नमक कहानी का सारांश अपने शब्दों में लिखिए

नमक कहानी का सारांश अपने शब्दों में लिखिए ॥ नमक कहानी का सारांश लिखिए॥ 

नमक कहानी का सारांश अपने शब्दों में लिखिए ॥ नमक कहानी का सारांश लिखिए॥ 

यह कहानी भारत और पाकिस्तान के बंटवारे के बाद की स्थिति को दिखाती है। उस समय बहुत सारे लोग अपने देश, अपने घर छोड़ने को मजबूर हो गए थे। इस कहानी में ऐसे ही लोगों की भावनाओं को बहुत मार्मिक ढंग से दिखाया गया है।

कहानी की एक मुख्य पात्र है – सिख बीबी, जो अब भारत में रहती हैं, लेकिन उनका जन्म और बचपन लाहौर (अब पाकिस्तान में) में बीता था। वे आज भी लाहौर को अपना वतन (मूल स्थान) मानती हैं और अपने रिश्तेदार से लाहौर का “नमक” लाने की ज़िद करती हैं। उनके लिए नमक सिर्फ खाने की चीज़ नहीं, बल्कि अपने वतन की एक यादगार है।

दूसरे पात्र हैं – पाकिस्तान के कस्टम अधिकारी, जो खुद कहते हैं कि वे दिल्ली में पैदा हुए थे और वहीं बड़े हुए। उनके लिए दिल्ली ही असली वतन है, जबकि अब वे पाकिस्तान में काम कर रहे हैं।

इसी तरह भारतीय कस्टम अधिकारी सुनील दासगुप्त, जो अब भारत में रहते हैं, कहते हैं कि उनका जन्म तो ढाका (अब बांग्लादेश में) हुआ था।

इन तीनों पात्रों की बातों से यह साफ होता है कि भले ही अब उनके देश बदल गए हैं, लेकिन उनका दिल और यादें अभी भी अपने पुराने वतन से जुड़ी हुई हैं।

लेखिका यह दिखाना चाहती हैं कि राजनीति ने तो देशों की सीमाएँ बदल दी हैं, लेकिन लोगों के दिल आज भी एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। वे उम्मीद करती हैं कि एक दिन राजनीतिक सीमाएँ बेकार हो जाएँगी और लोग फिर से प्यार और अपनापन महसूस करेंगे।

कहानी की शुरुआत इस प्रकार होती है कि सफ़िया, जो मुस्लिम लड़की है, अपने पड़ोस के सिख परिवार के घर कीर्तन में जाती है। वहाँ वह एक सिख बीबी को देखती है जो उसे अपनी माँ की याद दिला देती है, क्योंकि वह सिख बीबी उसकी माँ की तरह दिखती है। सफ़िया की प्रेम-भरी नजरें देखकर वह बीबी भी उससे प्रभावित हो जाती हैं और उसके बारे में जानना चाहती हैं।

घर की बहू उन्हें बताती है कि सफ़िया एक मुसलमान लड़की है और लाहौर में उसके भाई रहते हैं। वह कल लाहौर जा रही है। यह सुनकर सिख बीबी बहुत भावुक हो जाती हैं और बताती हैं कि लाहौर ही उनका वतन है। उन्हें वहाँ के लोग, खाना, कपड़े, सैर-सपाटे और वहाँ की जिंदादिली आज भी याद आती है। लाहौर की याद करते हुए उनकी आँखें भर आती हैं

सफ़िया ने उन्हें सांत्वना देने के लिए पूछा कि क्या वह लाहौर से उनके लिए कोई सौगात (यादगार चीज़) लाना चाहेंगी। सिख बीबी ने भावुक होकर थोड़ा-सा लाहौरी नमक मँगवाने की इच्छा जताई। उनके लिए नमक कोई साधारण चीज़ नहीं थी, बल्कि अपने वतन की मिट्टी की याद थी।

