रक्षा बंधन कविता के प्रश्न उत्तर Class 7 ॥ Raksha Bandhan Kavita ka Question Answer Class 7
हरि कृष्ण प्रेमी का जीवन परिचय
हरि कृष्ण प्रेमी का जन्म सन् 1908 ई. में मध्य प्रदेश के गुना (ग्वालियर राज्य) में हुआ था। उनका परिवार देशभक्त और धार्मिक विचारों वाला था, जिससे उनके भीतर बचपन से ही राष्ट्रप्रेम और समाजसेवा की भावना विकसित हुई। बाल्यकाल में ही उनकी माता का निधन हो गया, जिसने उनके जीवन को गहराई से प्रभावित किया। उन्होंने शिक्षा प्राप्त करने के बाद अपने जीवन का अधिकांश समय साहित्य, पत्रकारिता और नाट्यकला के क्षेत्र में समर्पित किया।
हरि कृष्ण प्रेमी ने अपने करियर की शुरुआत प्रसिद्ध कवि माखनलाल चतुर्वेदी के साथ ‘त्यागभूमि’ पत्र में पत्रकार के रूप में की। बाद में वे लाहौर चले गए, जहाँ उन्होंने ‘भारती’ नामक पत्रिका का संपादन और प्रकाशन किया। स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान उन्होंने लेखन के माध्यम से जन-जागरण का कार्य किया। इसके अतिरिक्त वे लाहौर और मुंबई में फिल्म जगत से भी जुड़े और बाद में आकाशवाणी जालंधर में हिंदी निर्देशक के रूप में कार्य किया।
वे महात्मा गांधी के आदर्शों से अत्यधिक प्रभावित थे और उनके नाटकों में प्रेम, समानता, सत्य और अहिंसा की भावना स्पष्ट रूप से दिखाई देती है। उनके प्रमुख नाटकों में ‘स्वर्ण विहान’ (1930), ‘पाताल विजय’ (1936), ‘शिव साधना’ (1937), ‘रक्षाबंधन’ (1938), ‘आहुति’ (1940), ‘विषपान’ (1945), ‘छाया’ (1945) और ‘ममता’ (1958) प्रमुख हैं। इसके अतिरिक्त ‘मंदिर’ और ‘बादलों के पार’ उनके प्रसिद्ध एकांकी संग्रह हैं।
सन् 1974 ई. में हरि कृष्ण प्रेमी का निधन हो गया। उन्होंने अपने पीछे हिंदी नाटक साहित्य की समृद्ध परंपरा और मानवीय मूल्यों से परिपूर्ण रचनाओं की विरासत छोड़ी। वे एक सच्चे राष्ट्रप्रेमी, समाज-सुधारक और गांधीवादी विचारक थे, जिनके साहित्य में मानवता, प्रेम और समानता की गूंज सदैव सुनाई देती है।
रक्षाबंधन कविता की व्याख्या॥ Raksha Bandhan Kavita Ka Bhavarth
बहन बाँध दे रक्षा बंधन मुझे समर में जाना है,
अब के घन गर्जन में रण का भीषण छिड़ा तराना है ।
दे आशिष, जननी के चरणों में यह शीश चढ़ाना है,
बहन पोंछ ले अश्रु, गुलामी का यदि दु:ख मिटाना है ।।
अन्तिम बार बाँध ले राखी,
कर ले प्यार अखिरी बार ।
मुझको, जालिम ने फाँसी की,
डोरी कर रखी तैयार ।।
शब्दार्थ:
- समर – युद्ध, लड़ाई
- घन गर्जन – बादलों की गर्जना
- रण – युद्धभूमि, युद्ध
- भीषण – भयानक, डरावना
- तराना – गीत, गान, स्वर लहरी
- आशीष – आशीर्वाद
- चरण – पैर, पांव
- शीश चढ़ाना – सिर अर्पित करना, बलिदान देना
- अश्रु – आँसू
- गुलामी – पराधीनता, दासता
- जालिम – क्रूर व्यक्ति, अत्याचारी
- फाँसी – मृत्यु दंड
