर्शी है और कथा की संवेदनात्मक गहराई को बढ़ाता है। कथा के अंत में, जब हीराबाई रेलगाड़ी से विदा होती है, तो हीरामन अत्यंत उदास हो जाता है। वह अपने बैलों को दुआसी मारते हुए बिना रेलगाड़ी के प्रस्थान की प्रतीक्षा किए ही चल देता है। उसकी मौन व्यथा “अजी हाँ, मारे गए गुलफाम…” जैसे वाक्य में प्रकट होती है, जो पाठकों के हृदय को गहराई से छू लेती है।

इस प्रकार ‘तीसरी कसम’ की कथावस्तु तीन लघुकथाओं और कुछ प्रसंगों के मिश्रण से निर्मित होकर पाठकों के मानस पर अमिट छाप छोड़ती है। यह कहानी मानवीय संवेदनाओं, संघर्ष और प्रेम-वियोग की गाथा बन जाती है।

3. पात्र एवं चरित्र-चित्रण

‘तीसरी कसम’ कहानी में अनेक पात्र उपस्थित हैं, परंतु कथानक की धुरी दो ही प्रमुख पात्रों—गाड़ीवान हीरामन और नौटंकी की नायिका हीराबाई—पर टिकी हुई है। इनके इर्द-गिर्द ही पूरी कथा का विकास होता है। सहायक पात्रों में महुआ घटवारिन, हीरामन की मित्र मंडली तथा अन्य गाड़ीवान उल्लेखनीय हैं, जो आंचलिक परिवेश को जीवंत बनाते हैं।

हीरामन का चरित्र उसकी निश्छलता और भोलेपन का प्रतीक है। उसका हृदय इतना पवित्र है कि वह हर परिस्थिति में ईमानदारी और सच्चाई को महत्व देता है। हीराबाई के प्रति उसका आकर्षण प्रेम से अधिक श्रद्धा और सम्मान का रूप ले लेता है। हीरामन उसकी वस्तु को छूकर ही अपने जीवन को धन्य मानता है।

दूसरी ओर हीराबाई का चरित्र संवेदनाओं से परिपूर्ण है। वह मंच पर एक नायिका है, परंतु उसके भीतर की स्त्री अत्यंत सहज, सरल और सादगीपूर्ण है। ग्रामीण बहुरियों जैसी उसकी लज्जा और संस्कार उसे पाठकों के निकट ला खड़े करते हैं। नदी में जाकर मुँह-हाथ धोने की उसकी अदा उसकी सहजता और प्राकृतिक सौंदर्य को प्रकट करती है।

इस प्रकार, कहानी के सभी पात्र जीवंत हैं, परंतु हीरामन और हीराबाई का चरित्र-चित्रण कथा को अमर और हृदयस्पर्शी बना देता है।

4. कथोपकथन

‘तीसरी कसम’ कहानी की संवाद शैली अत्यंत जीवंत, प्रभावोत्पादक और कथा को आगे बढ़ाने में सहायक है। फणीश्वरनाथ रेणु ने कथोपकथन को सहज ग्रामीण बोलचाल के रूप में प्रस्तुत किया है, जिससे पात्रों का स्वभाव और परिवेश वास्तविक प्रतीत होता है। संवाद छोटे-छोटे, परंतु सारगर्भित हैं, जो पात्रों की भावनाओं और परिस्थितियों को तुरंत प्रकट कर देते हैं।

उदाहरण स्वरूप—“उठिए नींद तोड़िए। दो मुट्ठी जलपान कर लीजिए।” या “इस गाँव का दही बड़ा नामी है।” जैसे वाक्य कहानी को स्वाभाविकता और रोचकता प्रदान करते हैं। इसी प्रकार “इतनी-सी चीजें कहाँ से ले आए?” और “पहले पीछे क्या? तुम भी बैठो।” जैसे कथोपकथन पात्रों की आत्मीयता और संबंधों की सहजता को दर्शाते हैं।

इस प्रकार, कथोपकथन न केवल कहानी को गति देता है बल्कि पाठकों में जिज्ञासा और रुचि भी बनाए रखता है। यही कारण है कि ‘तीसरी कसम’ संवाद शैली की दृष्टि से अत्यंत सफल और प्रभावशाली रचना है।

5. भाषा-शैली

फणीश्वरनाथ रेणु आंचलिक कथाकार होने के कारण उनकी कहानियों में स्थानीयता और आंचलिक शब्दों का अनूठा प्रयोग मिलता है। ‘तीसरी कसम’ की भाषा-शैली भी इसी विशेषता से सम्पन्न है। कहानी में प्रयुक्त शब्द सरल, सहज और बोधगम्य हैं, जिन्हें पाठक आसानी से आत्मसात् कर लेता है। आंचलिकता के पुट लिए हुए शब्द—सिया, हिस्स, वैष्णव, कीर्तनियाँ, लहसनवाँ, चिरैया जइते, करमवाँ, सजनबाँ बाँध—कहानी को ग्रामीण परिवेश और वहाँ की संस्कृति से जोड़ते हैं।

कथाकार ने भाषा को स्वाभाविक संवादों, गीतों और प्रगीतों के सहारे और अधिक जीवंत बना दिया है। वर्णनात्मक शैली इतनी सहज है कि पाठक को ऐसा प्रतीत होता है मानो वह घटनाओं को स्वयं देख रहा हो। भाषा में कहीं-कहीं काव्यात्मक सौंदर्य भी झलकता है, जो कहानी को और मार्मिक बना देता है।

इस प्रकार, ‘तीसरी कसम’ की भाषा-शैली आंचलिकता, सरलता और संवेदनशीलता का अद्भुत संगम है, जो कथा को विशेष प्रभावशाली बनाती है।

6. उद्देश्य

फणीश्वरनाथ रेणु की ‘तीसरी कसम’ का मुख्य उद्देश्य आंचलिक परिवेश की सजीव झांकी प्रस्तुत करते हुए प्रेम, त्याग और बलिदान की भावना को प्रकट करना है। कथा के माध्यम से लेखक यह दर्शाते हैं कि सच्चा प्रेम स्वार्थरहित होता है। उसमें पाने की अपेक्षा नहीं, बल्कि देने और त्याग करने की प्रेरणा होती है। हीरामन और हीराबाई के संबंध इसी आदर्श प्रेम की मिसाल हैं।

हीरामन का प्रेम एकतरफा होते हुए भी निर्मल और पवित्र है। वह हीराबाई को पाना नहीं चाहता, बल्कि उसकी खुशी और सम्मान ही उसके लिए सर्वोपरि है। यही कारण है कि हीरामन तीसरी कसम खाकर अपने त्याग और बलिदान को अमर कर देता है।

निष्कर्षतः कहा जा सकता है कि ‘तीसरी कसम’ केवल एक आंचलिक कथा नहीं, बल्कि कालजयी रचना है। इसमें प्रस्तुत आदर्श प्रेम और त्याग की भावना पाठकों के हृदय में गहरी छाप छोड़ती है और इसे अमर बना देती है।

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