‘परिन्दे’ कहानी की समीक्षा (parindey kahani ki samiksha)


'परिन्दे' कहानी की समीक्षा (parindey kahani ki samiksha)
‘परिन्दे’ कहानी की समीक्षा (parindey kahani ki samiksha)

कहानी काला की दृष्टि से ‘परिन्दे’ कहानी की समीक्षा

परिन्दे निर्मल वर्मा की एक लम्बी कहानी है।पहाड़ो के सौंदर्य के बीच इनकी बाल्यावस्था के दिन व्यतीत हुए और आरंभिक शिक्षा भी यही हुई । दिल्ली के सैंट स्टीकेन्स कॉलेज से इतिहास में एम.ए की डिग्री प्राप्त की। अतीत हमेशा से इनका प्रिय विषय रहा है। उनके पात्र दार्शनिक ढंग से अतीत से जुड़े रहते हैं। उनके पात्र यादों की गली में खो जाते है। स्मृतियों के भंवर में डूब जाते है उतर जाते है। ‘एक चिथड़ा सुख’ ‘अन्तिम अरण्य,लाल टीन की छत और वे दिन जैसे रचनाएं सौंदर्य,प्रेम, वेदना और स्मृतियों का धनावन और इससे होकर गुजरते हैं-  ‘निर्मल वर्मा।’

‘परिन्दे’ यानी पक्षी – पक्षी उड़ते है चहकते है उनकी धरती है,उनकी हरियाली है।पहाड़ी इलाका, ‘हॉस्टल’ लड़कियां और इन्हें देखती लटिका। छुट्टियों में ‘ मैडम लतिका ,घर नहीं जाती।इस कहानी के एक हिस्सा का संबंध मैडम लतिका से है। उसका अकेलापन पूरी कहानी में प्रसारित है। वह हंसना भूल गई है।कमी अतीत में एक फौजी के प्राति इसके मन में कोमल भाव जागे थे।उस फौजी का नाम था- “गिरिश नेगी” तब लतिका के खिलने के दिन थे बल्कि खिले-खिले दिन थे।उन दिनों मौसम में वातावरण में हवाओं में कोई खुशबू घुली-मिली थी। एक पगली सी उद्रभ्रान्त भावना-चैपल के शीशों के पीछे पहाड़ी, सूखी हवा—-।”लतिका वर्त्तामान से भागकर जा छुपती है दूर कहीं- पेड़ों के पास गिरिश एक हाथ में मिलिटरी का खाकी सैंट लिए खड़ा है और अचानक गिरिश अपना मिलिटरी का हैट धप  से लतिका के सिर पर रख दिया लतिका मन्त्रमुग्ध सी वैसी ही खड़ी रही।उसके माथे पर छोटी-सी बिन्दु है। बिन्दु पर उड़ते हुए बाल है। गिरिश ने उस बिन्दी को अपने होठो से छुआ है उसने उसके नंगे सिर को अपने दोनों हाथों में समेट लिया है। दोनों में बातें होती है बातों ही बातों में लतिका प्यार से गिरिश से कहती है “तुम्हें आर्मी में किसने चुन लिया, मेजर बन गरु हो लेकिन लड़कियों से भी गरु बातें ही — जरा — जरा सी बात पर चेहरा लाल हो जाता है।” वहीं मेजर गिरिश नेगी एक दिन चला गया यह कहकर कि वह कुछ महीनों में वापस आएगा लेकिन वह नहीं आया, नहीं आ सका और लतिका के हंसी-खुशी के दिन गुजर गए,खत्म हो गए। वर्तमान बोझिल हो गया।अतीत कीस्मृतियों से उसका रिश्ता गहरा होता चला गया और वह खुद अपनी उदासी की होती चली गई।वह वर्तमान में अनाकित है,मिसकिट है।समय हर जगह वह अतीत में ही डूबी रहती है,कोई रहती है गिरिश नेगी की याद में वह हमेशा डूबते-तैरते रहती है यह अतीत उसका पर्याय है और उसे वह दबाए रखना चाहती है। इसलिए वह छुट्टियों में भी उस स्थान को नहीं छोड़ती है जिस स्थान पर गिरिश नेगी से प्यार हुआ था। अकेली रहकर वह अतीत में जीती है।अपने अतीत के समुद्र में गोता लगाती रहती है।इस करुणामय , भावनामय,प्रेममय अतीत को वह कभी भी विस्तृत नहीं कर सकती है। उसका अतीत ही उसका चैन है उसका शुकून है।उसका वर्तमान है भविष्य है।