- डोरी – रस्सी, बंधन
- राखी – रक्षा सूत्र, भाई-बहन के स्नेह का प्रतीक
संदर्भ – प्रस्तुत अंश रक्षा बंधन कविता से लिया गया है। इसके कवि हरिकृष्ण प्रेमी हैं।
प्रसंग – इस अंश में कवि ने स्वाधीनता संग्राम में जाने के लिए प्रस्तुत नवयुवक के मन की आत्म बलिदान की भावना का मार्मिक चित्रण किया है।
व्याख्या – स्वतंत्रता से पहले लिखी गई इस कविता में एक नवयुवक भाई अपनी बहन से कहता है कि बहन, मेरी कलाई में रक्षा सूत्र बाँध दो। बादलों की गर्जना में रण का भयंकर गीत गूँज रहा है। भारत माता के चरणों में अपना शीश चढ़ाना है, इसलिए मुझे आशीर्वाद दो और अपने आँसू पोंछ लो। मुझे अपने देश की गुलामी का दुःख मिटाना है। अपने बलिदान की भावना व्यक्त करते हुए भाई कहता है कि मुझे अन्तिम बार राखी बाँध दो और प्यार कर लो, क्योंकि अन्यायी शत्रुओं ने मुझे फाँसी पर चढ़ाने की तैयारी कर ली है।
जिसने लाखों ललनाओं के पोंछ दिए सिर के सिंदूर,
गड़ा रहा कितनी कुटियाओं के दीपों पर आँखें कूर ।
वज्र गिराकर कितने कोमल हृद्य कर दिए चकनाचूर,
उस पापी की प्यास बुझाने, बहन जा रहे लाखों शूर ।।
अपना शीश कटा जननी की,
जय का मार्ग बनाना है।
बहन बाँध दे रक्षा बन्धन,
मुझे समर में जाना है ।।
शब्दार्थ:
- ललनाएँ – स्त्रियाँ, युवतियाँ
- सिंदूर – विवाहित स्त्रियों के मस्तक पर लगाया जाने वाला लाल चिह्न
- कुटिया – झोपड़ी, छोटा घर
- दीप – दीया, प्रकाश देने वाला पात्र
- कूर – क्रूर, निर्दयी
- वज्र – कठोर अस्त्र, बिजली के समान प्रहार करने वाला शस्त्र
- कोमल – नरम, मृदु
- चकनाचूर – टुकड़े-टुकड़े, पूरी तरह नष्ट
- पापी – अधर्मी, बुरा कार्य करने वाला व्यक्ति
- शूर – वीर, बहादुर
- शीश – सिर
- जननी – माता, माँ
- जय का मार्ग – विजय प्राप्ति का रास्ता
- समर – युद्ध, रणभूमि
- रक्षा बंधन – भाई-बहन के प्रेम और सुरक्षा का प्रतीक पर्व
संदर्भ – प्रस्तुत अंश रक्षा बंधन कविता से लिया गया है। इसके कवि हरिकृष्ण प्रेमी हैं।
प्रसंग – प्रस्तुत अवतरण में भाई अपनी बहन से कहता है कि अंग्रेज शासकों ने महिलाओं का अत्याचार किया और नवयुवकों की हत्या की। वह चाहता है कि बहन उसे राखी बाँध दे, ताकि वह रण-क्षेत्र में जाकर भारत माता की रक्षा और विजय के लिए वीरता का प्रदर्शन कर सके।
व्याख्या – प्रस्तुत अवतरण में कवि ने अंग्रेज शासकों के अत्याचार और उनकी क्रूरता को दर्शाया है। भाई अपनी बहन से कहता है कि अंग्रेज शासकों ने अनगिनत युवतियों के सिर का सिंदूर पोंछ दिया, उनके पति की हत्या कर उन्हें विधवा बना दिया। उन्होंने अनेक झोपड़ियों के दीपकों पर अपनी निष्ठुर दृष्टि गड़ा रखी है।
