दीपदान एकांकी के आधार पर कीरत बारी का चरित्र चित्रण कीजए॥ Kirat Ka Charitra Chitran
जयशंकर प्रसाद रचित ‘दीपदान’ एकांकी में कीरत बारी भले ही एक गौण पात्र है, परंतु उसकी भूमिका अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। वह एक साधारण-सा, तुच्छ कार्य करने वाला व्यक्ति है जो महल में जूठी पत्तलें उठाने का काम करता है, किंतु संकट की घड़ी में वही व्यक्ति अपनी अद्वितीय स्वामीभक्ति, कर्तव्यनिष्ठा, बुद्धिमत्ता और साहस का परिचय देता है। उसकी निष्ठा और त्याग से यह सिद्ध हो जाता है कि समाज में किसी भी छोटे-से-छोटे व्यक्ति के अंदर महानता छिपी हो सकती है।
स्वामीभक्त और कर्तव्यनिष्ठ सेवक
कीरत बारी का सबसे बड़ा गुण उसकी स्वामीभक्ति है। वह राजपरिवार का एक सेवक होते हुए भी अपने स्वामी और उनके पुत्र उदयसिंह के प्रति पूर्ण निष्ठा रखता है। जब पन्ना धाय उसे उदयसिंह की रक्षा का भार सौंपती है, तो वह तनिक भी विलंब किए बिना अपनी सेवाभावना प्रदर्शित करता है। उसका यह कथन— “अन्नदाता! कहने को तो मैं कह चुका हूँ कि उनके लिए अपनी जान तक हाजिर कर सकता हूँ।”— उसकी स्वामीभक्ति और कर्तव्यपरायणता का परिचायक है।
बुद्धिमान और विवेकशील
कीरत बारी केवल सेवक ही नहीं, बल्कि एक बुद्धिमान और विवेकशील व्यक्ति भी है। जब पन्ना उससे बाहर की स्थिति के विषय में पूछती है, तो वह बड़े विवेक से बताता है कि बाहर चारों ओर सिपाही तैनात हैं। वह जानता है कि उसकी पहचान केवल जूठी पत्तल उठाने वाले के रूप में है, इसलिए वह उसी पहचान का उपयोग करके उदयसिंह को टोकरी में छिपाकर महल से बाहर ले जाने का उपाय सोचता है। यह उसकी सूझ-बूझ और व्यावहारिक बुद्धिमत्ता का प्रमाण है।
साहसी और निर्भीक व्यक्तित्व
कीरत बारी में अद्भुत साहस और निर्भीकता है। उसे भली-भांति ज्ञात है कि यदि बनवीर के सैनिकों को उसकी योजना का आभास हो गया, तो उसकी जान निश्चित रूप से चली जाएगी। फिर भी वह बिना भयभीत हुए उदयसिंह को बचाने का जोखिम उठाता है। यह जानते हुए भी कि उसके साथ मृत्यु कदम-दर-कदम चल रही है, वह उदयसिंह की सुरक्षा के लिए तत्पर रहता है। यह गुण उसे सामान्य व्यक्ति से असाधारण व्यक्तित्व की श्रेणी में ला खड़ा करता है।
त्याग और स्वदेश-प्रेम
कीरत बारी केवल स्वामीभक्त ही नहीं, बल्कि राष्ट्रभक्त भी है। वह उदयसिंह को भविष्य का प्रकाश मानता है और चाहता है कि उनका जीवन युगों-युगों तक सुरक्षित रहे। उसके भीतर यह भाव स्पष्ट दिखाई देता है कि स्वदेश और स्वामी के लिए त्याग करना ही सच्चे सेवक का धर्म है। उसका त्याग और समर्पण चित्तौड़ के गौरवशाली इतिहास को नया आयाम प्रदान करता है।
आदर्श चरित्र
कीरत बारी समाज के उन गुमनाम नायकों का प्रतिनिधित्व करता है जिनका बाहरी रूप सामान्य होता है किंतु संकट की घड़ी में वही लोग आदर्श प्रस्तुत करते हैं। पन्ना धाय का यह कथन— “तो जाओ कीरत! आज तुम जैसे एक छोटे आदमी ने चित्तौड़ के मुकुट को संभाला है। एक तिनके ने राज-सिंहासन को सहारा दिया है। तुम धन्य हो!”— यह सिद्ध करता है कि कीरत बारी साधारण होते हुए भी असाधारण है।
निष्कर्ष
इस प्रकार, कीरत बारी का चरित्र स्वामीभक्ति, कर्तव्यनिष्ठा, बुद्धिमत्ता, चतुरता, साहस और त्याग का आदर्श रूप है। वह यद्यपि महल में जूठी पत्तल उठाने वाला सेवक है, किंतु अपने कर्मों से इतिहास में अमर हो जाता है। ‘दीपदान’ एकांकी का यह गौण पात्र अपने कार्य से मुख्य पात्रों के बराबर महत्त्व पा लेता है। भारतीय समाज में कीरत बारी जैसे आदर्श चरित्र न केवल प्रेरणास्रोत हैं, बल्कि यह संदेश भी देते हैं कि महानता जन्म या पद से नहीं, बल्कि त्याग, कर्तव्य और साहस से प्राप्त होती है।
इस प्रकार, कीरत बारी एक छोटा व्यक्ति होते हुए भी महानता की ऊँचाइयों को छूने वाला आदर्श नायक है।
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