श्रम की प्रतिष्ठा पाठ के प्रश्न उत्तर class 8॥ Shram Ki Pratishtha Question Answer Class 8॥ श्रम की प्रतिष्ठा निबंध के प्रश्न उत्तर class 8॥ श्रम की प्रतिष्ठा कहानी के प्रश्न उत्तर class 8
आप सभी का इस आर्टिकल में स्वागत है आज हम इस आर्टिकल के माध्यम श्रम की प्रतिष्ठा पाठ के प्रश्न उत्तर class 8 को पढ़ने जा रहे हैं। जो पश्चिम बंगाल के सरकारी विद्यालय के कक्षा 8 के पाठ्यपुस्तक साहित्य मेला से पाठ 1 श्रम की प्रतिष्ठा से लिया गया है जिसके लेखक आचार्य विनोबा भावे है। तो चलिए श्रम की प्रतिष्ठा पाठ के प्रश्न उत्तर class 8 , Shram Ki Pratishtha Question Answer Class 8 को देखें-
वस्तुनिष्ठ प्रश्न :
प्रश्न 1.
‘श्रम की प्रतिष्ठा’ किस विधा की रचना है?
(क) कहानी
(ख) कविता
(ग) निबंध (✔)
(घ) एकांकी
उत्तर :
(ग) निबंध
प्रश्न 2.
‘श्रम की प्रतिष्ठा’ के लेखक का नाम है-
(क) आचार्य रामचन्द्र शुक्ल
(ख) जयशंकर प्रसाद
(ग) आचार्य विनोबा भावे (✔)
(घ) आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी
उत्तर :
(ग) आचार्य विनोबा भावे
प्रश्न 3.
जो शखस पसीने से रोटी कमाता है वह हो जाता है-
(क) वीर पुरुष
(ख) धर्म पुरुष (✔)
(ग) कायर पुरुष
(घ) महापुरुष
उत्तर :
(ख) धर्म पुरुष
प्रश्न 4.
आज समाज में किसकी प्रतिष्ठा है?
(क) श्रम की
(ख) मन की
(ग) तन की
(घ) धन की (✔)
उत्तर :
(घ) धन की।
लघुउत्तरीय प्रश्न :
प्रश्न 1.
आचार्य विनोबा भावे का वास्तविक नाम क्या था?
उत्तर :
आचार्य विनोबा भावे का वास्तविक नाम विनायक राव भावे था।
प्रश्न 2.
पृथ्वी का भार किसके मस्तक पर स्थित है?
उत्तर :
पृथ्वी का भार शेषनाग के सिर (मस्तक) पर टिका हुआ है।
प्रश्न 3.
किसने मजदूरों को कर्मयोगी कहा है?
उत्तर :
भगवान ने मजदूरों को कर्मयोगी कहा है।
प्रश्न 4.
कौन-सा शख्स धर्म-पुरुष हो जाता है?
उत्तर :
जो व्यक्ति मेहनत करके, अपने पसीने से रोटी कमाता है, वह धर्म-पुरुष हो जाता है।
प्रश्न 5.
अपने समाज में किसकी प्रतिष्ठा नहीं है?
उत्तर :
अपने समाज में श्रम (मेहनत) की प्रतिष्ठा नहीं है।
बोधमूलक प्रश्न :
प्रश्न 1.
धर्म पुरुष किसे कहा जाता है?
उत्तर :
जो मजदूर दिन भर मेहनत करके और पसीना बहाकर रोटी कमाते हैं, उन्हें धर्म पुरुष कहा जाता है।
प्रश्न 2.
कौन से लोग हैं जो खा सकते हैं और आशीर्वाद दे सकते हैं, काम नहीं करते?
उत्तर :
ज्ञानी, यानी विद्वान लोग, खा सकते हैं और आशीर्वाद दे सकते हैं, लेकिन काम नहीं करते।
प्रश्न 3.
