देश प्रेम कविता का व्याख्या करें ॥ Desh Prem Kavita Ka Vyakhya Karen
1. कभी-कभी अन्दर से
फट जाता है कोट की जेब का अस्तर –
तो छुपकर
अस्तर के बिल में
जा बैठते हैं कुछ चिल्लर –
शब्दार्थ :
- अस्तर = कोट के अंदर लगा कपड़ा।
- चिल्लर = छुट्टे।
प्रश्न 1.
रचना तथा रचनाकार का नाम लिखें।
उत्तर : यह रचना ‘देशप्रेम’ है और इसकी रचनाकार अनामिका हैं।
प्रश्न 2.
प्रस्तुत पद्यांश का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर : कवयित्री ने कविता की शुरुआत एक सामान्य घटना से की है। जब कोट पुराना हो जाता है तो उसकी जेब का अंदर का कपड़ा (अस्तर) फट जाता है। ऐसे में कभी-कभी छुट्टे पैसे (चिल्लर) जेब में रहने के बजाय उसी फटे अस्तर के किसी छिपे कोने में चले जाते हैं और हमें याद भी नहीं रहते।
इसी साधारण-सी घटना के सहारे कवयित्री यह कहना चाहती हैं कि जैसे हम उन छुट्टे पैसों को भूल जाते हैं, वैसे ही हमने अपने जीवन में देशप्रेम की भावना को भी कहीं अंदर छुपाकर भुला दिया है।
2. कभी अचानक कुछ दूँढ़ते हुए
फदे में अगर अड़ गयी उँगलियाँ तो
उद्घाटित होते हैं
गद्वर से !
ऐसे ही छुट्टे पैसे-सा
छुपा हुआ मेरे ही कोने-अँतरों में
मुझे मिला वह
जिसका भारी-भरकम एक नाम है – देश-प्रेम !
शब्दार्थ :
- उद्घाटित = सामने आते हैं।
- गह्बर = गड्डे। अंतरों = भीतर।
प्रश्न 1.
प्रस्तुत पद्यांश कहाँ से लिया गया है?
उत्तर : यह पद्यांश अनामिका की कविता ‘देशप्रेम’ से लिया गया है।
प्रश्न 2.
प्रस्तुत पद्यांश का भाव स्पष्ट करें।
उत्तर : कवयित्री कहती हैं कि जैसे कभी-कभी हम किसी चीज़ को ढूँढ़ते-ढूँढ़ते अचानक कोट के फटे अस्तर में पड़े पुराने छुट्टे पैसे पर हाथ रख देते हैं, वैसे ही उनके मन के किसी गहरे कोने से अचानक ही एक भूली हुई चीज़ सामने आ जाती है। वह चीज़ है – देशप्रेम।
देशप्रेम कोई साधारण चीज़ नहीं है, बल्कि बहुत बड़ी और गंभीर भावना है। लेकिन आज यह भावना हमारे मन में कहीं दब गई है, जैसे छुट्टे पैसे अस्तर के अंदर छुप जाते हैं। जब-जब कोई अवसर आता है, तभी वह भावना अचानक से सामने आ जाती है।
इस पद्यांश में कवयित्री यह कहना चाहती हैं कि आधुनिक जीवन में लोगों के मन से देशप्रेम धीरे-धीरे ओझल हो गया है। यह भावना हमारे भीतर तो है, लेकिन छिपी हुई है, और कभी-कभी ही बाहर निकलकर दिखाई देती है।
3. वैसे तो भारी-भरकम चीजों से मुझको
डर लगता है,
लेकिन वह मिल ही गया तो
मैंने उसे प्यार से देखा !
प्रश्न 1.
रचनाकार का नाम लिखें।
उत्तर : इस कविता की रचनाकार अनामिका हैं।
प्रश्न 2.
कवयित्री को कौन-सी भारी-भरकम चीज मिली?
उत्तर : कवयित्री को अपने दिल के किसी छुपे हुए कोने से देशप्रेम जैसी भारी-भरकम चीज मिली।
प्रश्न 3.
किसने, किसे प्यार से देखा?