वज्रपात और भयंकर अस्त्र-शस्त्र के प्रयोग से न जाने कितने नवयुवकों का जीवन समाप्त कर दिया गया। देश के लाखों वीर नवयुवक इन पापी और अन्यायी शासकों की प्यास शांत करने के लिए प्रस्थान कर रहे हैं। सभी वीर पुरुष अपना शीश अर्पित कर भारत माता के विजय पथ को प्रशस्त करेंगे। इसलिए भाई बहन से कहता है — “मुझे राखी बाँध दो, मैं रण-क्षेत्र में जाने के लिए तैयार हूँ।”
बहन शीश पर मेरे रख दे, स्नेह सहित अपना शुभ हाथ,
कटने के पहले न झुके यह ऊँचा रहे गर्व के साथ ।
उस हत्यारे ने कर डाला अपना सारा देश अनाथ,
आश्रयहीन हुई यदि तो भी ऊँचा होगा मेरा माथ ।।
दीन भिखारिन बनकर तू भी,
गली-गली फेरी देना ।
उठो बंधुओं, विजयवधू को,
वरो, तभी निद्रा लेना ।।
शब्दार्थ:
- शीश – सिर
- स्नेह – प्रेम, लगाव
- शुभ हाथ – मंगलमय हाथ, आशीर्वाद देने वाला हाथ
- ऊँचा – गर्व से उच्च, सम्मानित
- हत्यारा – अपराधी, खलनायक
- अनाथ – बिना माता-पिता वाला, अकेला
- आश्रयहीन – बिना सहारा वाला, असुरक्षित
- माथ – सिर, प्रतिष्ठा का प्रतीक
- दीन भिखारिन – गरीब स्त्री, सहायता के लिए भीख माँगने वाली
- गली-गली फेरी देना – हर जगह जाकर चेतना या संदेश फैलाना
- बंधु – भाई, साथी
- विजयवधू – युद्ध में विजय पाने वाली स्त्री, प्रतीकात्मक रूप में वीरता का संदेश
- निद्रा लेना – सोना, आराम करना
संदर्भ – प्रस्तुत अंश रक्षा बंधन कविता से लिया गया है। इसके कवि हरिकृष्ण प्रेमी हैं।
प्रसंग – प्रस्तुत अवतरण में भाई अपनी बहन से कहता है कि राखी बाँध कर उसे वीरता और स्वाभिमान के साथ रण में भेजे। वह चाहता है कि उसके बलिदान से बहन और देश गर्वित रहें और वह लोगों को उठकर देश की रक्षा के लिए प्रेरित करे। यह प्रसंग देशभक्ति, बलिदान और स्वाभिमान की गहरी भावना व्यक्त करता है।
व्याख्या – भाई अपनी बहन से कह रहा है कि बहन, तुम अपना शुभ हाथ प्रेमपूर्वक हमारे मस्तक पर रख दो। हमारा मस्तक कटने से पहले जालिमों के सामने कभी न झुके। यह मस्तक सदा स्वाभिमान और गर्व के साथ ऊँचा रहे। अत्याचारी शासकों ने पूरे देश को बेसहारा बना दिया और सभी अनाथ हो गए। भाई कहता है कि यदि हमारे बलिदान के कारण तुम अकेली रह भी जाओ, तो भी तुम्हारा मस्तक सदा ऊँचा बना रहेगा।
भाई बहन से यह भी कहता है कि वह लाचार भिखारिन बनकर हर गली-मार्ग में घूमकर लोगों को प्रेरित करे कि “बंधुओं! उठो, तैयार हो जाओ, विजय के बाद ही खुशियाँ मनाओ।” यह संदेश है कि जयरूपी दुल्हन के वरण के बाद ही आराम और सुख की अनुभूति होनी चाहिए। इस प्रकार यह अवतरण देशभक्ति, बलिदान और स्वाभिमान की गहरी भावना को प्रकट करता है।
आज सभी देते हैं अपनी बहनों को अमूल्य उपहार,
मेरे पास रखा ही क्या है, आँखों के आँसू दो चार ।
ला दो चार गिरा दूँ, आगे अपना आँचल विमल पसार,
तू कहती है – “ये मणियाँ हैं, इन पर न्योछावर संसार ।।
बहन बढ़ा दे चरण कमल मैं,
अंतिम बार उन्हें लूँ चूम ।
तेरे शुचि स्वर्गीय स्नेह के,
अमर नशे में लूँ अब झूम ।।