सफ़िया लाहौर में पंद्रह दिन तक रही। वहाँ सबने उसका बहुत अच्छे से स्वागत किया और उसे बहुत सारा प्यार मिला। वह इतनी खुश थी कि उसे पता ही नहीं चला कि पंद्रह दिन कब बीत गए। वहाँ के दोस्तों, रिश्तेदारों और जानने वालों ने उसे ढेर सारे तोहफ़े दिए। सफ़िया ने सिख बीबी के लिए भी एक सेर (लगभग एक किलो से थोड़ा कम) लाहौरी नमक ख़रीद लिया था। अब वह लौटने की तैयारी कर रही थी और उसके सामान की पैकिंग हो रही थी।

सफ़िया पाकिस्तान से भारत नमक ले जाना चाहती थी, लेकिन यह कानून के हिसाब से गलत था। इसलिए उसने अपने भाई से इस बारे में बात की, जो एक बड़ा पुलिस अफसर था। सफ़िया ने पूछा कि क्या वह नमक भारत ले जा सकती है। भाई ने बताया कि पाकिस्तान से भारत नमक ले जाना गैरकानूनी हैकस्टम ऑफिसर सामान की जांच करेंगे और भारत में वैसे भी नमक की कोई कमी नहीं है

सफ़िया ने कहा कि एक सिख बीबी, जो उसकी माँ जैसी लगती है, उसने नमक मँगाया है। वह उसे नमक एक तोहफे की तरह देना चाहती है। भाई ने उसे समझाया कि ऐसा करना कानून के खिलाफ होगा, लेकिन सफ़िया ने कहा कि वह चोरी-छिपे नहीं, बल्कि सबको दिखाकर नमक ले जाना चाहती है

सफ़िया को लगता था कि इंसानियत, प्यार और इज्जत, कानून से भी ऊपर होते हैं। इसलिए उसने नमक ले जाने की अपनी बात पर मजबूती से डटी रही। जब भाई ने कहा कि अगर तुम पकड़ी गईं तो बदनामी होगी, और नमक नहीं ले जा पाओगी, तो सफ़िया की आँखों में गुस्से और दुख के आँसू आ गए

सफ़िया ने रात को अपने सामान की पैकिंग की। उसके सारे कपड़े और ज़रूरी चीज़ें सूटकेस और बिस्तरबंद में आ गईं। अब सिर्फ दो चीज़ें बची थीं – एक कीनू (संतरे और माल्टे का मिला-जुला फल) की टोकरी और नमक की एक पुड़िया

सफ़िया चाहती थी कि वह नमक भारत जरूर लेकर जाए, क्योंकि वह उसके लिए प्यार और याद की एक निशानी था।

सफ़िया ने एक तरकीब सोची। उसने नमक की पुड़िया को कीनू की टोकरी के नीचे छिपा दिया। उसे याद आया कि जब वह लाहौर आई थी, तो भारत से लोग केले लेकर आ रहे थे और पाकिस्तान से लोग कीनू लेकर जा रहे थे। कस्टम (सीमा पर जांच करने वाले अधिकारी) वाले इन फलों की जांच नहीं कर रहे थे।

इससे सफ़िया को यकीन हुआ कि अगर वह नमक को कीनू की टोकरी में छिपाकर ले जाएगी, तो कोई उसे नहीं रोकेगा और नमक सुरक्षित भारत पहुँच जाएगा।

इस तरह उसने चुपचाप नमक को ले जाने की योजना बना ली।

सारा सामान पैक करने के बाद सफ़िया सो गई। नींद में वह लाहौर के अपने घर, वहाँ की सुंदरता और माहौल के बारे में सपना देख रही थी। उसे अपने भाई, मित्रों और रिश्तेदारों से जुड़ी बातें याद आ रही थीं।

भतीजियों की मासूम और प्यारी बातें भी उसे सपने में सुनाई दे रही थीं। उसके मन में यह भी चल रहा था कि अब वह कब दोबारा यहाँ आएगी, या क्या फिर कभी आ भी पाएगी या नहीं

सिख बीबी और उसकी औरत के बहते आँसू, इक़बाल का मकबरा, और लाहौर का किला— ये सब उसके सपनों में उभर रहे थे।

अचानक उसकी नींद टूट गई, क्योंकि सोते समय उसका पैर कीनू की टोकरी पर पड़ गया था। वही टोकरी जिसमें उसने नमक की पुड़िया छिपा रखी थी।

