चप्पल कहानी का उद्देश्य ॥ chappal kahani ka uddeshy
कावुटूरि वेंकट नारायण राव द्वारा रचित ‘चप्पल’ एक उद्देश्यप्रधान और मार्मिक कहानी है। यह केवल एक गरीब चर्मकार की कथा नहीं है, बल्कि मानवीय संवेदनाओं, गुरु-शिष्य परंपरा और जीवन के उच्च आदर्शों का प्रतीक है। आज के भौतिकवादी और उपभोक्तावादी युग में जहाँ रिश्तों, संवेदनाओं और उदारता का ह्रास हो रहा है, वहाँ यह कहानी पाठकों को पुनः इन मूल्यों की ओर प्रेरित करती है।
कहानी का नायक रंगय्या पेशे से गरीब चर्मकार है। अनपढ़ होने पर भी उसके मन में शिक्षा के प्रति गहरा लगाव है और वह अपने पुत्र रमण की पढ़ाई को महत्व देता है। जब रमण मास्टर साहब की फटी हुई चप्पल को अपने पिता के पास मरम्मत के लाता है, तो रंगय्या उन्हें अत्यधिक आदर और श्रद्धा से सिर से लगाता है। वह यह अनुभव करता है कि यह केवल साधारण चप्पल नहीं, बल्कि उसके पुत्र के गुरु का प्रतीक है। वह प्रेम और समर्पण के साथ उन चप्पलों को नया जीवन देता है। यह प्रसंग गुरु के प्रति सम्मान और शिक्षा के महत्व को उजागर करता है।
कहानी का चरम बिंदु तब आता है जब रंगय्या अपने मोहल्ले में लगी भीषण आग के बीच गुरु की चप्पलों को बचाने के लिए अपने प्राणों की आहुति दे देता है। यह त्याग यह सिद्ध करता है कि कृतज्ञता और श्रद्धा केवल शब्दों से नहीं, बल्कि कर्म और बलिदान से प्रमाणित होती है। रंगय्या का यह कार्य उसे साधारण से असाधारण बना देता है और वह आदर्श मानवता का प्रतीक बन जाता है।
आज के दौर में शिक्षा को व्यवसाय बना दिया गया है। अभिभावक केवल धन खर्च कर अपने कर्तव्यों की इतिश्री समझ लेते हैं, जबकि विद्यालय और संस्थान अनुशासन व संस्कार की बजाय लाभ कमाने पर ध्यान देते हैं। परिणामस्वरूप गुरु-शिष्य संबंध कमजोर हो रहे हैं और शिक्षा का वास्तविक उद्देश्य खोता जा रहा है। ऐसे समय में ‘चप्पल’ कहानी हमें याद दिलाती है कि हमारे समाज में गुरु ईश्वर से भी श्रेष्ठ माने गए हैं। उनका आदर करना और उनसे प्राप्त शिक्षा को जीवन में उतारना ही सच्ची विद्या है।
इस प्रकार ‘चप्पल’ कहानी का उद्देश्य त्याग, कृतज्ञता, श्रद्धा और गुरु-शिष्य परंपरा जैसे जीवन मूल्यों को पुनः स्थापित करना है। यह पाठक को प्रेरित करती है कि हमें केवल धन या भौतिक साधनों को ही लक्ष्य न बनाकर मानवीय संवेदनाओं, आदर और कृतज्ञता को अपने जीवन का आधार बनाना चाहिए। यह कहानी हमें यह भी सिखाती है कि साधारण जीवन जीते हुए भी त्याग और निष्ठा से महानता प्राप्त की जा सकती है।
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