शब्दार्थ:
- अमूल्य उपहार – कीमती, अनमोल वस्तु या भेंट
- आँसू – आंखों से बहने वाला द्रव, दुःख या भावना का प्रतीक
- आंचल – साड़ी या वस्त्र का वह भाग जो कंधे और हाथ से लटकता है; स्नेह और सुरक्षा का प्रतीक
- विमल – शुद्ध, निर्मल
- मणियाँ – कीमती मोती या आभूषण, यहाँ प्रतीकात्मक रूप में भावनाओं के रूप में
- न्योछावर – समर्पित करना, भेंट देना
- चरण कमल – चरणों का आदरपूर्वक उल्लेख, माता या वरिष्ठ के पैरों के प्रतीक
- अंतिम बार – आखिरी अवसर
- शुचि – पवित्र, निर्मल
- स्वर्गीय स्नेह – दिव्य, अत्यंत कोमल और पवित्र प्रेम
- अमर नशा – अत्यंत आनंद या भावनात्मक उन्नति का प्रतीक
- झूमना – आनंद, उत्साह में लहराना
संदर्भ – प्रस्तुत अंश रक्षा बंधन कविता से लिया गया है। इसके कवि हरिकृष्ण प्रेमी हैं।
प्रसंग – प्रस्तुत अवतरण में भाई अपनी बहन से कहता है कि उसके पास रक्षा बंधन पर कोई भौतिक उपहार नहीं है, केवल आँसुओं की बूँदें हैं। वह बहन के पवित्र प्रेम और स्वाभिमान को मान्यता देते हुए, उसे अपने चरण चूमने का अवसर चाहता है। यह प्रसंग भाई-बहन के स्नेह, भावनात्मक जुड़ाव और सम्मान की भावना को दर्शाता है।
व्याख्या – भाई अपनी बहन से कह रहा है कि इस पावन रक्षा बंधन के अवसर पर सभी भाई अपनी बहनों को मूल्यवान उपहार देते हैं, लेकिन उसके पास देने के लिए कोई भौतिक वस्तु नहीं है। उसके पास केवल अपनी आँखों में आँसुओं की बूँदें हैं। वह कहता है — “तुम अपना आँचल फैलाओ, मैं अपने उपहार के रूप में उस पर कुछ आँसुओं की बूँदें गिरा दूँ।”
भाई आगे कहता है कि बहन मानती है कि ये आँसू रत्नों के समान अमूल्य हैं और इन पर पूरा संसार समर्पित है। वह अपनी बहन से निवेदन करता है कि वह अपने कमल के समान कोमल चरण बढ़ा दे, जिसे वह अन्तिम बार चूम सके। भाई कहता है कि तुम्हारे पवित्र और दिव्य प्रेम के शाश्वत स्वाभिमान में वह पूरी तरह मस्त हो जाएगा। इस प्रकार यह अवतरण भाई-बहन के पवित्र स्नेह, भावनात्मक संबंध और सम्मान की भावना को उजागर करता है।
वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर सही विकल्प चुनकर उत्तर दीजिए :
क) राखी कौन बाँधती है?
(क) माँ
(ख) बेटी
(ग) बहन
(घ) पत्नी
उत्तर : (ग) बहन
ख) भाई कहाँ जा रहा है?
(क) विद्यालय
(ख) मन्दिर
(ग) घर
(घ) समर में
उत्तर : (घ) समर में।
ग) मूल रूप से इस कविता का स्रोत है :
(क) बहन-भाई प्रेम
(ख) प्रकृति प्रेम
(ग) वात्सल्य प्रेम
(घ) देश प्रेम एवं स्वतंत्रता
उत्तर : (घ) देश प्रेम एवं स्वतंत्रता
घ) रक्षा बंधन के लिए भाई अपनी बहन को कौन-सा उपहार देना चाहता है?
(क) अमूल्य उपहार
(ख) आँखों के आँसू
(ग) स्वतंत्रता
(घ) निद्रा
उत्तर : (ख) आँखों के आँसू
लघूत्तरीय प्रश्नोत्तर
क) रक्षा बंधन कविता में किसके अत्याचार की बात कही जा रही है?