उसे याद आया कि उसके दोस्त ने कीनू देते समय कहा था — “यह हिंदुस्तान-पाकिस्तान की एकता का मेवा है।”

यह बात सुनकर सफ़िया के मन में गहरी भावनाएँ उठने लगीं — वो नमक, वो टोकरी, वो दोस्त, और वो बिछड़ता हुआ लाहौर।

सफ़िया जब लाहौर से दिल्ली लौटने के लिए फर्स्ट क्लास वेटिंग रूम में बैठी थी, तो उसके मन में कई भावनाएँ चल रही थीं। उसे सिर्फ़ यही बात परेशान कर रही थी कि कीनू की टोकरी के नीचे छिपी नमक की पुड़िया कस्टम जांच में पकड़ी न जाए। लेकिन फिर उसने सोचा कि प्रेम की सौगात चोरी से नहीं जानी चाहिए, इसलिए उसने नमक की पुड़िया निकालकर बैग में रख ली। जब उसका सामान जांच के बाद ट्रेन की ओर भेजा गया, तो उसने एक कस्टम अधिकारी से बात की। बात शुरू करने से पहले सफ़िया ने पूछा कि वह कहाँ के रहने वाले हैं। जब अधिकारी ने बताया कि वह दिल्ली का रहने वाला है, तो सफ़िया की हिम्मत बढ़ी और उसने हैंडबैग से नमक की पुड़िया निकालकर मेज़ पर रख दी और उससे जुड़ी पूरी कहानी सुना दी। अधिकारी ने इंसानियत और समझदारी दिखाते हुए खुद वह पुड़िया सफ़िया के बैग में रख दी और मुस्कराकर कहा, “मुहब्बत तो कस्टम से इस तरह गुजर जाती है कि कानून हैरान रह जाता है।” चलते समय सफ़िया ने उसे यह संदेश दिया कि “जामा मस्जिद की सीढ़ियों को मेरा सलाम कहिएगा और उन खातून को यह नमक देते वक्त कहिएगा कि लाहौर आज भी उनका वतन है और दिल्ली मेरा, बाकी सब धीरे-धीरे ठीक हो जाएगा।” यह दृश्य दिखाता है कि प्यार, अपनापन और इंसानियत सरहदों से ऊपर होते हैं।

अमृतसर स्टेशन पर कस्टम अधिकारी फर्स्ट क्लास के यात्रियों का सामान उनके डिब्बे के सामने ही चेक कर रहे थे। सफ़िया का सारा सामान देख लिया गया था, लेकिन उसने खुद अपना हैंडबैग खोलकर नमक की पुड़िया निकाली और अधिकारी से कहा कि उसके पास थोड़ा-सा नमक है। फिर उसने पूरी सच्चाई बता दी। अधिकारी ने उसकी बात ध्यान से सुनी और कहा, “इधर आइए ज़रा।” वह सफ़िया को प्लेटफॉर्म के एक कमरे में ले गया, आदर से बैठाया, चाय पिलाई और उसे एक किताब दिखाई जिस पर लिखा था— “शमसुलइसलाम की तरफ से सुनील दासगुप्त को, ढाका 1946″। सफ़िया के पूछने पर सुनील दासगुप्त ने गर्व से बताया कि उसका वतन ढाका है और वह बचपन में नजरुल और टैगोर को पढ़ा करता था। वह विभाजन से पहले की अपनी सालगिरह याद करते हुए ढाका की यादों में खो गया और बोला, “हमारे पानी और जमीन का स्वाद ही अलग है।” फिर उसने नमक की पुड़िया सफ़िया के बैग में रखी और खुद आगे-आगे चलने लगा। जब सफ़िया अमृतसर के पुल पर चढ़ रही थी, तो उसने देखा कि सुनील दासगुप्त पुल की निचली छाया में चुपचाप खड़ा है। सफ़िया सोच रही थी, “वतन क्या है? डाभ तो कोलकाता में भी मिलते हैं, नमक यहाँ भी मिलता है, लेकिन अपने वतन की चीज़ों की बात ही कुछ और होती है।”
तो क्या वतन वह है जो इस पार है या उस पार? या वतन वो है जहाँ अपनापन और यादें बसी हों?

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