‘श्रम की प्रतिष्ठा’ निबेंध का सारांश लीखिए।
उत्तर:
प्रस्तुत निबंध में विनोबा जी ने मजदूरों (श्रमिकों) को शेषनाग के समान बताया है और उनके महत्त्व को समझाया है। जैसे शेषनाग के सिर पर पृथ्वी टिकी है, वैसे ही समाज मजदूरों पर टिका है। अगर मजदूर काम करना छोड़ दें, तो समाज ठहर नहीं सकता। इसलिए मजदूरों को भगवान ने कर्मयोगी कहा है।
लेकिन सिर्फ काम करने से कोई कर्मयोगी नहीं बनता। जो मजबूरी में काम करता है और काम को पूजा नहीं मानता, वह कर्मयोगी नहीं कहलाता। जो लोग खाली रहते हैं, उनके मन में गलत विचार आते हैं। कई लोग ऐसे भी होते हैं जो काम करने से बचना चाहते हैं, उन्हें अगर छुट्टी मिल जाए तो खुश हो जाते हैं।
गाँवों में माता-पिता अपने बच्चों को पढ़ाकर सिर्फ नौकरी दिलाना चाहते हैं, ताकि उन्हें शारीरिक मेहनत न करनी पड़े। बुद्धि से काम करने वाले लोग मेहनत करने वालों को निम्न समझते हैं और कम पैसे में ज्यादा काम करवाते हैं। कई मजदूर भी अपने काम को छोटा मानते हैं, उन्हें लगता है कि उनका काम सम्मानजनक नहीं है।
लेखक ने रामायण की सीता जी और महाभारत के भगवान श्रीकृष्ण का उदाहरण देकर बताया है कि महान लोग भी मेहनत करने में शर्म नहीं करते।
सीता जी राम के साथ वन में जाना चाहती थीं, लेकिन कौशल्या ने कहा कि उन्होंने सीता को कभी दीपक की बाती भी जलाने नहीं दी थी। इससे पता चलता है कि समाज में काम करने को हीन माना जाता था।
इसी तरह राजसूय यज्ञ में जब भगवान श्रीकृष्ण ने काम माँगा, तो धर्मराज युधिष्ठिर ने उन्हें आदरणीय कहकर कोई काम नहीं दिया। तब श्रीकृष्ण ने खुद ही जूठी पत्तलें उठाने और पोंछा लगाने का काम चुना, जिससे उन्होंने बताया कि कोई भी काम छोटा नहीं होता।
ज्ञानी, योगी, व्यापारी, वकील, अध्यापक, विद्यार्थी जैसे लोग खाते हैं, आशीर्वाद देते हैं, लेकिन खुद काम नहीं करते। इससे समाज में बेकारी बढ़ती है। जो लोग लाचारी से काम करते हैं, वे सच्चे कर्मयोगी नहीं हो सकते। ऐसे लोगों का जीवन धार्मिक नहीं होता, और यही कारण है कि हमारे समाज में श्रम की प्रतिष्ठा नहीं है।
आजकल बुद्धि से काम करने वालों को ज्यादा पैसा मिलता है, और मेहनत करने वालों को कम। इसलिए समाज में बुद्धि से काम करने वालों का मान बढ़ गया है।
महात्मा गांधी खुद भी समय निकालकर चरखा चलाते थे, यानी काम करते थे। इसलिए हमें हर काम की इज्जत करनी चाहिए।
शारीरिक और दिमागी काम का मूल्य एक जैसा होना चाहिए। पहले ब्राह्मण केवल ज्ञान बाँटते थे और खाने भर को पाते थे। आज के शिक्षक विद्या बेचने लगे हैं। अगर हमें कर्मयोग और श्रम की प्रतिष्ठा को बनाए रखना है, तो काम के मूल्य में कोई भेद नहीं होना चाहिए।
शारीरिक मेहनत करने वालों को समाज नीचा मानता है। जैसे मेहतर, जो सफाई करता है, उसे हम छोटा समझते हैं। लेकिन ज़रूरत इस बात की है कि हर व्यक्ति थोड़ा-थोड़ा काम जरूर करे।
बिना काम किए खाने से जीवन पापमय हो जाता है।
साथ ही, हर काम की कीमत समान होनी चाहिए। तभी समाज में सभी को बराबर इज्जत मिलेगी और श्रम की प्रतिष्ठा बढ़ेगी।
इस प्रकार लेखक ने हमें यह प्रेरणा दी है कि हर व्यक्ति को कुछ न कुछ मेहनत जरूर करनी चाहिए।
प्रश्न 4.
‘श्रम की प्रतिष्ठा’ पाठ से क्या प्रेरणा मिलती है?
उत्तर :
इस पाठ से हमें यह प्रेरणा मिलती है कि हर व्यक्ति को कुछ न कुछ काम जरूर करना चाहिए। हमारे समाज में कई लोग मेहनत (श्रम) करने से बचते हैं और मेहनत करने वालों को छोटा समझते हैं, जो गलत है। जो लोग मेहनत करते हैं, वे ही सच्चे और अच्छे होते हैं।
हमें शारीरिक और दिमागी काम में फर्क नहीं करना चाहिए। हर काम की इज्जत होनी चाहिए। अगर हम सब थोड़ा-थोड़ा मेहनत करें तो समाज में श्रम की प्रतिष्ठा बढ़ेगी और सबको बराबरी का सम्मान मिलेगा।
प्रश्न 5.
‘लेकिन सिर्फ कर्म करने से कोई कर्मयोगी नहीं होता।’ इसके रचनाकार का नाम बताते हुए पंक्तियों का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
इस पंक्ति के रचनाकार आचार्य विनोबा भावे हैं। इस पंक्ति का मतलब है कि सिर्फ काम करने से कोई व्यक्ति कर्मयोगी नहीं बनता।
अगर कोई व्यक्ति मजबूरी में काम करता है और उसे पूजा या सेवा की तरह नहीं मानता, तो वह सच्चा कर्मयोगी नहीं होता। कर्मयोगी वही होता है जो दिल से, श्रद्धा और भक्ति के साथ काम करता है।
दीर्घ उत्तरी प्रश्न :
प्रश्न : 1.
