नीड़ का निर्माण फिर-फिर कविता के आधार पर स्पष्ट कीजिए कि मनुष्य को प्रकृति से किस तरह की शिक्षा ग्रहण करनी चाहिए?
‘नीड़ का निर्माण फिर-फिर’ कविता के आधार पर मनुष्य को प्रकृति से शिक्षा
‘नीड़ का निर्माण फिर-फिर’ कविता में कविवर हरिवंश राय बच्चन जीवन की सच्चाई, संघर्ष और आशा की शिक्षा देते हैं। इस कविता में चिड़िया को व्यक्तिरूपी प्रतीक के रूप में प्रस्तुत किया गया है। चिड़िया चाहे कितनी भी कठिन परिस्थितियों का सामना करे—भयानक आँधी, तूफान, और विनाश—तब भी वह अपने घोंसले का पुनर्निर्माण करती है। इसी माध्यम से कवि यह संदेश देते हैं कि मनुष्य को जीवन में आने वाली कठिनाइयों, असफलताओं और दुखों के बावजूद अपने प्रयास और आशा को नहीं छोड़ना चाहिए।
कविवर बच्चन बताते हैं कि जब जीवन में तूफान आता है और हमारे चारों ओर विपत्तियाँ उत्पन्न होती हैं, तब भी व्यक्ति को धैर्य और साहस बनाए रखना चाहिए। घोंसला बिखर जाए, पेड़ उखड़ जाए, या विपत्ति अत्यधिक कठिन हो—इससे निराश होकर पीछे हट जाना उचित नहीं है। चिड़िया की तरह मनुष्य को निरंतर अपने जीवन के निर्माण में जुटे रहना चाहिए और नवनिर्माण की प्रेरणा को कभी न खोना चाहिए।
यह कविता हमें यह भी सिखाती है कि प्रकृति में हर तत्व—चिड़िया, पेड़, वृक्ष, नदी—संतुलन और पुनर्निर्माण की प्रक्रिया में लगा रहता है। इसी से मनुष्य को यह शिक्षा मिलती है कि जीवन में स्थिरता और सफलता केवल लगातार प्रयास करने से ही संभव है। यदि व्यक्ति हर बार गिरकर भी उठकर फिर से अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर होता है, तो जीवन में स्थायी सफलता और आत्मसंतोष प्राप्त होता है।
अतः, ‘नीड़ का निर्माण फिर-फिर’ हमें यह संदेश देती है कि मनुष्य को प्रकृति की तरह धैर्यवान, आशावादी और सतत् प्रयासशील रहना चाहिए। विपत्तियों के बावजूद अपनी आशा, प्रेम और कर्म में संलग्न रहना ही जीवन का सर्वोत्तम मार्ग है। व्यक्ति को कभी भी निराशा और असफलता से पराजित नहीं होने देना चाहिए, बल्कि हर बार नए उत्साह और उमंग के साथ अपने जीवनरूपी नीड़ का निर्माण करना चाहिए।
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