उत्तर:
रक्षा बंधन कविता में अंग्रेज शासकों के अत्याचार की बात कही जा रही है। उन्होंने हमारे देश में बहुत अत्याचार किए। कई युवतियों को विधवा बना दिया और देश को बेसहारा बना दिया।
ख) आश्रयहीन होने पर बहन का माथा ऊँचा कैसे होगा?
उत्तर:
आश्रयहीन होने पर भी बहन का माथा इसलिए ऊँचा होगा कि उसका भाई मातृभूमि की आज़ादी के लिए, देश को जालिमों के अत्याचार से बचाने के लिए अपने प्राणों का बलिदान कर देगा। इससे देश के नवयुवक वीरों को देश के लिए लड़ने और मिटने की प्रेरणा मिलने का अवसर मिलेगा।
ग) बहन भाई के उपहार को क्या कहती है?
उत्तर:
भाई के उपहार आँसुओं की बूँदों को बहन मणियों की भाँति बहुमूल्य कहती है क्योंकि उन मणियों पर संसार न्योछावर हो जाता है।
घ) भाई अमर नशे में कब झूमने की कामना करता है?
उत्तर:
भाई रणक्षेत्र में आत्म बलिदान करने के लिए प्रस्थान की तैयारी कर रहा है। वह अपनी बहन को उपहार के रूप में आँखों के आँसुओं को देना चाहता है। उसी समय वह बहन से कहता है कि बहन अपने चरण कमल बढ़ाओ ताकि वह उन्हें चूम सके। उस पवित्र स्नेह से भाई अमर नशे में झूमने की कामना करता है।
बोधमूलक प्रश्नोत्तर
(क) ‘रक्षा बन्धन’ कविता का मूल सार अपने शब्दों में लिखिए ।
उत्तर:
प्रस्तुत कविता में कवि देश के नवयुवकों को गुलामी की जंजीर तोड़ने और देश के लिए सहर्ष बलिदान करने की प्रेरणा दे रहा है। आज़ादी की लड़ाई में जाने से पहले भाई अपनी बहन से कहता है कि वह रणभूमि में जाने वाला है। वह चाहता है कि बहन उसे राखी बाँध कर आशीर्वाद दे, ताकि वह भारत माता के चरणों में अपने प्राणों का बलिदान कर सके।
जो अन्यायी शासक देश को वीरान और अनाथ बना चुके थे, उनकी अत्याचार की प्यास बुझाने के लिए देश के लाखों वीर नवयुवक विजय पथ पर अग्रसर हैं। बहन उसके मस्तक पर हाथ रखे, ताकि उसका मस्तक कभी न झुके। आज हमारे पास बहन को देने के लिए केवल आँसुओं के उपहार हैं, जिन्हें बहन मणियों के समान बहुमूल्य समझती है। प्रस्थान से पहले भाई बहन के चरण छूकर उसके पवित्र स्नेह में झूमना चाहता है।
(ख) इस कविता के माध्यम से आप कैसे कह सकते हैं कि यह स्वतंत्रता के पूर्व लिखी गई थी? जिन पंक्तियों से यह स्पष्ट हो रहा है; उन्हें लिखिए।
उत्तर:
इस कविता को पढ़ने से यह स्पष्ट हो जाता है कि यह स्वतंत्रता के पूर्व लिखी गई थी। यह बात निम्न पंक्तियों से स्पष्ट होती है:
- “यह पोंछ ले अश्रु, गुलामी का यदि दु:ख मिटाना है।”
- “उस हत्यारे ने तेरा माथा…”
इन पंक्तियों से पता चलता है कि देश पर अन्यायकारी शासकों का शासन था और कविता में उनके अत्याचारों का उल्लेख किया गया है।
(ग) भाई बहन को समर में जाने के पूर्व क्या-क्या कह रहा है?
