देशप्रेम नामक कविता से आपको क्या प्रेरणा मिलती है ॥ Desh Prem Namak Kavita Se Aapko Kya Prena Milti Hai
कवयित्री अनामिका ने उत्तर-आधुनिक काल की परिस्थितियों को सामने रखते हुए ‘देशप्रेम’ शीर्षक कविता की रचना की है। इस कविता में उन्होंने यह दिखाने का प्रयास किया है कि बदलते समय में मनुष्य की संवेदनाएँ धीरे-धीरे क्षीण होती जा रही हैं। व्यक्ति पहले की भाँति न तो दूसरों की पीड़ा को महसूस करता है और न ही उनके सुख-दुःख में भागीदार बनना चाहता है। यह वह भयावह दौर है, जहाँ सामाजिक और नैतिक जिम्मेदारियाँ लगभग लुप्तप्राय होती जा रही हैं। लोग एक-दूसरे के प्रति उदासीन और असंवेदनशील हो चुके हैं। इस प्रकार ‘देशप्रेम’ कविता हमें चेतावनी देती है कि यदि मनुष्य की यह संवेदनहीनता और जिम्मेदारी से विमुखता इसी तरह बढ़ती रही तो समाज और राष्ट्र का ढाँचा भी संकट में पड़ सकता है।
कवयित्री अनामिका ने अपनी कविता ‘देशप्रेम’ में हमारे भीतर धीरे-धीरे लुप्त होती जा रही देशभक्ति की भावना को अत्यंत मार्मिक और सजीव उपमा द्वारा व्यक्त किया है। उन्होंने बताया है कि आज का मनुष्य देशप्रेम को हृदय की गहराइयों में कहीं दबाकर रखे हुए है, जिसकी स्थिति बिल्कुल उस पुराने कोट के फटे अस्तर में छिपे हुए छुट्टे पैसों जैसी हो गई है। जिस प्रकार उन पैसों का अस्तित्व हमें सामान्यतः याद नहीं रहता और अचानक ही कभी हाथ जेब में डालने पर उनकी उपस्थिति का अहसास होता है, उसी प्रकार हमारे मन में भी देशप्रेम की भावना सामान्य परिस्थितियों में प्रकट नहीं होती, बल्कि विशेष अवसरों पर ही उसका आभास मिलता है।
कवयित्री कहती हैं कि आज हम अपने राष्ट्रीय पर्वों को भी केवल भूलवश ही याद कर पाते हैं। उदाहरण के लिए, यदि कभी संयोगवश कोई पुराना ट्रांजिस्टर खुला रह जाए और 26 जनवरी जैसे किसी राष्ट्रीय पर्व पर अचानक राष्ट्रगीत या देशभक्ति का गीत बजने लगे, तभी हमें उस पावन अवसर का स्मरण हो आता है। यह स्थिति हमारे संवेदनहीन होते जा रहे मन की ओर संकेत करती है। हमारी संवेदनाएँ इतनी भोथरी और मटियामेट हो चुकी हैं कि राष्ट्रगीत सुनकर हमारे भीतर तत्काल गहरी श्रद्धा और गर्व का उभार नहीं आता। फिर भी, कवयित्री स्वीकार करती हैं कि हमारे भीतर पूरी तरह देशप्रेम का अंत नहीं हुआ है। हमारे मन का एक कोना अब भी जीवित है, जहाँ थोड़ी-सी गर्माहट और जज़्बा शेष है।
इसी शेष बचे हुए जज़्बे के कारण हम अनचाहे ही सही, किंतु राष्ट्रगीत सुनते ही खड़े होकर देश के प्रति सम्मान प्रकट कर देते हैं। यही हमारी अंतरात्मा की वह पुकार है, जो हमें अब भी राष्ट्र और मातृभूमि के प्रति निष्ठा और कर्तव्य की याद दिलाती है। कवयित्री का यह कथन कि “अजब चीज है देशप्रेम भी” इस पूरे भाव को सार्थकता प्रदान करता है। यह वाक्य हमें यह सोचने पर विवश करता है कि देशप्रेम भले ही दबा हुआ हो, भले ही उपेक्षित हो, लेकिन वह पूरी तरह समाप्त कभी नहीं हो सकता।
