कला के प्रकार (Kala ke prakar)


कला के प्रकार: एक विस्तृत विवेचन | Types of Art in Hindi

मनुष्य अपने भावों, विचारों, कल्पनाओं और अनुभवों को व्यक्त करने के लिए जिन माध्यमों का उपयोग करता है, उनमें कला एक अत्यंत प्रभावशाली और सशक्त साधन है। कला न केवल सौंदर्य और अभिव्यक्ति का प्रतीक है, बल्कि यह संस्कृति, सभ्यता और इतिहास का भी दर्पण है।

कला को मुख्य रूप से दो भागों में वर्गीकृत किया गया है:

  1. दृश्य कला (Visual Arts)
  2. प्रदर्शनी कला (Performing Arts)

दृश्य कला को भी तीन भागों में बांटा गया है-

क) चित्रकला 

ख) मूर्तिकला

ग) वास्तुकला

प्रदर्शनी कला को दो भागों में बांटा गया है :-

क) काव्य कला

ख) संगीत

इसे भी पढ़े : कला किसे कहते हैं कला का अर्थ

1. दृश्य कला :-

दृश्य कला (Visual Art) वे कलाएं होती हैं जिन्हें प्रत्यक्ष रूप से आंखों से देखा जा सकता है। ये कलाएं स्थिर होती हैं और इनमें कलाकार अपनी कल्पनाओं, भावनाओं और अनुभूतियों को रूप, रंग, आकृति, रेखा, बनावट और स्थान के माध्यम से प्रस्तुत करता है।

दृश्य कलाओं में सौंदर्यबोध, रचनात्मकता, और संवेदनशीलता का अद्भुत समन्वय होता है। ये कलाएं न केवल दर्शक की आँखों को आनंदित करती हैं, बल्कि उसके मन-मस्तिष्क को भी गहराई से प्रभावित करती हैं।

दृश्य कला के तीन प्रमुख प्रकार हैं:

 

(क) चित्रकला (Painting)

यह कला समस्त शिल्पों सर्वप्रिय माना जाता है जिसमें भौतिक दैविक एवं आध्यात्मिक भावना तथा सत्यम शिवम सुंदरम के समन्वित रूप की अभिव्यक्ति है। रेखा, वर्ण, वर्तना और अलंकरण इन चारों की सहायता से चित्र का स्वरूप निष्पादित होता है। चित्रकला दृश्य कला का सबसे पुराना और लोकप्रिय रूप है। इसमें कलाकार रंगों, रेखाओं, आकृतियों, ब्रश स्ट्रोक्स और टेक्सचर का उपयोग करके किसी दृश्य, भावना, विचार या कल्पना को कैनवास, कपड़े, कागज या दीवारों पर उकेरता है।

चित्रकला की प्रमुख विशेषताएँ:
  • भावनात्मक, आध्यात्मिक और सौंदर्यात्मक अभिव्यक्ति का माध्यम।
  • यह सत्यम् शिवम् सुंदरम् के दर्शन को उजागर करती है।
  • प्राचीन काल से लेकर आज तक यह अभिव्यक्ति का सबसे प्रभावशाली माध्यम रही है।
भारत की प्रमुख चित्रकलाएँ:
  1. मधुबनी चित्रकला (बिहार) – पौराणिक कथाओं और प्राकृतिक दृश्य को चित्रित करती है।
  2. वारली चित्रकला (महाराष्ट्र) – जनजातीय जीवन पर आधारित सरल लेकिन प्रभावी चित्रण।
  3. कालीघाट चित्रकला (पश्चिम बंगाल) – धार्मिक विषयों और सामाजिक व्यंग्य का समावेश।
  4. राजस्थानी मिनिएचर पेंटिंग – बारीक रेखांकन और जीवंत रंगों के लिए प्रसिद्ध।
  5. अजंता और एलोरा की भित्तिचित्रें – बौद्ध धर्म, जीवन व संस्कारों का उत्कृष्ट प्रदर्शन।