उत्तर:
भाई समर में जाने से पहले अपनी बहन से कह रहा है कि वह उसे आशीर्वाद दे और उसके आँसू पोंछ ले। वह अंतिम बार राखी बाँधकर उससे प्यार करने को कहता है। मस्तक पर स्नेहपूर्वक अपना हाथ रख दे। वह बताता है कि अंग्रेज शासकों ने कितनी युवतियों की खुशियाँ छीनी और कई भारतीय वीरों को मार डाला। आश्रयहीन होने पर भी वह लोगों को विजय पाने के लिए प्रेरित करे। वह अंतिम बार बहन के चरण कमलों को छूने के लिए कहता है।
(घ) हमारा देश कब और किस प्रकार अनाथ हो गया?
उत्तर:
हमारा देश तब अनाथ हो गया जब यह पराधीन था और अत्याचारी अंग्रेज यहाँ के शासक बने। अन्यायी सरकार ने भारतीयों पर कई जुल्म किए, देश की संपत्ति लूटकर अपने देश ले गई और देश को वीरान बना दिया। जो नवयुवक देश की आज़ादी के लिए आवाज़ उठाते थे, उन्हें शूल पर चढ़ा दिया गया और कई युवतियों के सौभाग्य छीने गए। इस प्रकार हमारा देश अनाथ हो गया।
(ङ) निम्न पंक्तियों का भाव स्पष्ट कीजिए –
1. “अपना शीश कटा जननी की,
जय का मार्ग बनाना है।”
उत्तर:
इस पंक्ति में कवि का कथन है कि अन्यायी शासकों की प्यास बुझाने के लिए देश के लाखों वीर नवयुवक रणक्षेत्र की ओर प्रस्थान कर रहे हैं। सभी देशभक्त वीर पुरुष अपने प्राणों का बलिदान देकर भारत माता के विजय पथ को प्रशस्त करेंगे। अर्थात् वे अपने को न्योछावर कर मातृभूमि को स्वतंत्र बनाएँगे।
2. “बहन पोंछ ले अश्रु, गुलामी का यदि दुःख मिटाना है।”
उत्तर:
भाई बहन से कह रहा है कि वह उसके आँसू पोंछ दे ताकि वह निश्चिन्त होकर रणक्षेत्र में वीरता दिखा सके। भाई चाहता है कि बहन दुखी न हो, क्योंकि देश की गुलामी का दुःख तभी मिट सकता है जब वे शासकों को परास्त कर देश को स्वतंत्र बनाएँ।
3. “उठो बन्धुओं, विजय वधू को,
वरो तभी निद्रा लेना।”
उत्तर:
कवि भारतीय वीर युवकों को प्रेरणा दे रहा है कि वे उठें और शक्ति प्राप्त कर विजय हासिल करें। वे विजय रूपी वधू का वरण करें अर्थात् सफलता प्राप्त करें। कवि कहता है कि जब तक विजय प्राप्त न हो, तब तक विश्राम या आराम न करें, और केवल विजय मिलने के बाद ही शांति से विश्राम करें।
भाषा-बोध –
(क) इन शब्दों का वाक्यों में प्रयोग कीजिए:
- भीषण – आज सुबह अचानक भीषण तूफ़ान आया जिससे बहुत नुकसान हुआ।
- क्रूर – उस क्रूर राजा ने निर्दोष लोगों को सज़ा दी।
- विमल – गंगा का जल पवित्र और विमल माना जाता है।
- आँचल – माँ ने अपने आँचल से बच्चे के आँसू पोंछे।
(ख) शब्दों के अर्थ में अंतर बताइए:
- स्नेह – छोटों के प्रति अपनापन या ममता।
उदाहरण: माँ अपने बच्चों से बहुत स्नेह करती है। - प्यार – प्रेम या लगाव जो किसी से भी हो सकता है।
उदाहरण: राम को अपने देश से बहुत प्यार है। - अमूल्य – जिसका मूल्य न लगाया जा सके, अत्यंत कीमती।
उदाहरण: कोहिनूर हीरा एक अमूल्य रत्न है। - बहुमूल्य – बहुत मूल्य वाला, महँगा या कीमती।
उदाहरण: यह रेशमी साड़ी बहुत बहुमूल्य है। - ऊँचा – जो ऊपर उठा हुआ या उन्नत हो।