कवयित्री अनामिका ने अपनी कविता ‘देशप्रेम’ में अत्यन्त प्रतीकात्मक शैली का प्रयोग करते हुए यह दिखाने का प्रयास किया है कि एक समय ऐसा भी था जब लोगों के हृदय में देशप्रेम की भावना लहरों की तरह उमड़ती-घुमड़ती थी। उस समय यह भाव केवल शब्दों तक सीमित नहीं था, बल्कि आचरण और जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में प्रकट होता था। उदाहरण स्वरूप, सिनेमा घरों में फिल्मों के समापन पर राष्ट्रगीत बजाया जाता था और वहाँ उपस्थित हर व्यक्ति सम्मानपूर्वक खड़ा हो जाता था। यह उनके अंदर मौजूद स्वाभाविक देशप्रेम और राष्ट्र के प्रति निष्ठा का प्रमाण था। उस दौर का सिनेमा भी अपेक्षाकृत स्वच्छ और सांस्कृतिक मूल्यों से युक्त था। उसमें हेलन का कैबरे नृत्य होता था, मुकरी का सरल और निश्छल हास-परिहास दिखाई देता था, पर उसमें कहीं भी अश्लीलता या फूहड़ता का अंश नहीं था।
कवयित्री को गहरा दुख इस बात का है कि आज वही जोश और वही देशभक्ति का आवेग धीरे-धीरे लुप्त होता जा रहा है। वह पीड़ा के साथ प्रश्न उठाती हैं – “धीरे-धीरे क्योंकर छीजने लगा सारा आवेग?” यह प्रश्न केवल कवयित्री का ही नहीं, बल्कि हर संवेदनशील नागरिक के मन की वेदना है। आज देशप्रेम हमारे भीतर उस तरह उमड़ता नहीं जैसा पहले हुआ करता था। यह एक ऐसा भारी-भरकम शब्द बनकर रह गया है, जिसे हम मन से नहीं बल्कि केवल औपचारिकता और बोझ की तरह ढोते हैं।
आज का यथार्थ यह है कि हमने देशप्रेम जैसे पवित्र और गहन भाव को मोबाइल की रिंगटोन तक सीमित कर दिया है। जब अचानक यह धुन बजती है, तब हम क्षणभर के लिए अवश्य सचेत हो जाते हैं, किंतु अगले ही पल उसे बंद करके अन्य कार्यों में उलझ जाते हैं। इस प्रकार यह कविता वर्तमान समय की उस बदलती मनोवृत्ति को उजागर करती है, जिसमें संवेदनाएँ क्षीण हो रही हैं और राष्ट्रप्रेम का वास्तविक आवेग हमारे जीवन से लगभग विलुप्त होता जा रहा है।
फिर भी, कवयित्री का उद्देश्य केवल आलोचना करना नहीं है। उन्होंने इस कविता के माध्यम से यह प्रयास किया है कि भारतीयों के हृदय में सुप्त पड़े राष्ट्रप्रेम को जगाया जाए। वे हमें यह स्मरण कराती हैं कि राष्ट्रप्रेम मानव हृदय की एक मधुरतम और पवित्रतम भावना है, जो पूरे देश को एकता की श्रृंखला में बाँध सकती है। यही वह अद्भुत शक्ति थी, जिसने स्वतंत्रता संग्राम के समय साधारण से साधारण व्यक्ति को भी प्रेरणा और बल प्रदान किया।
इस दृष्टि से ‘देशप्रेम’ कविता केवल एक व्यथा का आख्यान नहीं है, बल्कि यह हमारे सोए हुए स्वाभिमान को जगाने और हमारे भीतर दबे हुए राष्ट्रीयता के भाव को पुनः प्रकट करने का आह्वान भी है। कवयित्री अनामिका इस कविता के माध्यम से हर भारतीय से यह अपेक्षा करती हैं कि हम अपने अंदर छिपी देशभक्ति को जागृत करें और उसे केवल अवसर विशेष तक सीमित न रखकर अपने जीवन का स्थायी हिस्सा बनाएँ।
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