चित्रकला न केवल सौंदर्य का प्रतीक है, बल्कि यह समाज, संस्कृति और इतिहास का दस्तावेज भी है।

 

इसे भी पढ़ें: 

चित्रकला को और विस्तार से पढ़ें

ख) मूर्तिकला

भारत में मूर्ति कला को अत्यंत प्रतिष्ठित माना जाता है। प्राचीन भारतीय मंदिरों की मूर्तिकला पर संपूर्ण विश्वास आश्चर्य करता है और मुग्ध होता है। मंदिरों में मूर्तिकला का अत्यंत उदान्त रूप देखने को मिलता है। उदाहरण दक्षिण भारत में नटराज की मूर्ति परमात्मा के विराट स्वरूप को परिलक्षित करता है।

मूर्तिकला वह दृश्य कला है जिसमें कलाकार मिट्टी, पत्थर, धातु, लकड़ी, संगमरमर या अन्य ठोस माध्यमों से त्रिआयामी (3D) आकृतियों का निर्माण करता है। यह कला छूने योग्य, घूमकर देखने योग्य और स्थायी स्वरूप वाली होती है।

मूर्तिकला की विशेषताएँ:
  • यह धार्मिक, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक भावनाओं की अभिव्यक्ति करती है।
  • मूर्तियों में शरीर की मुद्रा, भाव-भंगिमा और आभूषणों का विशेष ध्यान रखा जाता है।
  • भारत की प्राचीन मूर्तिकला में धार्मिक अध्यात्म, योग, नृत्य, और प्रकृति प्रेम का समावेश मिलता है।
भारत की प्रसिद्ध मूर्तियाँ:
  1. नटराज की मूर्ति (चिदंबरम, तमिलनाडु) – शिव का नृत्य रूप, ब्रह्मांडीय चेतना का प्रतीक।
  2. खजुराहो की मूर्तियाँ (मध्य प्रदेश) – प्रेम, भक्ति और मानव जीवन की झलक।
  3. एलोरा और एलीफेंटा की गुफाएं – शैव, वैष्णव, बौद्ध मूर्तिकला का अद्भुत संगम।
  4. सांची का स्तूप – बौद्ध धर्म की प्रतीकात्मक मूर्तियाँ और जीवन दृष्टिकोण।

भारत में मूर्तिकला को केवल सौंदर्य नहीं, बल्कि आराधना और आस्था का भी माध्यम माना गया है।

ग) वास्तुकला :-

भारतीय वास्तुकला के विकास का स्रोत धर्म है। मूर्ति कला और चित्रकला को वस्तु कला के अंतर्गत ही स्थान दिया गया है प्राचीन गुफाओं, मंदिरों आदि में तीनों कलाएं एक साथ मिलती है। वस्तु कला का सीधा-साधा अर्थ है-“उन भावनाओं का निर्माण कला, जहां निवास किया जाता है।”

वास्तुकला वह दृश्य कला है जिसमें भवन, मंदिर, महल, स्तूप, मस्जिद, किला आदि का निर्माण वैज्ञानिक, सौंदर्यात्मक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से किया जाता है। यह कला संरचना, रूपरेखा, संतुलन और उपयोगिता के आधार पर विकसित होती है।

वास्तुकला की विशेषताएँ:
  • वास्तुकला में स्थायित्व और सौंदर्य दोनों का समन्वय होता है।
  • इसमें ज्यामिति, अनुपात, सज्जा और पर्यावरणीय पहलुओं का विशेष ध्यान रखा जाता है।
  • भारतीय वास्तुकला धर्म और संस्कृति से गहराई से जुड़ी हुई है।
भारत की प्रमुख वास्तुकला उदाहरण:
  1. ताजमहल (आगरा) – मुगल वास्तुकला का श्रेष्ठ नमूना, प्रेम और सौंदर्य का प्रतीक।
  2. कोणार्क सूर्य मंदिर (ओडिशा) – चक्र, रथ और सूर्य की मूर्ति के साथ अद्भुत शिल्प।
  3. खजुराहो मंदिर – नक्काशी और प्रतिमाओं का उत्कृष्ट उदाहरण।
  4. ब्रिहदेश्वर मंदिर (तंजावुर) – दक्षिण भारतीय द्रविड़ वास्तुकला का अनुपम उदाहरण।
  5. जयपुर और जोधपुर के किले – राजपूत वास्तुकला का शौर्य गान।