उत्तर : कवयित्री को जब अपने भीतर छुपा हुआ देशप्रेम अचानक मिला, तो उन्होंने उसे बड़े प्यार से देखा। उन्हें सामान्यतः भारी-भरकम चीजों से डर लगता है, लेकिन देशप्रेम जैसी भावना को पाकर वे खुश हुईं और उसे स्नेह से निहारा।
प्रश्न 4. प्रस्तुत पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए।
भावार्थ : कवयित्री यह बताना चाहती हैं कि पहले देशप्रेम हमारे जीवन का सबसे बड़ा सहारा था, लेकिन समय के साथ वह कहीं दब गया। जब यह भावना अचानक फिर से प्रकट हुई, तो कवयित्री को खुशी हुई कि यह अब भी उनके दिल में जीवित है।
4. छब्बीस जनवरी की थी वह ठंडी सुबह ! तकिए के नीचें
छूट गया था ट्रांजिस्टर खलुला !
सुबह-सुबह बजने लगा राष्ट्रगान !
एक पल को सोचा – मटिया दूँ,
लेकिन फिर क्या जाने क्या हो गया,
कम्बल-वम्बल फेककर मैं खड़ी हो गयी
सावधान !
शब्दार्थ :
- मटिया = अनसुना, सुन कर भी न सुनना।
प्रश्न 1.
प्रस्तुत पद्यांश कहाँ से लिया गया है?
उत्तर : यह पद्यांश अनामिका की कविता ‘देशप्रेम’ से लिया गया है।
प्रश्न 2.
प्रस्तुत पद्यांश का भावार्थ लिखें।
उत्तर : कवयित्री बताती हैं कि उन्हें आज भी 26 जनवरी की एक ठंडी सुबह याद है। उस दिन उनके सिरहाने ट्रांजिस्टर खुला रह गया था। अचानक उस पर राष्ट्रगान बजने लगा। उस समय कवयित्री रजाई में दुबकी हुई थीं और मन में विचार आया कि राष्ट्रगान को अनसुना कर दें। लेकिन अगले ही क्षण उनके भीतर जागे संस्कार और देशप्रेम ने उन्हें मजबूर कर दिया कि वे तुरंत कम्बल छोड़कर सावधान की मुद्रा में खड़ी हो जाएँ।
यह घटना इस बात का प्रतीक है कि देशप्रेम हमारे भीतर गहराई से बसा हुआ है। भले ही हम कभी-कभी उसे नज़रअंदाज़ करने की सोचते हैं, पर वह अचानक हमारे व्यवहार में प्रकट हो ही जाता है। राष्ट्रगान सुनकर खड़े होना उस संस्कार और भावना का प्रमाण है जो वर्षों से हमारे मन में संचित है।
5. अजब चीज है प्रेम भी, मुँह की लगी छूटती ही नहीं !
वर्षों पहले यों ही झटके से
सीट छोड़कर खड़े हो जाते थे हम
सिनेमाधरों में ।
शब्दार्थ :
- मुँहलगी = आदत, लत।
प्रश्न 1.
कविता का नाम लिखें।
उत्तर : कविता का नाम ‘देशप्रेम’ है।
प्रश्न 2.
प्रस्तुत पद्यांश का भावार्थ लिखें।
उत्तर : कवयित्री कहती हैं कि देशप्रेम भी बड़ी अनोखी चीज़ है। एक बार यह भावना दिल में बैठ जाए तो फिर आसानी से छूटती नहीं। पहले का दौर उन्हें याद आता है, जब सिनेमा घरों में भी फिल्म खत्म होने के बाद राष्ट्रगान बजता था। उस समय सभी दर्शक अपनी सीटें छोड़कर खड़े हो जाते थे और राष्ट्रगान का सम्मान करते थे।
लेकिन आज की स्थिति बदल गई है। अब वह आदत, वह भावना और वह संस्कार धीरे-धीरे कमज़ोर हो गए हैं। कवयित्री को लगता है कि जैसे शराब या तम्बाकू की लत छूटती नहीं, वैसे ही देशप्रेम की आदत भी एक बार लग जाए तो हमेशा दिल में बनी रहती है।
कवयित्री का संकेत यह है कि देशप्रेम कभी समय के साथ खो नहीं जाता। यह भावना गहराई से जुड़ जाने के बाद जीवनभर हमारे साथ रहती है, भले ही लोग उसे धीरे-धीरे भूलते जा रहे हों।
6. हेलेन के सभ्य कैबरे
और मुकरी की भोली फुलझड़ियों के बाद
जेमिनी कलर में
‘द एंड’ टिमका करता था
सिनेमा के पर्दे पर
और शुरू होता था जनगणमन ऐसे ही !
