शिक्षा का क्षेत्र(shiksha ka kshetra)
शिक्षा का क्षेत्र व्यापक है या विस्तृत है। शिक्षा का संबंध व्यक्ति के सर्वांगीण विकास से है। इस प्रकार जीवन का कोई भी पक्ष ऐसा नहीं है जो किसी ना किसी रूप में इसके क्षेत्र में ना आता हो। एक व्यक्ति के लिए शिक्षा के सभी क्षेत्र में निपुण होना असंभव है। विभिन्न व्यक्ति शिक्षा के विभिन्न क्षेत्रों में विशिष्ट शिक्षा ग्रहण करती हैं इस बात को समझ लेना चाहिए कि शिक्षा के विभिन्न क्षेत्रों में प्रचार संबंध है शिक्षा की प्रगतिशील बनाने के लिए हमें शिक्षा के विभिन्न क्षेत्रों में समायोजन की आवश्यकता है। अतः शिक्षा के निम्नलिखित क्षेत्र है-
१. छात्र या बालक
२. शिक्षक
३. पाठ्यक्रम
४. स्कूली शिक्षा
५.शिक्षा दर्शन
६.शिक्षा मनोविज्ञान
७.शिक्षा समाजशास्त्र
८.पाठ्य सहगामी क्रियाएं
९.शिक्षण विधि
१०.शिक्षण साधन या सामग्री
११.शिक्षा समस्याएं
१२.शैक्षिक वातावरण
१३.शिक्षा प्रशासन एवं प्रबंधन
१४.शिक्षा तकनीकी
१५.शिक्षा का इतिहास
१६.तुलनात्मक शिक्षा
१७.सामाजिक प्रौढ़ शिक्षा
१८.स्त्री शिक्षा
१९.व्यवसाय शिक्षा
२०.अध्यापक शिक्षा
२१.पुस्तकालय शिक्षा
२२.शैक्षिक तथा व्यावसायिक शिक्षा
२३.बेसिक शिक्षा
२४.कार्य अनुसंधान शिक्षा
२५.सांख्यिकी शिक्षा तथा नवाचार
१. छात्र या बालक :-
छात्र एवं बालक की भूमिका शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है क्योंकि शिक्षा बालक एवं बालिका के समक्ष ही दी जाती है। आज के बच्चे कल के भविष्य होते हैं वही देश तथा समाज की जरूरतों को पूरा करेंगे। अतः उनके लिए अच्छी शिक्षा का होना अति आवश्यक है।
२. शिक्षक :-
शिक्षा हर जगह होती है चाहे वह बाजार हो या गली का रास्ता या स्कूल या कॉलेज शिक्षा हर जगह प्राप्त की जा सकती है जो भी व्यक्ति किसी से जो कुछ भी सीखता है उसे ही हम शिक्षा करते हैं जो व्यक्ति उसे सिखाता है उसे शिक्षक तथा जो व्यक्ति सीखता है उसे शिष्य कहते हैं। शिक्षा हम प्रत्येक प्राणी, पशु पक्षी या जीव-जंतु से भी प्राप्त कर सकते हैं।
३. पाठ्यक्रम :
वर्तमान युग में शिक्षा को सही दिशा में लाने के लिए हम पाठ्यक्रम साधनों का सहारा लेते हैं पाठ्यक्रम हमें हर गतिविधियों को सही ढंग में बांध कर रखता है जिससे हम एक सीमित क्षेत्र में रहकर अच्छी शिक्षा प्राप्त कर सकते हैं शिक्षा के क्षेत्र में पाठ्यक्रम का महत्वपूर्ण योगदान होता है क्योंकि यह पाठ्यक्रम ही व्यक्ति के सर्वांगीण विकास में सहायक होता है।
४. स्कूली शिक्षा :
स्कूली शिक्षा वह शिक्षा होती है जो मनुष्य या व्यक्ति को एक सीमित उम्र तक शिक्षा दी जाती है जिसके माध्यम से बच्चे अपने भावी जीवन को सुधार सकें। स्कूली शिक्षा में हमें यह सिखाया जाता है कि कैसे हम अपने जीवन को गतिशील एवं समाज, देश एवं संसार के विभिन्न परिस्थितियों में ढ़ाल सके। यह शिक्षा हमें व्यवसायिक भी शिक्षा भी देती है।
५.शिक्षा दर्शन :
शिक्षा दर्शन, जिसमें शिक्षा से संबंधित विभिन्न समस्याओं को दर्शाया जाता है तथा विभिन्न दार्शनिक उन समस्याओं को जानकर उनका हल या समाधान निकालते हैं।
६.शिक्षा मनोविज्ञान :
मनोविज्ञान को मानव व्यवहार के अध्ययन से संबंधित विज्ञान कहा जाता है। मानव व्यवहार के कार्यों की व्याख्या करना ही मनोविज्ञान का कार्य है मानव व्यवहार के आधारभूत सिद्धांतों की रचना से यह विषय, विज्ञान की श्रेणी में आ गया है। जीवन के हर क्षेत्र में शिक्षा मनोविज्ञान की भूमिका महत्वपूर्ण रही है शिक्षा मनोविज्ञान के द्वारा बालक के रूचि अभिरुचि, योग्यता, क्षमता, बुद्धि आदि के विषय में जानकारी हासिल किया जाता है ताकि बालक को उसी के अनुसार शिक्षा दे सकें।
