समय का सदुपयोग पर निबंध(samay ke sadupyog par nibandh in hindi)
भूमिका- समय सबसे बहुमूल्य वस्तु है जिस प्रकार जीवन के लिए पानी आवश्यक है उसी प्रकार मनुष्यों को समय का भी सदुपयोग करना ही होगा क्योंकि बीता हुआ समय फिर दोबारा लौटकर नहीं आता।
समय के महत्ता- कहावत है-समय और सागर की लहरें किसी के लिए रुकती नहीं। परिवर्तन की रथ पर समय भागता चलता है। गति के अनंत धागे में प्रकृति बंधी हुई है-गतिशील है। सागर अपनी लहरियों के ताल-संगीत पर दोलित रहता है। सूर्य और चांद परिक्रमा और आरती में गतिशील हैं। सरिता की धारा अबाध गति से बहती जाती है। पवन एक समय भी विश्राग की झपकी नहीं लेता। “समय की शिला” पर नियति मधुर चित्र बनाती है और मीटा देती है। निर्माण और नाश के बनते-टूटते खिलौने को समय दोनों हाथों से हमारे सामने उछलता रहता है। कभी बसंत के मधुर फूल खिलते हैं, कभी पतझड़ के पीले पत्ते उड़ते हैं। कभी उल्लास की ऊषा मुस्कुराती है, कभी कठोर सूरज का वाहक स्पर्श प्राप्त होता है, कभी सान्ध्य का गोधूलि अंधकार घिरता है और कभी रजनी के आंचल में ढंके हुए असंख्य तारे। समय सूत्रधार की तरह सबों को नचाता रहता है। ‘युग-परिवर्तन की लकीरें काटी नहीं जा सकतीं, समय का रथ रोका नहीं जा सकता।’
समय का संदेश- समय एक महान विचारक की भांति मानव को सचेत करता रहता है। समय चाहता है कि व्यक्ति वर्तमान के प्रत्येक पल में जीवित रहने का प्रयास करे।
इतिहास से सीख लेकर वर्तमान के साथ संतुलित होने की सलाह समय अवश्य देता है। पर वह यह कदापि नहीं चाहता कि व्यक्ति वर्तमान से विमुख हो जाए और वह भी वर्तमान कैसा? पल-पल परिवर्तन होने वाला चंचल, क्षणिक, नश्वर वर्तमान। परिवर्तन का रथ रोका नहीं जा सकता, काल की सीमा निर्धारित नहीं की जा सकती।
समय अच्छे बुरों की पहचान के लिए व्यक्ति को यथेष्ट अवसर देता है। समय बदलने पर लोगों की आंखें भी बदल जाती हैं। एक मित्र समृद्धि के दिनों का साथी होता है, पर बुरे दिन में पास नहीं भटकता। असहाय समझकर जिनका उपहास योग करता रहता है, यदि वही आदमी बन जाए तो लोगों के दृष्टिकोण में भी अंतर आ जाता है। “समय फिर रिपु होहिं पिरोते है।” ऐसे अवसरों पर एक विवेकशील व्यक्ति समय की आदर पूजा करता है। पेरिक्लीज के अनुसार- ” वक्त सबसे अधिक बुद्धिमान सलाहकार है।”
समय के सदुपयोग के तरीके- जीवन संग्राम में सफलता प्राप्त करने के लिए हमें अपने समय का सदुपयोग करना चाहिए। ऐसी इच्छा रखने वाले मनुष्य को अपने प्रतिदिन के कार्य की तालिका बना लेनी चाहिए। जिस मनुष्य का कार्यक्रम निश्चित नहीं होता उसका समय यों ही बर्बाद हो जाता है। समय के सदुपयोग का सबसे अधिक महत्व विद्यार्थी जीवन में है। अपने प्रतिदिन के कार्यक्रम निर्धारित कर उसे जी जान से सफल करना चाहिए। ऐसा न करने वाला अपने भविष्य से खिलवाड़ करता है, अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मार कर स्वयं बैरी बनता है।
साहित्य व कार्य तालिका बनते समय हमें समय का विभाजन इस प्रकार करना चाहिए कि मानसिक और शारीरिक थकावट अधिक न हो। समय विभाजन में मनोरंजन की व्यवस्था करनी चाहिए। वर्तमान समय में सत्संग, संगीत, कविता-पाठ, खेल-कूद आदि मनोरंजन के अति उत्तम साधन हैं। दूसरों के हित संपादन के लिए जो अपने प्राणों को हथेली पर लेकर काम करता है वही सच्चे अर्थ में समय का सदुपयोग जानता है और उसी के कार्य कलापों से समाज और राष्ट्र का मुख उज्जवल व शीश गर्वोन्नत होता है। भारत प्राण नेहरू, विश्व वन्द्य्ल गांधी, ब्रिटेन का प्रमुख नौ सेनापति नेल्सन, फ्रांस का अपुर्व पराक्रमी, साहसी सैनिक शासक नेपोलियन, लार्ड किवनर आदि अनेक योग पुरुषों ने समय की सही स्तुति कर विश्व को एक नया दर्शन दे दिया।
उपसंहार- समय की महिमा अपरम्पार है और शक्ति अपूर्व। इसी को मानो महाकाल की संज्ञा से विभूषित करके डॉ. हजारी प्रसाद द्विवेदी ने इसकी स्तुति की है- “धन्य हो महाकाल, तुमने कितनी बार मदन देवता का गर्व खंडन किया है, धर्मराज के कारागार मि क्रांति मचाई है, यमराज के निर्दय तारल्य को पी लिया है। विधाता के सर्व कर्तव्य के अभिमान को चूर्ण किया है।” अतः समय वेशकीमती हीरे-जवाहरातों से सहस्रों गुणा अधिक मूल्यवान है। भक्त कवि तुलसीदास ने इसी से मृत्यु के अंतिम क्षण में भी, जीवन कि आखिरी सांस में भी- “राम-राम” रटने की बात कही है।
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