 

कहानी का दूसरा अंश डॉ.मुकर्जी से संबंधित है। बर्मा पर जापानियों का आक्रमण होने के बाद वह इस छोटे से पहाड़ी शहर में आ बसे थे ।कुछ लोगों का कहना है कि वर्मा से आते हुए रास्ते में उनकी पत्नी की मृत्यु हो गई। उनके मन‌ में भी अतीत है । लेकिन वे अपना अतीत कभी प्रकट नहीं करते है।बातों से पता चलता है कि उनके दिल में भी अतीत के प्रति मोह है ,प्रेम है तभी तो वे मिस कड से कहते है-  “जड़ें कहीं नहीं जमती , तो पीछे भी कुछ नहीं छूट जाता।”

 

कहानी का तीसरा अंश मि. झूबर्ट से है वे दियानी के मास्टर है।मिस कड स्कूल की प्राचार्य है।जूली भी एक मिलिट्री अफसर से प्यार करती है लतिका यह बात जानती है लेकिन उस जूली को परिन्दे की भांति उस पर्याय में उड़ने देती है यह कहानी लतिका के भावनाओं का प्रकट करके खाम हो पाती है।

 

अगर कहानी के पात्रो पर गौर करें तो लतिका, डॉ मुकर्जी सभी अपना दर्द लिए जीते है। ऊपर से हंसने की असफल कोशिश करने वाले और अन्दर ही अन्दर रोते हुए चेहरों पर आने वाली बारीक से बारीक प्रतिक्रियाओं का प्रभाव समेटने का प्रयास काफी प्रभावशाली बन गया है।

उनके र्सवाद से पता चलता है कि वे अन्दर से उदास है तभी तो डॉ.मुकर्जी मिस बुड से कहते है- “जड़ें कहीं नहीं जमती, तो पिछे भी कुछ नहीं छूट पाता।” फिर डॉ.मुखर्जी से कहते है- कभी-कभी तो मैं सोचता हूं कि इंसान जिंदा ही क्यों रहता है, क्या उसे इससे कोई बेहतर काम करने को नहीं मिला है? अगर इस कहानी के वातावरण को ध्यान से समझे तो वातावरण का अंकल चित्रण काफी अच्छा हुआ है। पहाड़ी इलाका है, सर्दी की छुट्टियों में पत्तो की सायं-सायं करते आवाज हैं। पिकनिक के लिए भूला-देवी के मंदिर का वर्णन है । पहाड़ी इलाका में वर्षा का क्या क्या ठिकाना कब वर्षा आ जाएगी । ‘बुरूस के फूला , चीड़ के पत्ते बहते नाले यह सब दृश्य प्रकृति की ओर मोड़ देते है। जब मेघाच्छन्न आकाश में सरकते हुए बादलों के पीछे पहाड़ियों के झुण्ड कभी ऊपर आते थे, कभी छिप जाते थे।इस प्रकार पूरी कहानी में प्रकृति तथा वातावरण कफी रोचक दंग से किया गया है।

इनकी भाषा इस कहानी में भावानुकूल है। कही भाषा चिन्तन प्रधान है, कहीं रूमानी।परिन्दे की कहानी, रूमानी बोध को चित्रित करती है उर्दू के शब्दो की, है कहीं-कहीं पूरे अंग्रेजी व्याकरण है। कुल मिलाकर अलंकृत भाषा है, मानवीय करण है, प्रतीक और बिम्ब है। प्रवासी होने के कारण इनके कथ्य शिल्प और भाषा में प्रवासीय  प्रभाव स्पष्ट दिखलाई पड़ता है।

परिन्दे कहानी के माध्यम से निर्मल वर्मा से अपना उद्देश्य भी प्रकट किया है। प्रमी के मर जाने के बाद अतीत को याद कर लतिका पूरे संसार में स्वयं को मिसकिट पाती है निर्मल वर्मा की मान्यता है कि अतीत का मोह व्यथ है मरे हुए के साथ मरना बेवकूफी है। शून्यता का अनुभव मनुष्य के जीवन में निराशा और अंधकार के सिवाय कुछ नहीं लाता । अतः अतीत को जब तक हम विस्मृत नहीं करते हमें भविष्य में आगे कदम ठीक दंग से नहीं बढ़ा सकते है।अतीत को याद जरूर किया जाए लेकिन अतीत के साथ ही चिपक कर रहना यह बेवकूफी है। अतीत को भूलाकर भविष्य की कामनाएं रची जाए गदी जाए यही संदेश हम पाते है।

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