७.शिक्षा समाजशास्त्र :
शिक्षा समाजशास्त्र यह होता है जिसमें समाज और शिक्षा का समन्वित रूप से अध्ययन किया जाता है। इस प्रकार की शिक्षा में समाज की बुराइयों को जानकर उन्हें दूर करने का प्रयास किया जाता है तथा समाज को बेहतर से बेहतर बनाने कि शिक्षा बच्चों को दी जाती है। जिससे सामाजिक विकास एवं उनकी उन्नति हो सके।
८.पाठ्य सहगामी क्रियाएं :-
पाठ्य सहगामी क्रियाएं वह होती हैं जिसमें शिक्षण को रुचि पूर्ण, उद्देश्य पूर्ण, रोचक एवं बच्चों के अनुकूल बनाया जाता है। पाठ्य सहगामी क्रियाएं के माध्यम से यह बताया जाता है कि शिक्षक को कौन सी कक्षा में कितना विषय रखना है कितना पढ़ाना है और किस ढंग से पढ़ाना है ताकि बच्चों के उद्देश्यों को पूरा किया जा सके और उन्हें एक अच्छी शिक्षा दी जा सके यह इसी बात की पुष्टि करता है।
९.शिक्षण विधि :
शिक्षण को सुचारू रूप से चलाने के लिए एक शिक्षक जिस तरीके या ढंग से छात्र एवं छात्राओं को शिक्षा प्रदान करता या ज्ञान बांटता है उसे ही शिक्षण विधि कहते हैं। शिक्षण विधि से बच्चों तथा शिक्षक को कोई भी विषय को समझने या समझाने में मदद मिलती हैं शिक्षक किसी भी पाठ को या प्रकरण को प्रधानी से पहले गहन चिंतन मनन करता है तथा बच्चों को सरल एवं रुचि पूर्ण ढंग से शिक्षण विधियों का प्रयोग करते हुए उन्हें शिक्षा प्रदान करता है।
१०.शिक्षण साधन या सामग्री :
शिक्षा को सुचारू रूप से चलाने के लिए हमें शिक्षण साधन या सामग्री की आवश्यकता होती है। जिससे हम शिक्षा को सरल बनाते हैं जैसे लिखने के लिए पेंसिल, चोक, पेन आदि का प्रयोग करते हैं ब्लैक बोर्ड, बुक,चार्ट मॉडल, संकेतक, झाड़न इत्यादि शिक्षण सामग्रियों का प्रयोग करते हैं। इन सामग्रियों का प्रयोग विषय के अनुसार हर शिक्षक अलग तरीके से करता है।
११.शिक्षा समस्याएं :
शैक्षिक समस्याएं में शिक्षा से संबंधित समस्याओं का अध्ययन किया जाता है तथा उन समस्याओं का समाधान एवं हल निकाला जाता है ताकि आने वाली पीढ़ी को उन समस्याओं का सामना ना करना पड़े।
१२.शैक्षिक वातावरण :
शैक्षिक वातावरण वह होती है जो बच्चों को एक सही परिवेश में रहकर शिक्षा प्रदान की जाती है। बच्चे को नैतिक शिक्षा देना, समाज से जुड़ना तथा देश की उन्नति के लिए विभिन्न परिवेश में ढ़ालना ही शैक्षिक वातावरण हैं।
१३.शिक्षा प्रशासन एवं प्रबंधन :
शिक्षा प्रशासन या प्रबंधन उसे कहते हैं जो शिक्षा से संबंधित नियमों, पाठ्यक्रम एवं गतिविधिओं को समेट कर रखता है और समय के अनुसार अपने नियमों एवं पाठ्यक्रम में बदलाव कर अच्छी शिक्षा देने का प्रयास करता है ताकि बालक एवं बालिकाओं को वर्तमान समय में उचित शिक्षा प्राप्त हो सके।
१४.शिक्षा तकनीकी :
शैक्षिक तकनीकी वह तकनीकी है जिसमें व्यावहारिक या प्रयोगात्मक अध्ययन किया जाता है जिसके माध्यम से शैक्षिक उद्देश्य, शारीरिक उद्देश्य मानसिक उद्देश्य एवं सामाजिक उद्देश्यों के साथ साथ पाठ्य-वस्तु, शिक्षण सामग्री, शिक्षण विधि, शैक्षिक वातावरण, विद्यार्थियों का व्यवहार तथा विद्यार्थियों के मध्य होने वाली अंत:प्रक्रिया को नियंत्रित करके अधिकतम शैक्षिक प्रभाव उत्पन्न करना है।
१५.शिक्षा का इतिहास :
शिक्षा का इतिहास में हम प्राचीन माध्यम एवं वर्तमान शिक्षा की तुलनात्मक रूप से अध्ययन करते हैं प्राचीन काल में किस तरह से शिक्षा नीति को अपनाई जाती थी। उस काल में शिक्षा से संबंधित जिन समस्याओं का सामना किया गया था उन समस्याओं को दूर कर वर्तमान शिक्षा को बनाया गया है तथा उन नीतियों को