वास्तुकला का उद्देश्य केवल भवन निर्माण नहीं, बल्कि वातावरण, दर्शन और भावना को एकीकृत करना होता है।

 

दृश्य कला केवल सौंदर्य का स्रोत नहीं, बल्कि यह हमारी संस्कृति, परंपरा और आत्मा की अभिव्यक्ति है। चित्रकला, मूर्तिकला और वास्तुकला – ये तीनों कलाएं हमारे अतीत को संजोए हुए हैं और हमें भविष्य की दिशा दिखाती हैं।

इन कलाओं को आंखों से देखा जा सकता है, इसलिए इन्हें ‘दृश्य कला’ कहा जाता है।

 

2. प्रदर्शनी कला

प्रदर्शनी कला (Performing Art) वे कलाएं होती हैं जो मंच पर सजीव रूप में प्रस्तुत की जाती हैं और जिनमें कलाकार अपनी शारीरिक अभिव्यक्ति, आवाज़, हाव-भाव, और रचनात्मकता से दर्शकों के समक्ष कला को जीवंत करते हैं। ये कलाएं आमतौर पर श्रव्य, दृश्य और भावनात्मक अनुभव प्रदान करती हैं।

प्रदर्शनी कला को मुख्यतः दो प्रमुख भागों में वर्गीकृत किया गया है:

(क) काव्य कला (Poetic Art)

काव्य या कविता कला का वह रूप है जिसमें कवि अपनी भावनाओं, कल्पनाओं, विचारों और अनुभूतियों को शब्दों के माध्यम से इस प्रकार व्यक्त करता है कि उनमें संगीतात्मकता, लय, अनुप्रास और सौंदर्य की स्पष्ट झलक हो।

काव्य कला की विशेषताएँ:
  • इसमें केवल सूचना या विचार नहीं होते, बल्कि एक “कुछ और” होता है जिसे चारुता या सौंदर्य कहते हैं।
  • यह सौंदर्यबोध पाठक या श्रोता की चेतना को आकर्षित करता है।
  • काव्य कला केवल शब्दों का खेल नहीं, बल्कि यह हृदय और आत्मा की गहराइयों से निकली अनुभूति होती है।

 

काव्य प्रेरणा के स्रोत:
  • प्रकृति की सुंदरता (पुष्प, नदियाँ, पर्वत, चंद्रमा आदि)
  • मानव जीवन की घटनाएँ (प्रेम, वियोग, पीड़ा, मृत्यु आदि)
  • समाज व संस्कृति, राजनीति, धार्मिक चेतना
  • गुरु, आचार्य, मित्र, जीवन दर्शन आदि से प्राप्त अनुभूतियाँ

 

प्रसिद्ध कवियों के उदाहरण:
  • कालिदास – मेघदूत, ऋतुसंहार
  • सूरदास – कृष्ण भक्ति में रचित पद
  • कबीर – निर्गुण भक्ति और सामाजिक चेतना
  • मीराबाई – प्रेम और भक्ति की अद्वितीय कवयित्री
  • रवीन्द्रनाथ ठाकुर – गीतांजलि

 

काव्य कला में शब्दों के माध्यम से आत्मा की गहराई को छूने की शक्ति होती है। यह कला मंच पर कविता पाठ, कवि सम्मेलन, नाट्य काव्य आदि रूपों में प्रस्तुत की जाती है।

 

(ख) संगीत कला (Music Art)