उदाहरण: मंदिर का शिखर बहुत ऊँचा है। - ऊँचाई – ऊपर उठे होने की अवस्था या स्तर।
उदाहरण: पर्वत की ऊँचाई बहुत अधिक है। - डाल – पेड़ की शाखा या तलवार का फल।
उदाहरण: पक्षी पेड़ की डाल पर बैठे हैं। - ढाल – वार या आघात से बचने का साधन।
उदाहरण: योद्धा ने अपनी ढाल से दुश्मन का वार रोका।
(ग) ‘अमूल्य’ में ‘अ’ उपसर्ग और ‘उपहार’ में ‘उप’ उपसर्ग की तरह प्रयोग हुआ है। ‘अ’ और ‘उप’ उपसर्गों के योग से तीन-तीन शब्द बनाइए –
अ – अमूल्य, अकर्म, अचल, अजर, अधर्म।
उप – उपहार, उपकार, उपवन, उपकरण।
(घ) भिखारिन शब्द में ‘इन’, स्वर्गीय में ‘ईय’ और आश्रयहीन में ‘हीन’ प्रत्ययों की भाँति प्रयुक्त हुए हैं। ‘इन’, ‘ईय’ और ‘हीन’ प्रत्ययों के योग से तीन-तीन शब्द बनाइए –
इन – भिखारिन, मालकिन, नातिन, पड़ोसिन।
ईय – स्वर्गीय, जातीय, भारतीय, राष्ट्रीय।
हीन – आश्रयहीन, जलहीन, शक्तिहीन।
रक्षा बंधन कविता का सारांश
हरिकृष्ण प्रेमी द्वारा रचित “रक्षा बंधन” कविता देशभक्ति, भाई-बहन के स्नेह और बलिदान की अमर भावना को अभिव्यक्त करती है। यह कविता केवल एक पारिवारिक पर्व की भावनात्मक प्रस्तुति नहीं है, बल्कि इसमें स्वतंत्रता संग्राम की अग्नि, मातृभूमि के प्रति समर्पण और आत्मबलिदान की प्रेरणा भी समाहित है।
कविता में एक वीर भारतीय नवयुवक अपने जीवन के अंतिम क्षणों में अपनी बहन से कहता है कि वह उसकी कलाई पर राखी बाँध दे, क्योंकि उसे रणभूमि में जाकर मातृभूमि की रक्षा करनी है। वह चाहता है कि उसकी बहन आँसू न बहाए, बल्कि उसे आशीर्वाद दे कि वह भारत माता के चरणों में अपना शीश अर्पित कर सके।
कवि ने अंग्रेजों के अत्याचार और उनके द्वारा किए गए अन्याय का भी चित्रण किया है। भाई अपनी बहन से कहता है कि अत्याचारी शासकों ने असंख्य स्त्रियों का सिंदूर पोंछ दिया, अनेक घरों के दीप बुझा दिए और निर्दोष लोगों की हत्या कर दी। इसलिए वह रणभूमि में जाकर इन पापियों का अंत करना चाहता है ताकि देश को गुलामी से मुक्ति मिल सके।
कविता के दूसरे भाग में भाई अपनी बहन से कहता है कि वह अपने प्रेमपूर्ण हाथ से उसके मस्तक पर आशीर्वाद रखे ताकि उसका सिर कटने से पहले कभी झुके नहीं। यदि वह शहीद भी हो जाए, तो उसकी बहन अपने सिर को गर्व से ऊँचा रखे और देश की विजय के लिए लोगों को प्रेरित करे। यह संदेश कवि के देशभक्ति और स्वाभिमान की गहरी भावना को दर्शाता है।
अंतिम भाग में कवि ने भाई-बहन के भावनात्मक संबंध को बहुत मार्मिक ढंग से चित्रित किया है। भाई कहता है कि उसके पास देने के लिए कोई भौतिक उपहार नहीं है, केवल कुछ आँसुओं की बूँदें हैं जिन्हें वह बहन के आँचल में उपहार के रूप में देना चाहता है। उसकी बहन उन आँसुओं को रत्नों के समान मूल्यवान मानती है। भाई बहन के चरणों को अंतिम बार चूमना चाहता है और उसके पवित्र स्नेह में भावविभोर होकर झूम उठता है।
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