शब्दार्थ :
- हेलेन = फिल्मी दुनिया की अभिनेत्री जो अपने कैबरे के लिए विख्यात थी।
- मुकरी= फिल्मी दुनिया का एक कॉमेडियन।
- जेमिनी कलर = रंग-बिरंगे।
- द एंड = समाप्त।
- टिमका = चमका।
- जनगणमन = राष्ट्रगान के शुरूआती शब्द।
प्रश्न 1.
रचना तथा रचनाकार का नाम लिखें।
उत्तर : यह रचना ‘देशप्रेम’ है और इसकी रचनाकार अनामिका हैं।
प्रश्न 2.
प्रस्तुत पद्यांश का भाव स्पष्ट करें।
उत्तर : कवयित्री अपने पुराने दिनों को याद करती हैं। उस समय फिल्मों में मनोरंजन भी शालीन और सरल हुआ करता था। जैसे – हेलेन के सुसंस्कृत कैबरे या हास्य अभिनेता मुकरी की सरल हंसी-ठिठोली से दर्शक प्रसन्न होते थे।
फिल्म समाप्त होते ही पर्दे पर ‘द एंड’ के बाद तिरंगा झंडा दिखाई देता था और साथ ही राष्ट्रगान बजता था। तब सिनेमा हॉल के सभी दर्शक तुरंत खड़े होकर सावधान की मुद्रा में पूरे सम्मान के साथ राष्ट्रगान पूरा होने तक खड़े रहते थे।
लेकिन कवयित्री को दुःख है कि अब यह परंपरा केवल 26 जनवरी और 15 अगस्त जैसे विशेष अवसरों तक ही सीमित रह गई है। पहले जो राष्ट्रप्रेम और आदर की भावना रोजमर्रा के जीवन का हिस्सा थी, वह अब बहुत कम दिखाई देती है।
कवयित्री यह बताना चाहती हैं कि पहले लोगों के दिलों में देशप्रेम हर समय मौजूद था और वह स्वाभाविक रूप से उनके व्यवहार में झलकता था। लेकिन आज वह भावना केवल खास अवसरों तक ही सीमित होकर रह गई है।
7. धीरे-धीरे क्योंकर
छीजने लगा सारा आवेग ?
अब जाने भी दीजिए, देखिए, सुनिए –
‘सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा’,
यह धुन जो मोबाइल की है –
क्या आपकी जेब से आ रही है ?
शब्दार्थ :
- छीजने = चूने, पसीजने।
- आवेग = भाव।
- जहाँ = दुनिया।
प्रश्न 1.
प्रस्तुत अंश कहाँ से लिया गया है?
उत्तर : यह अंश अनामिका की कविता ‘देशप्रेम’ से लिया गया है।
प्रश्न 2.
‘सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा’ किसकी रचना है?
उत्तर : यह मशहूर शायर मोहम्मद इक़बाल की रचना है।
प्रश्न 3.
प्रस्तुत पद्यांश का भावार्थ लिखें।
उत्तर : कवयित्री सोचती हैं कि पहले लोगों के दिलों में देशप्रेम और तिरंगे को लेकर जो सच्चा उत्साह और जोश था, वह धीरे-धीरे क्यों कम होता जा रहा है? पहले यह भावना जीवन का हिस्सा थी, लेकिन अब यह केवल दिखावे और औपचारिकता तक सीमित रह गई है।
आज लोग अपने मोबाइल की कॉलरट्यून पर ‘सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा’ लगाकर ही अपनी देशभक्ति दिखाने लगे हैं। जेब से आती हुई यह धुन असली देशप्रेम नहीं, बल्कि केवल एक दिखावा है।
कवयित्री चेतावनी देती हैं कि अगर ऐसा ही चलता रहा, तो आने वाले समय में देशप्रेम और देशभक्ति केवल शब्दों तक सीमित होकर रह जाएंगे, जबकि असली भावना और जोश पूरी तरह लुप्त हो जाएगा।
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