संगीत कला प्रदर्शनी कला का अत्यंत प्रभावशाली और बहुप्रचलित रूप है। इसमें गायन (vocal), वादन (instrumental), और नृत्य (dance) तीनों प्रमुख आयाम होते हैं। संगीत भावनाओं को व्यक्त करने का सबसे प्रभावशाली माध्यम है, जो मन और आत्मा को सुकून प्रदान करता है।

संगीत कला की प्रमुख विशेषताएँ:
  • यह श्रव्य और दृश्य दोनों रूपों में प्रस्तुत की जाती है।
  • भारतीय संगीत की जड़ें आध्यात्मिकता में गहराई से निहित हैं।
  • संगीत का प्रभाव मानव मस्तिष्क, शरीर और आत्मा पर सीधा पड़ता है।
संगीत के तीन मुख्य अंग:
  1. गायन (Singing) – भावों की लयबद्ध अभिव्यक्ति
  2. वादन (Instrumental Music) – वाद्ययंत्रों द्वारा ध्वनि निर्माण
  3. नृत्य (Dance) – शारीरिक मुद्राओं द्वारा संगीतात्मक प्रस्तुति
भारत की संगीत परंपरा में दो मुख्य धाराएँ:
  1. शास्त्रीय संगीत (Classical Music)

    • हिंदुस्तानी (उत्तर भारत) और कर्नाटिक (दक्षिण भारत) दो भागों में विभाजित।

    • प्रसिद्ध कलाकार:

      • तानसेन – अकबर के नवरत्न

      • पंडित भीमसेन जोशी

      • पंडित जसराज

      • एम.एस. सुब्बुलक्ष्मी

  2. लोक संगीत और लोकप्रिय संगीत (Folk & Popular Music)

    • विभिन्न प्रांतों की लोकसंस्कृति, त्यौहार और परंपराएं इसमें झलकती हैं।

    • उदाहरण:

      • राजस्थानी मांड, बिहारी सोहर, पंजाबी भांगड़ा, मराठी लावणी

वादन क्षेत्र के प्रसिद्ध कलाकार:
  • पंडित रविशंकर – सितार
  • उस्ताद बिस्मिल्लाह खान – शहनाई
  • उस्ताद अल्ला रक्खा – तबला

संगीत न केवल मनोरंजन का माध्यम है, बल्कि यह ध्यान, साधना, चिकित्सा और आत्मविकास का भी प्रभावशाली माध्यम माना गया है।

प्रदर्शनी कला न केवल कला की प्रस्तुति है, बल्कि यह संप्रेषण की आत्मा है। यह कला दर्शकों के साथ सीधा संवाद करती है – उनकी भावनाओं को स्पर्श करती है, उन्हें झकझोरती है और भावविभोर कर देती है।

  • काव्य कला जहां शब्दों से हृदय को छूती है,
  • वहीं संगीत कला सुरों से आत्मा को शांत करती है।

यही कारण है कि प्रदर्शनी कलाएं समाज के मानसिक, सांस्कृतिक और आत्मिक विकास में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

Q1. दृश्य कला और प्रदर्शनी कला में क्या अंतर है?
उत्तर: दृश्य कला को आंखों से देखा जाता है जैसे चित्रकला, मूर्तिकला, वास्तुकला जबकि प्रदर्शनी कला मंच पर प्रस्तुत की जाती है जैसे काव्य और संगीत।

Q2. चित्रकला के प्रमुख प्रकार कौन-कौन से हैं?
उत्तर: प्रमुख प्रकार हैं – मधुबनी चित्रकला, कालीघाट चित्रकला, मिनिएचर पेंटिंग आदि।

Q3. संगीत के कितने प्रकार होते हैं?
उत्तर: संगीत के तीन प्रमुख प्रकार हैं – गायन, वादन, और नृत्य। इसके दो मुख्य स्वरूप हैं – शास्त्रीय और लोक संगीत।

 

Leave a Comment