परोपकार निबंध का रूपरेखा :- १. भूमिका २. प्रकृति और परोपकार ३. मनुष्य जीवन की सार्थकता ४. परोपकर संबंधित कुछ उदाहरण ५. उपसंहार ।
१. भूमिका
“अहा! वही उदार है परोपकार जो करें,
वही मनुष्य है कि जो एक मनुष्य के लिए मरे।”
इन पंक्तियों में राष्ट्रीय कवि मैथिलीशरण गुप्त ने निसंदेह परोपकार का अमर उद्घोष किया है। परोपकार का सीधा अर्थ है दूसरे का उपकार। यस सर्व मंगल की भूमिका है। परिवार, समाज, राष्ट्र और विश्व के कल्याण के लिए स्व की बलि दे देना ही परोपकार का सुंदर लक्ष्य है, पवित्र साधना है। आदि काल से ही भारत परोपकार के दिव्य संदेश से अनुप्राणित है। भारतीय महर्षियों ने कहा हैं – “परोपकाराय सतां विभूतय:।”शताब्दियों पहले तुलसीदास ने इसी बात को बड़ी मार्मिक शब्दों में दोहराया है –
“परहित सरिस धर्म नहिं भाई।
परपीड़ा सम नहीं अधमाई ।।”
२.प्रकृति और परोपकार
वृक्ष, नदी, सूरज, चांद, वर्षा और वायु, मिट्टी और पानी सभी परोपकार में रत हैं। स्वयं की तृप्ति के लिए किस जलद सेजल भरा है? किस वृक्ष से फल धारण किये हैं? नदिया अपने गर्भतल में इतना पानी अपनी तृप्ति के लिए संचित नहीं करती।
३. मनुष्य जीवन की सार्थकता
दूसरों के लिए प्राण दान कर देना मनुष्यता है। दूसरों के लिए जीवन का उत्सर्ग कर देना मनुष्यता है। दूसरों के लिए जान पर खेल जाना मनुष्यता है। अपने लिए जीना और अपने लिए मरना क्या जीना और मरना है? सच्चे मनुष्य की संपूर्ण विभूति परोपकार के लिए होता है। हमारे महर्षियों ने ‘मनुष्य तन’ की सबसे अच्छी विशेषता यह बताई गई है कि परमार्थ की सेवा में विसर्जित हो जाना ही सच्चे मनुष्यता की पहचान है। पानी के बुलबुले की तरह यह जीवन क्षणभंगुर है। व्यक्ति स्वयं के लिए नहीं विश्व के लिए जीता है। प्रसाद जी कहते हैं कि “यदि तुमने एक भी रोते हुए को हंसा दिया है तो तुम्हारे हृदय में सहस्त्रों स्वर्ग विकसित होंगे।”
4. परोपकर संबंधित कुछ उदाहरण
परहित हिंदू सभ्यता एवं हिंदू संस्कृति का प्रधान अंग है। हमारे यहां “वसुधैव कुटुंबकम” का सिद्धांत कार्यवित्त हुआ है। विश्व का साहित्य उन महान आत्माओं की पुनीत गाथाओं से जगमगा रहा है। जिन्होंने मानव मात्र और उससे भी आगे बढ़कर प्राणी मात्र के रक्षार्थ प्राणोत्सर्ग करने में दुविधा को वरण नहीं किया और हंसते हंसते मृत्यु का स्वागत किया। ईसा मसीह के शरीर में जिस समय खूटियां गाड़ी जा रही थीं उस समय भी उनके मुंह से यह शब्द निकल रहे थे “प्रभु इन्हीं क्षमा कर दो क्योंकि इन्हें नहीं मालूम की ये क्या कर रहे हैं।” बुद्ध ने परमार्थ के लिए सब कुछ छोड़ा। महाराजा दधीचि ने अपनी हड्डियां तक दान कर दीं। कर्ण जैसे महान परोपकारी ने मृत्यु शैय्या पर पड़े हुए भी याचक ब्राह्मण के लिए अपना स्वर्ण मंडित दांत तोड़ने से मुंह नहीं मोड़ा। आधुनिक काल में महात्मा गांधी ने मुसलमानों के रक्षार्थ अपने प्राणों का बलिदान किया। हमारी पथ प्रदर्शिनी इंदिरा गांधी ने भारत की एकता, अखंडता और अन-बन के लिए हंसते गाते गोलियों का वरण किया। भारतीय इतिहास के पृष्ठ पर परोपकार के ऐसे उदाहरण अनेकों मिलते हैं।
5. उपसंहार
मनुष्य होने के नाते हमारा कर्तव्य है कि हम अपने भाई बहनों के भार में अपना कंधा लगाएं, उनके दुख दर्द को तन-मन-धन से दूर करने का पर्यटन करें। “बसुधैव कुटुम्बकम”का अर्थ है एक ही परिवार में सभी लोग मिलजुलकर समान भाव से रहना। इस नियम को हमारे पूर्वजों ने बनाया है और इसका अभी तक पालन किया जाता है। इस प्रकार के नियम का पालन कर हम अपनी गौरवपूर्ण शोहरत को बनाकर रख सकते है। हमें चाहिए कि हम व्यक्तिगत संकुचित घेरे से निकलकर स्वार्थ परायणता का परित्याग कर अपने सुख-दुख, हानि-लाभ की चिंता ना करके मानव समाज का हित करें।परोपकार से बढ़कर विश्व में दूसरा कोई धर्म नहीं। परोपकार मनुष्य जीवन का आभूषण है वही मनुष्य है जो मनुष्य के लिए मरता है।