‘श्रम की प्रतिष्ठा’ निबंध का उद्देश्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
‘श्रम की प्रतिष्ठा’ निबंध का उद्देश्य हमें मेहनत (श्रम) की महत्ता समझाना है। लेखक ने बताया है कि हर व्यक्ति को थोड़ा-थोड़ा काम जरूर करना चाहिए। हमारे समाज में अमीर और पढ़े-लिखे लोग मेहनत से बचते हैं और जो लोग शारीरिक मेहनत करते हैं, उन्हें छोटा समझते हैं, जो गलत है।
लेखक का मानना है कि मेहनत करने वाले लोग ही समाज की तरक्की का आधार होते हैं। उनका जीवन पवित्र होता है। लेखक ने रामायण में सीता माता और महाभारत में श्रीकृष्ण के उदाहरण देकर बताया है कि बड़े लोग भी मेहनत करते थे।
लेखक चाहते हैं कि बुद्धि से काम करने वालों और हाथ से काम करने वालों को बराबर इज्जत और वेतन मिले। जब हर काम की एक जैसी कीमत मानी जाएगी, तभी श्रम की सच्ची प्रतिष्ठा होगी।
इस तरह, यह निबंध हमें सिखाता है कि मेहनत करने में कोई छोटा या बड़ा नहीं होता, और हर मेहनत करने वाले को सम्मान मिलना चाहिए।
प्रश्न .2.
पाठ में वर्णित महाभारत की कथा का उल्लेख कीजिए। उससे हमें क्या शिक्षा मिलती है?
उत्तर :
महाभारत की कथा के अनुसार, युद्ध में जीत के बाद धर्मराज युधिष्ठिर हस्तिनापुर के सम्राट बने और उन्होंने राजसूय यज्ञ किया। इस यज्ञ में बहुत से राजा-महाराजा और भगवान श्रीकृष्ण भी शामिल हुए। श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर से कहा कि वे भी यज्ञ में कोई काम करना चाहते हैं।
युधिष्ठिर ने कहा कि श्रीकृष्ण तो पूज्य हैं, उन्हें क्या काम दिया जाए। लेकिन श्रीकृष्ण ने कहा कि वे पूज्य हैं, पर नालायक या काम न करने वाले नहीं हैं। फिर श्रीकृष्ण ने खुद ही अपने लिए जूठी पत्तलें उठाने और जगह साफ़ करने का काम चुन लिया।
इस कथा से हमें यह शिक्षा मिलती है कि
कोई भी काम छोटा या तुच्छ नहीं होता।
महान लोग कोई भी काम करने से पीछे नहीं हटते।
काम करने से किसी का सम्मान कम नहीं होता, बल्कि बढ़ता है।
श्रीकृष्ण ने यह दिखाया कि सच्ची महानता सेवा और विनम्रता में होती है।
भाषा बोध:
1. निम्नलिखित शब्दों का वाक्य में प्रयोग कर लिंग निर्णय करें-
पृथ्वी – यह पृथ्वी धन-धान्य से भरी है।
लिंग: स्त्रीलिंगकर्मयोगी – कर्मयोगी काम को पूजा समझता है।
लिंग: पुल्लिंगतालीम – हर बच्चे को अच्छी तालीम मिलनी चाहिए।
लिंग: स्त्रीलिंगप्रतिष्ठा – अच्छे आचरण से प्रतिष्ठा मिलती है।
लिंग: स्त्रीलिंगमजदूर – मजदूर दिन भर परिश्रम करता है।
लिंग: पुल्लिंगइज्जत – अच्छे काम से इज्जत बढ़ती है।
लिंग: स्त्रीलिंगव्यवस्था – हमारे यहाँ खान-पान की अच्छी व्यवस्था है।
लिंग: स्त्रीलिंग
2. निम्नलिखित वाक्यांशों में आए कारक विभक्तियों का नाम लिखिए –
(क) रामायण में भी कहानी है।
‘रामायण में’ – अधिकरण कारक (जहाँ पर कोई चीज़ स्थित हो)
(ख) सीता का जाना कैसे होगा।
‘सीता का’ – संबंध कारक (किसका जाना?)
(ग) धर्मराज ने राजसूय यज्ञ किया।
‘धर्मराज ने’ – कर्ता कारक (जिसने कार्य किया)
‘राजसूय यज्ञ’ – कर्म कारक (जिस पर कार्य हुआ)
(घ) बूढ़ों को काम से मुक्त रहना ही चाहिए।
‘बूढ़ों को’ – संप्रदान कारक (जिसके लिए कार्य हो)
‘काम से’ – अपादान कारक (जहाँ से अलग होना हो)
3. निम्नलिखित शब्दों के विपरीतार्थक शब्द लिखिए –
- पृथ्वी – आकाश
- पाप – पुण्य
- नालायक – लायक
- जीवन – मरण / मृत्यु
- उपकारी – अपकारी
- उचित – अनुचित
- नीच – ऊँच / उच्च
4. निम्नलिखित शब्दों के पर्यायवाची शब्द लिखिए –
- पृथ्वी – धरती, धरा, भूमि
- भगवान – परमात्मा, प्रभु, जगदीश
- रात – रात्रि, निशा, रजनी
- शरीर – देह, तन, काया
- लज्जा – लाज, शर्म, हया
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